कोमोडिटी की कीमतों में उतार-चढ़ाव का असर पड़ा है स्टील निर्माताओं पर

 

– सुशिम बैनर्जी

 

पिछले सालों के दौरान कोमोडिटी की कीमतों ने देश की आर्थिक गतिविधियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कोविड महामारी के दौरान मैटल्स और मिनल्स की कीमतों में भारी उतार- चढ़ाव आता रहा है और इसका असर विभिन्न देशों में राजस्व के सृजन तथा आयातकों एवं निर्यातकों की भूमिका पर पड़ा हैं।

अक्टूबर 2020 में विश्व बैंक द्वारा कोमोडिटी कीमतों पर जारी संशोधित रिपोर्ट इस पहलु पर कुछ रोचक तथ्य प्रस्तुत करती है। विभिन्न कोमोडिटीज़ के पूर्वानुमान में कई कृषि उत्पाद शामिल हैं। वास्तविक आउटपुट पर धातुओं एवं मिनरल्स की कीमतों में बदलाव के प्रभाव सांख्यिकी मॉडल का परिणाम हैं, जिसमें 1970-2019 के दौरान उत्पादन, उपभोग एवं कीमतों के आंकड़ों की दीर्घकालिक श्रृंखला शामिल है। ये परिणाम दर्शाते हैं कि धातुओं की कीमत में बढ़ोतरी के 2 साल के अंदर आर्थिक गतिविधि में 0.32 फीसदी बढ़ोतरी होती है।

गौरतलब है कि दुनिया भर में, बेस मैटल्स,  कोमोडिटी की मांग का तकरीबन 7 फीसदी हिस्सा बनाते हैं, जो कच्चे तेल का 1/6 हिस्सा है, इसमें विश्व स्तरीय कोमोडिटी मांग का 42 फीसदी हिस्सा शामिल है। रोचक तथ्य यह है कि कई छोटे देश धातुओं के भंडार की दृष्टि से अच्छी स्थिति में हैं। चीले के पास कॉपर के 23 फीसदी भंडार हैं, इसी तरह ऑस्ट्रेलिया और पेरू के पास 10-10 फीसदी भंडार हैं, गिनिया के पास बॉक्साईट के 25 फीसदी भंडार हैं, जिसका उपयोग एलुमिनियम के उत्पादन में किया जाता है। इसी तरह इंडोनेशिया के पास निकल के 24 फीसदी भंडार हैं, चीन के पास टिन के 23 फीसदी भंडार हैं। ऑस्ट्रेलिया के पास लैड के सबसे बड़े- 40 फीसदी तथा ज़िंक के 27 फीसदी भंडार हैं।

रिफाइन्ड धातुओं के उत्पादन की बात करें तो चीन तकरीबन 35-55 फीसदी उत्पादन के साथ अग्रणी उत्पादक है, इसका एलुमिनियम उत्पादन में 55 फीसदी और निकल उत्पादन में 35 फीसदी योगदान है । 2000 के बाद से सभी रिफाइन्ड धातुओं और धातुओं के अयस्कों के उत्पादन में ज़बरदस्त बढ़ोतरी के चलते चीन ने कोमोडिटीज़ की कीमतों एवं उत्पादन पर गहरा प्रभाव उत्पन्न किया है।

पूर्वानुमान बेहद रोचक हैं। यहां यह बताना महत्वपूर्ण होगा कि ये पूर्वानुमान महामारी की दूसरी लहर से पहले लगाए गए थे, जो ज़्यादा घातक साबित हुई। वर्तमान में कच्चे तेल की कीमत तकरीबन $ 65.8/bbl (ब्रेंट क्रूड) है, जो 2021 में $ 56/bbl से बढ़कर 2022 में $60/bbl तक पहुचं सकती है। ये तथ्य इस अनुमान पर आधारित हैं कि 2021 में तेल की मांग 2019 की तुलना में तीन गुना कम हो सकती है और 2023 में ही यह मांग महामारी से पूर्व वाली स्थिति पर पहुंचेगी। ऑटो सेगमेन्ट में इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास को देखते हुए ईयू और यूएसए में ईंधन की मांग कम होने का अनुमान है।  यूएस में नैचुरल गैस की कीमतें समान स्तर पर बनी हुई हैं, 2021 में यही स्तर (US price $2.8/mmbtu)  बने रहने की संभावना है और मामूली बढ़ोतरी के बाद 2022 में यह $2.9/ mmbtu तक  पहुंच सकता है।

 2020 में कोयले की मांग 5 फीसदी कम हुई। कुल मिलाकर कोयला उत्पादन की 37 गीगावॉट क्षमता समाप्त हो चुकी है और ऐसा ज़्यादातर ईयू एवं यूएसए में देखा गया है। भारत सहित दुनिया भर में नव्यकरणी उर्जा के रूप में बिजली के उपयोग के रूझान बढ़े हैं। कोयले से लेकर सिन गैस तथा डीआरआई, रसायनों एवं उर्वरकों के उत्पादन में इसका उपयोग बढ़ा है, हालांकि हमारे देश में यह गति अनुमान की तुलना में कुछ धीमी है।

हाल ही में आपूर्ति संबंधी मुद्दों, चीन द्वारा ऑस्ट्रेलिया से कोयला आयात पर प्रतिबंध तथा इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, रूस और यूएसए में वैकल्पिक स्रोतों के चलते भारत से मांग स्थिर बनी हुई है।  वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया के लिए प्रीमियम लो वॉल्युम एचसीसी फॉब की कीमत में बदलाव की उम्मीद है, साथ ही महामारी की मौजूदा स्थिति को देखते हुए मांग में और कमी आ सकती है, हालांकि ये रूझान 2022 तक स्थिर हो सकते हैं। वर्तमान में एलुमिनियम और निकल की उंची कीमतें 2021 में क्रमशः $2200/t और $16500/t पर बनी रहेंगी जिसमें 2022 में मामूली गिरावट आएगी।

 2021 की पहली तिमाही के दौरान लौह अयस्क में तकरीबन 25 फीसदी बढ़ोतरी हुई है, ऐसा मुख्य रूप से चीन से मांग के कारण है। लौह अयस्क की उंची कीमतों के चलते ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा और लाइबेरिया में अतिरिक्त आपूर्ति निवेश को बढ़ावा मिला है। वर्तमान में चीन से लौह अयस्क के आयात की कीमत $190/t है, और 2021 के पूरे साल में इसके $135/t पर बने रहने का अनुमान है जो 2022 में $100/t तक पहुंच सकती है।

हालांकि, झारखण्ड के स्टील निर्माता, खासतौर पर वे जिनके पास कैप्टिव खानें नहीं हैं, लौह अयस्क का उत्पादन कम होने और आयात बढ़ने के कारण उन पर और भी असर पड़ सकता है।  वित्तीय वर्ष 21 में लौह अयस्क का उत्पादन 25 से भी ज़्यादा गिरावट के साथ 20.8 मिलियन टन तक पहुंच गया है जो वित्तीय वर्ष 20 में 28.2 मिलियन टन था। झारखण्ड में मर्चेन्ट आयरन ओर लीज़ जो 2020 में एक्सपायर हो चुकी है, लौह अयस्क की ज़बरदस्त कमी के चलते इसे अब तक नवीनीकृत नहीं किया गया है। चूंकि स्टील निर्माण एक सतत प्रक्रिया है और इसके लिए प्लांट को उचित दरों पर कच्चे माल की निर्बाध आपूर्ति की आवश्यता होती है। ऐसे में झारखण्ड सरकार को निजी उद्योग के लिए कच्चे माल की उपलब्धता को सुनिश्चित करना चाहिए जिनके पास अपनी कैप्टिव खानें नहीं हैं। सरकारी स्वामित्व की-सेल जिससे उम्मीद की जा रही थी कि वह अपनी कैप्टिव खानों से निकले लौह अयस्क को नीलामी के ज़रिए बेचेगी, उसे झारखण्ड में निरस्त कर दिया गया है, हालांकि उड़ीस में ऐसा जारी है।

इसलिए जिन स्टील निर्माताओं के उत्पादन पर असर पड़ा है, उन्हें सुरक्षित रखने के लिए झारखण्ड में माइनिंग लीज़ की शुरूआत फिर से करनी होगी और सेल को अपनी कैप्टिव खानों का लौह अयस्क बेचने की अनुमति देनी होगी। ई-नीलामी के ज़रिए पुराने लीज़ होल्डर्स के बिना बिके लौह अयस्क की बिक्री को भी सुनिश्चित करना होगा।

कुल मिलाकर स्टील निर्माताओं को राहत देने के लिए झारखण्ड की लौह अयस्क खानों से लौह अयस्क की आपूर्ति को सुनिश्चित करना ज़रूरी है ताकि संचालन में किसी तरह की रूकावट न आए।  इससे न केवल स्टील सेक्टर को मदद मिलेगी बल्कि सरकार के लिए भी कर एवं ड्यूटी का संग्रह बढ़ेगा, साथ ही प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोज़गार का सृजन भी होगा।

भारत में महामारी की प्रचंड दूसरी लहर ने सभी आर्थिक एवं सामाजिक वर्गों को प्रभावित किया है।  कोमोडिटी कीमतें (कोयला, लौह अयस्क, कच्चा तेल, एलुमिनियम, निकल, ज़िंक इनमें प्रमुख हैं) जो घरेलू एवं रीटेल सेक्टर की मांग पर निर्भर हैं, इनका भविष्य अनिश्चित दिखाई देता है। यह निराशा नहीं बल्कि वास्तविकता है, अगर स्थिति में जल्द सुधार नहीं आता तो स्थिति ऐसी बनी रह सकती है। भारतीय स्टील उत्पादक निर्यात के अवसरों का लाभ उठा सकते हैं क्योंकि तैयार उत्पादों की विश्वस्तरीय कीमतें यूएसए, ईयू, जापान, चीन की आर्थिक स्थिति पर ज़्यादा निर्भर करती हैं, जो अभी बेहतर स्थिति में हैं।

 

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