एनएमएल को वर्ष २०२० के राष्ट्रीय उत्कृष्ट तकनीकी पुरस्कार से नवाजा गया

रांची। सीएसआईआर के स्थापना दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला को ई-कचरा रिसाइक्लिंग के क्षेत्र में तकनीक विकसित करने एवं अनेक औद्योगिक ईकाइयों में तकनिकी के हस्तांतरण एवं सफलतापूर्वक उत्पादन हेतु राष्ट्रीय स्तर पर सीएसआईआर – बेस्ट टेक्नोलॉजी अवार्ड मिला। कोविड -19 जैसी वैश्विक महामारी के कारण इस वर्ष का पुरस्कार इलेक्ट्रॉनिक्स वेबकेम के द्वारा दिया गया । इस मौके पर सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ शेखर सी॰ मांडे, विज्ञानं एवं प्रौद्योगिकी मंत्री माननीय हर्षवर्धन उपस्थित थे। सभी ने राष्ट्रीय स्तर के इस योगदान के लिए एनएमएल की भूमिका की सराहना की। यह प्रथम स्वदेशी तकनीक है जिसका की वाणिज्यकरण हो चुका हैं।

ज्ञात हो की डॉ मनीष कुमार झा, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक एवं इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट रिसाइक्लिंग के प्रयोजना प्रधान विगत १२ वर्षों से ई- कचरा रिसाइक्लिंग पर शोध एवं प्रौद्योगिकी विकसित कर रहे है। वर्तमान में अत्यधिक ई- कचरा उत्पन्न होता है । भारतवर्ष में आधुनिक तकनिकी के आभाव में 95% ई-कचरा गलत तरीके से रिसाइकिल होता हैं। इसके कारण पर्यावरण पर दुष्प्रभाव पड़ता है। आज संचार के युग में प्रतिदिन नए-नए मोबाईल फोनो का आगमन एवं पुराने मोबाईल फोनों का उपयोग से बाहर होने के कारण अत्यधिक कचरा उत्पन्न होता हैं।

इलेक्ट्रोनिक क्रान्ति ने हमारे जीवन को सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण कर दिया है । विभिन्न इलेक्ट्रोनिक आविष्कारों के माध्यम से संचार तन्त्र को विस्तार एवं व्यावसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिलने के साथ-साथ रोजगार के
अवसर भी बढ़े है । परंतु आज, अधिक संख्या मे खराब होने वाली इन्ही इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं के अम्बार ने “ ई- कचरा ” के रूप मे एक नई पर्यावरणीय समस्या को जन्म दिया है । “ई-कचरा” से तात्पर्य बेकार पड़े वैसे इलेक्ट्रोनिक उपकरणों से है, जो अपने उपयोग के उद्देश्य हेतु उपयुक्त नहीं रह जाते ।

विकासशील देशों को सर्वाधिक सुरक्षित डम्पिंग ग्राउन्ड माने जाने के कारण भारत सरीखे देश ऐसे ई-कचरें के बढ़ते आयात से चिन्तित हैं । दुनिया के देशो मे तेजी से बढ़ती इलेक्ट्रोनिक क्रान्ति से एक तरफ जहा आम लोगों की
इस पर निर्भरता बढ़ती जा रही है वहीं पर्यावरण के लिए खतरा और केंसर जैसी गंभीर बीमारियों का स्रोत बन रहे इस “ई-कचरें“ का भारत प्रमूख उपभोक्ता है । मोबाइल फोन, लेपटोप, टेलीविज़न, फोटो-कोपिअर, फ़ैक्स मशीन, कैल्कुलेटर और कबाड़ बन चुके पुराने कम्प्युटरों के ई-वेस्ट भारी तबाही के तौर पर सामने आ रहे है । मृदा प्रदूषण, जल एवं वायू प्रदूषण और अनेकानेक गम्भीर बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं । ऑर्गेनिक गंदगी को पीने लायक पानी से पृथक करना जटिल एवं महंगा कार्य है। जहाँ एक तरफ़ा इस तरह के कचरे से पर्यावरण को नुकसान पहुँचता हैं वही दूसरी तरफ धातुओं जैसे की सोना, चाँदी, कोबाल्ट, निकल, एल्युमिनियम, मैंगनीज , ताम्बा इत्यादि धातुओं का नुकसान भी होता है।

यदि ई-कचरें की मात्रा इसी तरह दिनोंदिन बढ़ती गई तो भविष्य में ई-वेस्ट से निकलने वाली भारी धातुएँ एवं अन्य प्रदूषित पदार्थ मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए कही अधिक नुकसानदेह साबित हो सकते है । बड़ी संख्या मे इसका अनियंत्रित प्रबंधन व निस्पादन पर्यावरण को भारी नुकसान पहुचा रहा है। मिट्टी व जल- प्रदूषण , मानव जीवन तथा जलीय जीव-जंतुओं को भी इससे नुकसान हो रहा हैं। जल एवं जलीय जीव-जन्तुओं के सेवन से मानव शरीर पर बुरा असर पड़ रहा हैं एवं गंभीर बीमारी के शिकार हो रहे हैं । खास बात यह हैं कि इस लिथियम आयन बैटरी में "कोबाल्ट" पाया जाता है , जिसका भारत मे दूसरे देशो से आयात किया जाता हैं । भारत के पास कोबाल्ट का भंडार भी नही हैं ।

 

 

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