रांची:-सरला बिरला विश्वविद्यालय के मानविकी एवम् योग संकाय के द्वारा व्यक्तित्व विकास के लिए पारस्परिक कौशल (इंटरपर्सनल स्किल फॉर पर्सनैलिटी डेवलपमेंट) विषय पर वेबीनार का आयोजन किया गया। वेबीनार में बतौर मुख्य वक्ता के रूप में विश्वविद्यालय के मुख्य कार्यकारी पदाधिकारी सह प्रभारी कुलपति श्री प्रदीप कुमार वर्मा ने उक्त विषय पर बहुत ही प्रेरक घटनाओं को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हुए अपने विचार शिक्षकों, शिक्षाविदों, पदाधिकारियों तथा छात्रों के बीच साझा किए।
उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा कि हमारा व्यक्तित्व ही हमारी वास्तविक पूंजी है। हमें सदैव अपने व्यक्तित्व को पूर्ण विकसित करने की दिशा में प्रयत्नशील रहना चाहिए। जीवन में जिन्होंने भी आपके लिए जो कुछ भी किया हो उसके प्रति सदैव कृतज्ञता का भाव होना चाहिए। संवेदनशीलता अभ्यास द्वारा विकसित किया जाने वाला वह गुण है जो हमें कभी अलोकप्रिय नहीं होने देता। समाज के अंदर अच्छाई व बुराई दोनों है लेकिन मधुमक्खी की तरह केवल अच्छाई को ग्रहण करने की दृष्टि रखनी चाहिए। लोकप्रियता हमेशा हमारे सफलता का कारक है।
आगे उन्होंने कहा कि सुझाव देना एक कला है जो समय, काल व परिस्थिति के आलोक में स्वयं के आचरण के अनुकूल होना चाहिए। अच्छे व्यक्तित्व के अंतर्गत क्षमाशीलता का भाव होना चाहिए। क्षमा करना उपकार नहीं अपितु बड़प्पन व शांति का मार्ग है। अंधकार कभी भी अंधकार को खत्म नहीं कर सकता। क्षमाशील व्यक्ति सर्व स्वीकार्य व लोकप्रिय होता है।
प्रतिस्पर्धा सदैव स्वयं की क्षमता के विकास के लिए स्वयं के साथ होना चाहिए।
ऋषि दधीचि की तरह परहित का भाव लेकर हमें स्वयं का व्यक्तित्व स्थापित करना चाहिए। मनुष्य को सात्विक होना चाहिए सात्विक मनुष्य कभी असफल नहीं होते हैं।
बहुत सारे लोग धैर्य के कमी के कारण सफलता के नजदीक पहुंचते-पहुंचते असफल हो जाते हैं। सफलता और असफलता दोनों ही स्थिति में में सदैव समभाव होना चाहिए। बुराई से अच्छाई की ओर जाने का मार्ग सद्गुणों को अपने जीवन में अभ्यास पूर्वक धारण करना है। श्रेय लेने का भाव एक प्रकार का अवगुण है। परहित व संवेदनशीलता में परस्पर संबंध है। संवेदनशील मनुष्य ही परहित कर सकता है।
आगे उन्होंने कहा कि आशा से उत्साह का भाव और निराशा से हीनता का भाव बलवती होता है। उत्साह पूर्वक अनुशासित रहते हुए अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लक्ष्य की प्राप्ति तक प्रयत्नशील रहना ही प्रतिभा है। सफलता अक्सर सुख से जुड़ी भाव से होती है। सफलता हमारे जीवन में नित्य विराजमान होती हैं लेकिन हम उनका आभास नहीं करते।
सत्र बहुत ही रोचक, ज्ञानवर्धक व अनेक जीवनोपयोगी दृष्टांतो से परिपूर्ण था। सत्र के अंत में कई प्रतिभागियों के प्रश्नों के उचित व सारगर्भित उत्तर भी दिए गए।
सत्र में विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं, पदाधिकारियों के अलावा अन्य संस्थानों के कई शिक्षकों ,शिक्षाविदों एवं छात्रों ने सहभागिता की। सत्र का समापन मानविकी के एसोसिएट डीन डॉ राधा माधब झा के धन्यवाद ज्ञापन द्वारा किया गया।
इस अवसर पर कुलसचिव डॉ विजय कुमार सिंह, डीन डॉ श्याम किशोर सिंह, डीन आईडी एन सीएस प्रो संजीव बजाज, कार्मिक एवं प्रशासनिक प्रबंधक श्री मनीष कुमार, डीएसडब्ल्यू प्रो राहुल वत्स, डॉ संजीव कुमार सिन्हा, डॉ पार्थ पाल, डॉ संदीप कुमार, डॉ रिया मुखर्जी, डॉ संजीव कुमार, प्रो मेघा सिन्हा, डॉ अमृता सरकार, डॉ पूजा मिश्रा, डॉ पिंटू दास, श्री भारद्वाज शुक्ला, सहित छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।