नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर उनकी राय मांगी है कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा में बांधना चाहिए, जब संविधान में इसके लिए कोई निर्धारित अवधि नहीं है।
यह नोटिस राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा मई 2025 में भेजे गए एक संवैधानिक संदर्भ (Article 143) के जवाब में जारी किया गया है। राष्ट्रपति ने शीर्ष अदालत से यह स्पष्ट करने को कहा था कि जब किसी बिल को अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल या राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, तो उन्हें उस पर निर्णय लेने के लिए क्या मार्गदर्शन उपलब्ध है।
यह मामला उस समय सुर्खियों में आया जब तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल आर.एन. रवि के बीच टकराव की स्थिति बन गई थी। अप्रैल 2025 में सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का उपयोग करते हुए हस्तक्षेप किया था। अदालत ने राज्यपाल द्वारा तमिलनाडु विधानसभा के 10 विधेयकों को मंजूरी न देने को “अवैध और मनमाना” करार दिया था।
अदालत ने स्पष्ट किया था कि जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा लौटाया जाता है, फिर से विधानसभा में पारित होता है और दोबारा भेजा जाता है, तो राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास भेजने के लिए आरक्षित नहीं कर सकते। साथ ही, अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा।
इस ऐतिहासिक फैसले के बाद, राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांगी, जिससे यह मामला अब सार्वजनिक महत्त्व और संवैधानिक व्याख्या का विषय बन गया है।