Defeat Doesn’t Matter : Pakistan Honors Asim Munir Amid Military Embarrassment

भारत से सैन्य हार के बाद पाक सेना प्रमुख असीम मुनीर को फील्ड मार्शल की रैंक 

इस्लामाबाद: पाकिस्तान सरकार ने सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत कर दिया है। यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जब पाकिस्तान को भारत के साथ सैन्य संघर्ष में भारी नुकसान उठाना पड़ा है। भारत के “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद यह घोषणा की गई है, जिससे देश और विदेश दोनों में इस फैसले पर सवाल उठने लगे हैं।

प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि असीम मुनीर को मारका-ए-हक और ऑपरेशन बुनयान-उल-मरसोस में उनकी रणनीतिक नेतृत्व और बहादुरी के लिए यह सम्मान दिया गया है। बयान में कहा गया कि उन्होंने पाकिस्तान की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता की रक्षा में अहम भूमिका निभाई है।

असीम मुनीर अब पाकिस्तान के दूसरे अधिकारी बन गए हैं जिन्हें फाइव-स्टार फील्ड मार्शल की उपाधि मिली है। इससे पहले केवल जनरल अयूब खान को 1960 के दशक में यह रैंक दी गई थी। इस पद के साथ मुनीर अब पारंपरिक चार-स्टार जनरलों से ऊपर माने जाएंगे।

कौन हैं फील्ड मार्शल असीम मुनीर?

जनरल मुनीर का सेना में सफर थोड़ा अलग रहा है। उन्होंने पाकिस्तान मिलिट्री अकैडमी की जगह ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल से 1986 में सेना में प्रवेश लिया था। वह जनरल जिया-उल-हक के दौर में सेना में आए और 2022 में रिटायरमेंट से ठीक दो दिन पहले सेना प्रमुख बना दिए गए — जो अपने आप में एक अनोखा और विवादास्पद फैसला था।

रावलपिंडी के एक स्थानीय इमाम के बेटे मुनीर ने कम उम्र में कुरान याद किया और वह धार्मिक रूप से काफी रूढ़िवादी माने जाते हैं। कहा जाता है कि वह भारत के खिलाफ “हजार जख्म देकर खून बहाने” की पुरानी नीति के समर्थक हैं।

वह 2019 में हुए पुलवामा हमले के समय पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के प्रमुख भी रह चुके हैं, जिससे वह भारत-पाक रिश्तों के सबसे तनावपूर्ण समय में एक अहम किरदार रहे।

यह फैसला सम्मान या सत्ता का प्रदर्शन?

जहां सरकार इसे एक वीर सेनानी को सम्मान देने के रूप में देख रही है, वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला सेना के प्रभाव को फिर से मजबूत करने की कोशिश हो सकता है। भारत के हाथों मिली सैन्य हार के कुछ ही दिन बाद यह पदोन्नति कई सवाल खड़े करती है।

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम घरेलू असंतोष और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच सेना की ताकत और पकड़ को दोबारा स्थापित करने की रणनीति भी हो सकता है।

अब देखना होगा कि असीम मुनीर का यह नया दर्जा पाकिस्तान की राजनीति और सेना के रिश्तों को किस दिशा में लेकर जाता है।

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