रूसी तेल खरीदने पर भारत को अमेरिका की 500% टैरिफ लगाने की धमकी

नई दिल्ली/वॉशिंगटन डीसी: भारत पर अमेरिका की ओर से एक बड़ा आर्थिक हमला हो सकता है। अमेरिकी सीनेट में पेश किए गए एक नए प्रतिबंध बिल के तहत, अगर भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा तो उसके अमेरिका में होने वाले निर्यात पर 500% तक का आयात शुल्क (टैरिफ) लगाया जा सकता है।

इस बिल का नाम है Sanctioning Russia Act 2025, जिसे अप्रैल में रिपब्लिकन सीनेटर लिंडसे ग्राहम और डेमोक्रेट सीनेटर रिचर्ड ब्लूमेंथल ने मिलकर पेश किया है। इसका मकसद सिर्फ रूस को ही नहीं, बल्कि उन सभी देशों को सख्त आर्थिक कार्रवाई से घेरना है जो रूस से तेल, गैस या अन्य ऊर्जा उत्पाद खरीदते हैं।

भारत और चीन निशाने पर

बिल का उद्देश्य है कि रूस की ऊर्जा आय पर चोट की जाए, जो उसकी युद्ध नीति की रीढ़ है। इसके तहत, जो भी देश रूस से तेल, गैस, यूरेनियम या पेट्रोकेमिकल्स खरीदेगा, उसके अमेरिका में होने वाले सभी उत्पादों पर 500% टैरिफ लगाया जाएगा। भारत और चीन जैसे देशों को खासतौर पर इस चेतावनी में शामिल किया गया है।

सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने इसे “एक आर्थिक बंकर बस्टर” करार दिया है और कहा कि यह रूस की आय को खत्म करने का तरीका है ताकि वह यूक्रेन में युद्ध को आगे न बढ़ा सके।

ट्रंप प्रशासन की आपत्ति

हालांकि यह बिल अमेरिकी संसद में तेजी से समर्थन हासिल कर रहा है, लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो अपने दूसरे कार्यकाल में हैं, इसे लेकर सहमत नहीं हैं। ट्रंप प्रशासन का मानना है कि यह बिल उनकी रूस के साथ रिश्तों को सुधारने की कूटनीति में बाधा बन सकता है।

खबरों के अनुसार, ट्रंप चाहते हैं कि बिल की भाषा को नरम किया जाए — जैसे कि “shall” की जगह “may” लिखा जाए, जिससे राष्ट्रपति को इस कानून के अमल में लचीलापन मिल सके। वह ऐसे प्रावधान भी चाहते हैं जिससे रणनीतिक साझेदारों (जैसे भारत) को छूट दी जा सके।

सीनेट में मिल रहा जबरदस्त समर्थन

भले ही व्हाइट हाउस इसके खिलाफ है, लेकिन अमेरिकी सीनेट में इस बिल को 84 से ज्यादा सांसदों का समर्थन मिल चुका है। सीनेटर ग्राहम ने NBC को बताया कि यह बिल पास होकर रहेगा और राष्ट्रपति को इसमें छूट देने का प्रावधान भी होगा।

सीनेट लीडर जॉन थ्यून ने भी कहा है कि इसे जल्द ही चर्चा के लिए लाया जा सकता है।

भारत पर असर और चिंता

अगर यह कानून लागू होता है, तो भारत की निर्यात-आधारित अर्थव्यवस्था, खासकर टेक्सटाइल, दवा और आईटी सेक्टर, पर बड़ा असर पड़ सकता है। इसके अलावा, इससे भारत-अमेरिका के रिश्तों में भी तनाव आ सकता है।

विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि इतनी सख्त सजा वाले प्रावधान अमेरिका के अपने हितों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं और सहयोगी देशों को नाराज कर सकते हैं।

बिल में बदलाव संभव

फिलहाल यह बिल कानून नहीं बना है और इसमें आगे बदलाव होने की संभावना है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह के बिलों में अकसर विवेकपूर्ण संशोधन होते हैं, ताकि उनके असर को संतुलित किया जा सके।

अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में भारत इस दबाव का कैसे जवाब देता है और अमेरिका इस कानून में भारत जैसे रणनीतिक साझेदारों को लेकर क्या नरमी बरतता है।

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