आशीष सिन्हा
दक्षिण एशिया की कूटनीति में एक बड़ा बदलाव सामने आ रहा है। चीन और पाकिस्तान मिलकर एक नया क्षेत्रीय संगठन बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं, जो पुराने और निष्क्रिय हो चुके SAARC (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) की जगह ले सकता है। बताया जा रहा है कि इस नए संगठन का मकसद भारत के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना और क्षेत्र में नई रणनीतिक धुरी खड़ी करना है।
हाल ही में चीन के कुनमिंग शहर में चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच त्रिपक्षीय बैठक हुई, जिसे इसी कूटनीतिक प्रयास का हिस्सा माना जा रहा है। हालांकि बांग्लादेश ने इसे राजनीतिक गठबंधन मानने से इनकार किया है, लेकिन इस बैठक को लेकर नई दिल्ली और अन्य SAARC देशों में चिंता जरूर बढ़ गई है।
चीन-पाकिस्तान की रणनीति: भारत को घेरने की कोशिश?
जानकारों का मानना है कि यह कदम चीन की लंबे समय से चली आ रही रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह भारत को उसके ही पड़ोसी देशों से घेरने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान पहले से ही चीन के साथ मजबूत आर्थिक और सैन्य गठबंधन में है, और अब बांग्लादेश के शामिल होने से यह धुरी और मजबूत होती दिख रही है।
बांग्लादेश, जो पहले भारत के सबसे करीबी सहयोगियों में गिना जाता था, अब चीन के साथ व्यापार और रक्षा के मामलों में तेजी से नजदीक आ रहा है। यह भारत की ‘Neighbourhood First’ नीति के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
SAARC के ठप होने से खुला रास्ता
SAARC की आखिरी बैठक 2014 में नेपाल के काठमांडू में हुई थी। 2016 में इसे इस्लामाबाद में होना था, लेकिन भारत ने उरी आतंकी हमले के बाद इसका बहिष्कार कर दिया। इसके बाद बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान ने भी समर्थन वापस ले लिया और तब से यह संगठन निष्क्रिय हो गया है।
भारत ने इसके बाद BIMSTEC जैसे अन्य मंचों पर ध्यान देना शुरू किया, जिसमें पाकिस्तान शामिल नहीं है। वहीं, पाकिस्तान और चीन ने मिलकर CPEC (चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) जैसे प्रोजेक्ट्स के जरिए आपसी संबंध और गहरे किए हैं।
नए संगठन की रूपरेखा
पाकिस्तान के अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून के अनुसार, चीन और पाकिस्तान मिलकर एक नया क्षेत्रीय मंच बनाने पर गंभीर चर्चा कर रहे हैं, जिसमें बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव, भूटान और अफगानिस्तान जैसे देशों को भी शामिल किया जा सकता है। इस नए संगठन में भारत की भूमिका सीमित या गौण रहने की संभावना जताई जा रही है।
यह नया समूह व्यापार, कनेक्टिविटी और इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देगा, जो सीधे चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) से जुड़ा है।
बांग्लादेश का बचाव, लेकिन संदेह बरकरार
हालांकि बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार म. तौहीद हुसैन ने साफ कहा कि “हम कोई गठबंधन नहीं बना रहे हैं”, लेकिन कूटनीतिक सूत्रों के अनुसार, इस बैठक की पृष्ठभूमि कुछ और ही संकेत दे रही है।
भारत इस पूरे घटनाक्रम पर नजर रखे हुए है और इसे दक्षिण एशिया में अपनी भूमिका को कमजोर करने की साजिश के तौर पर देख रहा है।
निष्कर्ष: अगर यह नया संगठन अस्तित्व में आता है, तो यह न केवल भारत के लिए कूटनीतिक चुनौती होगा, बल्कि दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन को भी पूरी तरह से बदल सकता है।