– आशीष सिन्हा
भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ता में एक अनोखा लेकिन गंभीर मुद्दा सामने आया है — ‘नॉन-वेज मिल्क’। अमेरिका चाहता है कि भारत उसके डेयरी उत्पादों को अपने बाजार में जगह दे, लेकिन भारत ने साफ कहा है — “नॉन-वेज मिल्क मंजूर नहीं!”
क्या है ‘नॉन-वेज मिल्क’?
‘नॉन-वेज मिल्क’ का मतलब दूध में मांस नहीं है, बल्कि वो दूध जो ऐसे पशुओं से आता है जिन्हें मांस, हड्डी पाउडर, खून, मछली या पोल्ट्री वेस्ट जैसे जानवरों से बने आहार दिए जाते हैं। अमेरिका में यह आम बात है और कानूनी भी, लेकिन भारत में यह धार्मिक आस्था और खाद्य संस्कारों के बिल्कुल खिलाफ है।
भारत में गाय को पवित्र माना जाता है। करोड़ों लोग शुद्ध शाकाहारी आहार में विश्वास करते हैं। ऐसे में मांस-आधारित चारे से पली गाय का दूध उनके लिए ‘अशुद्ध’ और अस्वीकार्य है।
भारत क्यों कर रहा है विरोध?
🔸 धार्मिक कारण:
भारत की करीब 38% आबादी शाकाहारी है। दूध और उससे बने उत्पाद (जैसे दही, घी) पूजा-पाठ और रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा हैं। अगर गाय को मांस या खून से बना चारा दिया गया हो, तो उसका दूध धार्मिक रूप से स्वीकार्य नहीं।
🔸 आर्थिक कारण:
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है, और इससे 80 मिलियन यानी 8 करोड़ से ज्यादा ग्रामीण किसान जुड़े हैं। अमेरिका से सस्ता डेयरी उत्पाद आने से इन किसानों की आमदनी पर सीधा असर पड़ेगा।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर अमेरिका को खुली छूट दी गई तो भारत को सालाना ₹1 लाख करोड़ से ज्यादा का नुकसान हो सकता है और दूध की कीमतें 15% तक गिर सकती हैं।
अमेरिका की मांग क्या है?
अमेरिका का कहना है कि भारत का यह नियम (कि दूध उन्हीं गायों से होना चाहिए जिन्हें शाकाहारी आहार दिया गया हो) एक ट्रेड बैरियर है। वो चाहता है कि भारत यह सख्ती हटाए ताकि अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट्स को एक्सपोर्ट किया जा सके।
लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि यह आस्था और आजीविका का मुद्दा है — कोई समझौता नहीं होगा।
वार्ता में अड़चन बनी ‘नॉन-वेज मिल्क’
भारत और अमेरिका के बीच एक सीमित व्यापार समझौते की बातचीत अंतिम चरण में है, लेकिन ‘नॉन-वेज मिल्क’ अब बड़ी अड़चन बन गया है। दोनों देश समाधान की तलाश में हैं — जैसे सख्त प्रमाण पत्र देना या सीमित आयात की अनुमति — लेकिन कोई ठोस फैसला अब तक नहीं हुआ है।
क्या दांव पर है?
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आस्था बनाम व्यापार: भारत के लिए ये सिर्फ एक व्यापारिक मुद्दा नहीं, आस्था का सवाल है।
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किसानों की आजीविका: अमेरिकी आयात से देसी किसान बर्बाद हो सकते हैं।
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कूटनीतिक संतुलन: व्यापार समझौता अहम है, लेकिन अपनी सांस्कृतिक सीमाओं के भीतर।
‘नॉन-वेज मिल्क’ सुनने में भले अजीब लगे, लेकिन यह मुद्दा भारत की धार्मिक मान्यताओं, खाद्य संस्कृति और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से सीधा जुड़ा है। यही वजह है कि भारत ने अमेरिका को साफ संदेश दे दिया है — “दूध तभी स्वीकार होगा, जब गाय भी शुद्ध आहार पर हो!”