रिपोर्ट: आशीष सिन्हा
अमेरिका अब चाँद को न्यूक्लियर पावर से रोशन करने की तैयारी में है। NASA को आदेश दिया गया है कि वह 100 किलोवाट का न्यूक्लियर रिएक्टर साल 2030 तक चाँद की सतह पर लगाए — और ये योजना सीधी साइंस फिक्शन फिल्मों जैसी लगती है।
NASA के कार्यवाहक प्रशासक शॉन डफी ने इस मिशन को फास्ट-ट्रैक कर दिया है। उनका मक़सद है कि चाँद के साउथ पोल पर अमेरिकी बिजली जले और अमेरिका वहां स्थायी मौजूदगी कायम करे, इससे पहले कि चीन और रूस अपनी दावेदारी पेश करें।
जानकारों का कहना है कि चाँद का साउथ पोल आने वाले समय में धरती से बाहर का सबसे कीमती इलाका बन सकता है — जहां पानी की बर्फ, खनिज संसाधन और अब अमेरिकी बिजली होगी।
चाँद पर न्यूक्लियर पावर क्यों ज़रूरी?
चाँद पर एक दिन और एक रात लगभग 14-14 दिन के होते हैं। इतने लंबे अंधेरे में सोलर पैनल बिजली नहीं दे सकते। ऐसे में न्यूक्लियर रिएक्टर 24×7 लगातार बिजली देगा — जिससे अंतरिक्ष यात्री के रहने के लिए बेस, खनन मशीनें, रोवर्स और कम्युनिकेशन सिस्टम चलते रहेंगे।
NASA के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, “ये सिर्फ बिजली का मामला नहीं है, ये अमेरिका की अंतरिक्ष में अगली पीढ़ी की मौजूदगी को सुरक्षित करने का मिशन है।”
नई स्पेस रेस में पावर का खेल
चीन और रूस ने साल 2035 तक चाँद पर न्यूक्लियर रिएक्टर लगाने की योजना बना रखी है। अमेरिका चाहता है कि वह पहले पहुंचे और पावर सप्लाई के साथ-साथ वहां रणनीतिक पकड़ बना ले।
स्पेस पॉलिसी एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर कोई देश चाँद पर ऊर्जा पर नियंत्रण पा लेता है, तो वह वहां के सबसे अहम इलाकों तक पहुंच और उपयोग पर भी असर डाल सकता है।
न्यूक्लियर टेक्नॉलॉजी को लेकर चिंताएं
आलोचक चेतावनी दे रहे हैं कि अंतरिक्ष में यूरेनियम जैसी संवेदनशील चीज़ ले जाना जोखिम भरा है। साथ ही, Outer Space Treaty के तहत चाँद किसी देश की संपत्ति नहीं हो सकता, लेकिन वहां स्थायी ढांचे बनाने से यह नियम धुंधला हो सकता है।
कुछ विशेषज्ञ इसे “स्पेस कॉलोनियलिज़्म” की शुरुआत बताते हैं, हालांकि समर्थकों का कहना है कि चाँद पर कोई बस्ती या समाज नहीं है जिसे नुकसान पहुंचे।
मिशन का टाइमलाइन
समय सीमा | अगला कदम |
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30 दिन | NASA प्रोजेक्ट लीड चुनेगा |
60 दिन | कंपनियों से प्रस्ताव मांगे जाएंगे |
2030 | चाँद के साउथ पोल पर न्यूक्लियर रिएक्टर चालू |
अगर ये मिशन सफल रहा, तो यह सिर्फ पावर प्लांट नहीं होगा — बल्कि चाँद पर अमेरिका की स्थायी मौजूदगी का सबूत होगा और मंगल व आगे की अंतरिक्ष यात्राओं के लिए लॉन्चपैड भी।
जैसा कि शॉन डफी ने कहा, “हम वहां पहले पहुंचना चाहते हैं, और जब पहुंचें तो लाइट्स चालू रहनी चाहिए।”
— चाँद का न्यूक्लियर रिएक्टर एक नज़र में
बिंदु | जानकारी |
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पावर आउटपुट | 100 किलोवाट |
लक्ष्य वर्ष | 2030 |
स्थान | चाँद का साउथ पोल |
उद्देश्य | बेस, खनन, रोवर्स और कम्युनिकेशन के लिए लगातार बिजली |
प्रतिद्वंद्वी | चीन–रूस का संयुक्त रिएक्टर प्लान (2035) |
वर्तमान स्थिति | आदेश जारी, 60 दिनों में कंपनियों से प्रस्ताव मंगाए जाएंगे |
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चाँद पर 14 दिन लंबी रात होती है, जिससे सोलर पैनल बेकार हो जाते हैं।
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न्यूक्लियर रिएक्टर दिन-रात, लगातार बिजली देगा।
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यह बेस, रोवर्स, खनन और वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं को ऊर्जा देगा।
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साउथ पोल में पानी की बर्फ और संसाधन हैं, जिनसे जीवन और ईंधन संभव।
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यह अमेरिका को चाँद पर रणनीतिक बढ़त देगा।
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आगे के मंगल मिशनों और अंतरिक्ष उद्योग के लिए नींव तैयार करेगा।