नई दिल्ली: लोकसभा में बुधवार को जब गृह मंत्री अमित शाह ने तीन अहम बिल पेश किए तो माहौल गरमा गया। इन बिलों में साफ प्रावधान है कि अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई मंत्री गंभीर अपराध में गिरफ्तार होकर 30 दिन से ज़्यादा जेल में रहता है, तो उसे अपनी कुर्सी छोड़नी होगी।
क्या कहते हैं बिल
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संविधान (130वां संशोधन) बिल 2025 – इसमें प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और राज्य मंत्री शामिल होंगे।
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गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज (संशोधन) बिल 2025 – केंद्रशासित प्रदेशों के लिए प्रावधान।
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जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) बिल 2025 – जम्मू-कश्मीर में लागू व्यवस्था में बदलाव।
कानून बनने के बाद, अगर कोई नेता ऐसे अपराध में पकड़ा जाता है जिसकी सज़ा कम से कम 5 साल हो सकती है, और 30 दिन से ज़्यादा हिरासत में रहता है, तो उसे पद छोड़ना अनिवार्य होगा।
सरकार का तर्क
अमित शाह ने कहा, “सरकारें जेल से नहीं चल सकतीं। यह बिल लोकतंत्र और सुशासन को मज़बूत करेगा।”
उन्होंने उदाहरण दिए — दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, जो शराब नीति केस में ईडी की गिरफ्तारी के बावजूद सीएम पद पर बने रहे; और तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी, जो 240 दिन जेल में रहकर भी मंत्री बने रहे।
विपक्ष का गुस्सा
जैसे ही बिल पेश हुए, विपक्ष भड़क उठा। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और AIMIM नेताओं ने इसे “संविधान विरोधी” और “तानाशाही” क़रार दिया।
सांसदों ने नारेबाज़ी की, बिल की प्रतियां फाड़ीं और कागज़ के गोले तक फेंक दिए।
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा, “यह बिल लोकतंत्र की बुनियाद पर हमला है।”
आगे क्या?
भारी हंगामे के बीच शाह ने कहा कि बिलों को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजा जाएगा, जो रिपोर्ट देकर आगे की राह तय करेगी।