ट्रंप का टैरिफ़ भारत को दे रहा है बदलाव का सुनहरा मोड़
एक फैसला जो भारत की दिशा बदल सकता है
वॉशिंगटन से आई खबर ने दुनिया का ध्यान खींच लिया। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय सामानों पर 50% तक टैरिफ़ बढ़ाने का ऐलान कर दिया। निर्यातकों से लेकर निवेशकों और नीति-निर्माताओं तक, हर कोई हैरान रह गया। पहली नज़र में यह निर्णय भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव जैसा लगता है—नौकरियों, बाज़ारों और अरबों डॉलर के व्यापार के लिए चुनौतीपूर्ण।
लेकिन अगर गहराई से देखा जाए, तो यह केवल एक संकट नहीं बल्कि एक बड़ा अवसर है। यह भारत को अपनी पुरानी निर्भरताओं से मुक्त होकर नए रास्ते खोजने और आर्थिक सुधारों को गति देने का मौका देता है।
असर: भारतीय निर्यात पर दबाव
सबसे अधिक प्रभाव उन क्षेत्रों पर पड़ा है जो भारत की पहचान रहे हैं—टेक्सटाइल, रत्न-आभूषण, चमड़ा, समुद्री उत्पाद और हैंडीक्राफ्ट। इन उद्योगों पर करोड़ों लोगों की आजीविका टिकी हुई है। तिरुपुर, सूरत और मोरादाबाद जैसे शहरों में हज़ारों परिवार इनसे जुड़े हैं।
50% टैरिफ़ का सीधा मतलब है कि अमेरिकी बाज़ार में भारतीय उत्पाद अब महंगे हो जाएंगे। वहां के उपभोक्ता कीमत को लेकर बेहद संवेदनशील हैं, इसलिए ऑर्डर रद्द होना और मुनाफ़े में गिरावट तय है। महामारी के बाद धीरे-धीरे गति पकड़ रही अर्थव्यवस्था के लिए यह स्थिति असुविधाजनक है।
अवसर: नई दिशा की संभावना
इतिहास गवाह है कि संकट अक्सर परिवर्तन की सबसे बड़ी प्रेरणा बनता है। भारत अब अपने निर्यात का बड़ा हिस्सा अमेरिका पर टिका नहीं रख सकता। यह समय है—
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नए बाज़ारों में पैठ बनाने का — यूरोप, लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और ASEAN देश बड़ी संभावनाओं से भरे हैं।
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मूल्य श्रृंखला में ऊपर जाने का — सस्ते सप्लायर की छवि से आगे बढ़कर, भारत को ब्रांडेड और उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों का केंद्र बनना होगा।
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घरेलू मांग को मज़बूत करने का — टैक्स सुधार, क्रेडिट की सहज उपलब्धता और ‘मेड इन इंडिया’ को भीतर से बढ़ावा देकर।
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संरचनात्मक सुधारों को तेज़ करने का — टैक्स ढांचे को सरल बनाना, लालफीताशाही घटाना और इंफ्रास्ट्रक्चर मज़बूत करना।
भारत एक नए मोड़ पर
भारत पहले भी ऐसे वैश्विक दबावों से गुज़रा है। 1991 का भुगतान संकट हमें आर्थिक उदारीकरण की ओर ले गया। 2008 की वैश्विक मंदी ने हमारे बैंकिंग और नियामक ढांचे को और मजबूत बनाया। अब ट्रंप का टैरिफ़ भारत को फिर एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा कर रहा है।
अगर भारत इस चुनौती को अवसर में बदले, तो वह वैश्विक सप्लाई चेन में चीन का सशक्त विकल्प बन सकता है। और यही वह समय है जब पश्चिमी देश चीन पर निर्भरता घटाने के लिए नए साझेदार ढूंढ रहे हैं।
नीतिगत पहल: तात्कालिक राहत से आगे
सरकार को निर्यातकों के लिए तुरंत सहारा देना होगा—क्रेडिट गारंटी, ड्यूटी रिबेट और आसान ऋण की सुविधा। लेकिन असली ज़रूरत है दीर्घकालिक रणनीति की—
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संरचनात्मक बदलाव — जीएसटी आसान बनाना, श्रम कानूनों को लचीला करना और सिंगल-विंडो क्लीयरेंस।
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उद्योगों का आधुनिकीकरण — डिज़ाइन, तकनीक और ब्रांडिंग में निवेश।
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तेज़ व्यापार कूटनीति — नए बाज़ारों में एग्रीमेंट और टैरिफ़ रियायतें हासिल करना।
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आत्मनिर्भरता के साथ वैश्विक पैमाना — ‘मेड इन इंडिया’ को केवल नारा नहीं, बल्कि प्रतिस्पर्धात्मक ताकत बनाना।
व्यापार जगत की भूमिका
केवल सरकारी मदद से आगे बढ़ना पर्याप्त नहीं होगा। भारतीय उद्योग जगत को चाहिए कि—
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सप्लाई चेन और ग्राहकों में विविधता लाएं।
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डिज़ाइन, टेक्नोलॉजी और ब्रांडिंग में निवेश करें।
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उन देशों में उत्पादन इकाइयां स्थापित करें जहां टैरिफ़ का असर कम है।
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स्थिरता और कंप्लायंस को अपनी नई ताकत बनाएं।
चुनौती से अवसर तक: छलांग का मौका
ट्रंप का टैरिफ़ निर्णय निश्चित रूप से भारत की अर्थव्यवस्था पर दबाव डालता है। लेकिन यही चुनौती भारत को अपने ढांचे को सुधारने, आत्मनिर्भर बनने और वैश्विक स्तर पर नई पहचान बनाने के लिए प्रेरित कर सकती है।
यह फैसला भारत के लिए ठहराव नहीं, बल्कि आगे की उड़ान का संकेत है। असली सवाल यही है—क्या हम इसे बोझ मानेंगे या इसे नए भारत के उदय का अवसर बनाएंगे?