News Desk: तियानजिन में चल रहे शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन पर पूरी दुनिया की नज़र है। पीएम नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जब एक मंच पर आए, तो सबसे ज़्यादा बेचैनी वॉशिंगटन में देखी गई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) इस पूरे घटनाक्रम पर क़रीबी नज़र रखे हुए हैं।
भारत-चीन की नज़दीकी से बढ़ी चिंता
ट्रंप ने हाल ही में भारतीय सामानों पर 50% टैरिफ़ ठोंका था। लेकिन इसके ठीक बाद मोदी और शी ने सीमा पर शांति, सीधे उड़ानें और कैलाश-मानसरोवर यात्रा शुरू करने जैसे बड़े ऐलान कर दिए। भारत-चीन की बढ़ती समझदारी वॉशिंगटन की रणनीति के लिए सिरदर्द बन रही है।
‘मल्टीपोलर वर्ल्ड’ का संदेश
SCO मंच से एक और साफ़ संदेश गया—दुनिया सिर्फ़ अमेरिका पर निर्भर नहीं है। रूस, ईरान, तुर्की और मध्य एशियाई देश एक सुर में बहुध्रुवीय व्यवस्था (Multipolar World) की बात कर रहे हैं। यह अमेरिका की दबदबे वाली राजनीति को सीधी चुनौती है।
भारत का संतुलन साधना
ट्रंप का दबाव कि भारत रूसी तेल खरीदना कम करे, उल्टा असर डाल रहा है। दिल्ली अब और भी संतुलन साध रही है—मॉस्को से ऊर्जा संबंध मज़बूत कर रही है और बीजिंग से रिश्तों को पटरी पर ला रही है।
ऊर्जा और डॉलर से बाहर व्यापार
SCO देशों के बीच डॉलर से हटकर व्यापार की चर्चाएँ तेज़ हैं। भारत-रूस ऊर्जा डील और चीन की खुली समर्थन की वजह से यह ट्रेंड वॉशिंगटन को और बेचैन कर रहा है।
समय ही सबसे अहम
सात साल बाद मोदी का चीन दौरा, सीमा पर शांति की तस्वीर और लोगों के लिए यात्रा-उड़ानों का फिर शुरू होना—ये सब उस समय हुआ जब ट्रंप ने टैरिफ़ का हथियार चलाया। ऐसे में वॉशिंगटन की बेचैनी समझी जा सकती है।
SCO मंच पर ट्रंप मौजूद नहीं थे, लेकिन उनकी टेंशन साफ़ झलक रही है। अगर भारत ने इस बार बहुध्रुवीय साझेदारी की राह पकड़ी, तो एशिया में अमेरिका (US)की पकड़ ढीली पड़ सकती है।