मिथलेश दास
झारखण्ड एक ऐसा राज्य है जहाँ अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। इस राज्य की पहचान न केवल इसके खनिज संसाधनों, हरे-भरे जंगलों और आदिवासी संस्कृति से होती है, बल्कि इसकी भाषायी विविधता इसे विशेष बनाती है। यहाँ खोरठा, संताली, मुंडारी, नागपुरी, कुड़ुख, हो, पंचपरगनिया, बंगाली, भोजपुरी, मैथिली और अंगिका जैसी कई भाषाएँ प्रचलित हैं।
इन भाषाओं के बीच संवाद का माध्यम बनने का कार्य हिंदी करती है। यह एक ऐसी भाषा बन गई है जो न केवल अलग-अलग समुदायों के लोगों को जोड़ती है, बल्कि प्रशासन, शिक्षा और मीडिया के क्षेत्र में भी सभी को एक सूत्र में बांधती है। इतनी भाषाओं के बीच एक आम भाषा की जरूरत हमेशा महसूस होती रही है, ताकि लोग एक-दूसरे से आसानी से संवाद कर सकें। यही आवश्यकता हिंदी को झारखण्ड में एक सेतु भाषा बनाती है।
हिंदी का सामाजिक और दैनिक उपयोग
हिंदी का इस्तेमाल आम बोलचाल में बड़ी सहजता से होता है। गाँव से लेकर शहर तक, लोग विभिन्न मातृभाषाओं के बावजूद हिंदी में बातचीत करते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि हिंदी ने झारखण्ड में एकता और समझ का माध्यम बनने में बड़ी भूमिका निभाई है।
शिक्षा में हिंदी की भूमिका
शिक्षा के क्षेत्र में हिंदी अत्यंत महत्वपूर्ण है। राज्य के अधिकांश स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा का माध्यम हिंदी है। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक, खासकर सरकारी स्कूलों में, बच्चे हिंदी के माध्यम से पढ़ाई करते हैं। गाँवों के बच्चे जहाँ घर में स्थानीय भाषा बोलते हैं, वहीं स्कूल में हिंदी सीखते हैं और ज्ञान को आगे बढ़ाते हैं। हिंदी उन्हें राज्य, देश और दुनिया से जोड़ने का काम करती है।
मीडिया और प्रशासन में हिंदी
मीडिया यानी समाचार पत्र, टेलीविजन, रेडियो और इंटरनेट में भी हिंदी का वर्चस्व है। झारखण्ड के प्रमुख अखबार हिंदी में प्रकाशित होते हैं और व्यापक पाठक वर्ग तक पहुँचते हैं। टीवी चैनलों पर समाचार बुलेटिन और कार्यक्रम प्रायः हिंदी में होते हैं। इसके साथ ही, सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी हिंदी प्रमुख संवाद भाषा बन चुकी है।
प्रशासनिक व्यवस्था में भी हिंदी की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। झारखण्ड सरकार के आदेश, अधिसूचनाएँ, योजनाएँ और सरकारी पत्र व्यवहार हिंदी में होते हैं। इससे आम जनता को सरकारी योजनाओं और नीतियों की जानकारी प्राप्त करना आसान होता है। न्याय व्यवस्था में, विशेषकर निचली अदालतों में, हिंदी का प्रयोग जनता को न्याय प्रक्रिया समझने और उसमें भाग लेने में मदद करता है।
स्थानीय भाषाओं का संरक्षण आवश्यक
हालांकि हिंदी की भूमिका सराहनीय है, लेकिन स्थानीय भाषाओं और बोलियों का सम्मान और संरक्षण भी उतना ही जरूरी है। संताली, मुंडारी, हो, खोरठा जैसी भाषाएँ झारखण्ड की सांस्कृतिक पहचान हैं। यदि केवल हिंदी को प्रमुखता दी जाए, तो भाषाई असंतुलन पैदा हो सकता है। इसलिए हिंदी को एक सेतु भाषा के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि किसी पर थोपे जाने वाली भाषा के रूप में।
साहित्य और सांस्कृतिक आदान-प्रदान
झारखण्ड में हिंदी और स्थानीय भाषाओं के बीच साहित्यिक आदान-प्रदान बढ़ा है। कई स्थानीय लेखकों की रचनाएँ हिंदी में अनूदित हो रही हैं, और हिंदी लेखक भी झारखण्ड की लोकसंस्कृति और जनजीवन को अपनी रचनाओं में शामिल कर रहे हैं। इससे भाषा के साथ-साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी होता है, जो बहुभाषिक एकता को मजबूत करता है।
डिजिटल युग में हिंदी
डिजिटल युग में हिंदी की उपयोगिता लगातार बढ़ रही है। मोबाइल और इंटरनेट अब झारखण्ड के दूरदराज गाँवों तक पहुँच चुके हैं। सरकारी सेवाएँ, योजनाओं की जानकारी और ऑनलाइन पढ़ाई की सामग्री हिंदी में उपलब्ध हैं। इससे ग्रामीण महिलाएँ, युवा और किसान सरकारी योजनाओं का लाभ ले पा रहे हैं और अपनी जरूरतों को बेहतर समझ पा रहे हैं। हिंदी डिजिटल जागरूकता का प्रभावी माध्यम बन चुकी है।
चुनौतियाँ और समाधान
हालांकि हिंदी की भूमिका महत्वपूर्ण है, कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं:
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कई स्थानीय भाषाओं में स्कूलों की कमी है, जिससे बच्चों को मातृभाषा में पढ़ने का अवसर नहीं मिलता।
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सरकारी कार्यों में जनजातीय भाषाओं की भागीदारी कम है।
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शहरी और ग्रामीण इलाकों में बोली जाने वाली हिंदी में भिन्नता देखी जाती है।
इन समस्याओं से निपटने के लिए ठोस प्रयास आवश्यक हैं। सरकार को चाहिए कि स्कूलों में द्विभाषिक शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा दें, जहाँ बच्चों को उनकी मातृभाषा और हिंदी दोनों पढ़ाई जाएँ। मीडिया में हर भाषा को समान स्थान मिले और सरकारी कार्यक्रमों में स्थानीय भाषाओं का प्रयोग बढ़ाया जाए।
झारखण्ड जैसे बहुभाषी राज्य में हिंदी एक सेतु भाषा के रूप में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह न केवल संवाद का माध्यम है, बल्कि लोगों के बीच सहयोग, समझ और एकता की भावना को भी बढ़ाती है। परंतु, यह सेतु तभी मजबूत रह सकता है जब सभी भाषाओं का सम्मान करते हुए, उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले। हिंदी को एक सहयोगी और समावेशी भाषा के रूप में अपनाना ही झारखण्ड की भाषायी विविधता को एकता में बदलने का सबसे उपयुक्त तरीका है।