रियाद/इस्लामाबाद: Pakistan और Saudi Arabia ने एक ऐतिहासिक स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट (SMDA) पर दस्तख़त किए हैं। इस समझौते की मूल शर्त है: “किसी एक देश पर हमला, दोनों पर हमला माना जाएगा।”
यह रक्षा संधि प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की रियाद यात्रा के दौरान क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की मौजूदगी में साइन हुई। इसे दोनों देशों के बीच दशकों से चले आ रहे सैन्य और रणनीतिक रिश्तों को औपचारिक ढांचा देने वाला कदम माना जा रहा है।
समझौते की मूल बात
समझौते का नारा ही सबसे बड़ा संदेश है—“किसी एक पर हमला, दोनों पर हमला।” इसका मक़सद साफ़ है: पाकिस्तान और सऊदी अरब अब अपनी सुरक्षा को एक-दूसरे से अलग नहीं मानेंगे।
Saudi Arabia and Pakistan signed a formal mutual defence pact on Wednesday that commits both nations to treat any attack on one as an attack on the other, in a move analysts say strengthens regional deterrence amid growing instability in the Gulf.https://t.co/w8q16q4WuI pic.twitter.com/Jd3IDmkavZ
— The CBIJ (@TheCBIJ) September 17, 2025
तनावपूर्ण हालात में समझौता
यह रक्षा समझौता ऐसे समय में हुआ है जब:
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भारत और पाकिस्तान के बीच पहलगाम आतंकी हमले और भारत की ऑपरेशन सिंदूर के बाद तनाव बढ़ा हुआ है।
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खाड़ी देशों में अमेरिका पर भरोसा कमज़ोर पड़ रहा है, खासकर 9 सितंबर को इज़राइल के दोहा हमले के बाद।
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ठीक दो दिन पहले, अरब लीग और ओआईसी ने मिलकर इज़राइल की कार्रवाई की निंदा की थी।
भारत ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह राष्ट्रीय हितों की रक्षा और सभी मोर्चों पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए “हर ज़रूरी क़दम” उठाएगा।
पुराना रिश्ता, नई दिशा
पाकिस्तान–सऊदी रक्षा साझेदारी कोई नई बात नहीं है।
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1967: पहला सुरक्षा समझौता हुआ।
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1969: पाकिस्तानी पायलटों ने अल-वदिया युद्ध में सऊदी जेट उड़ाए।
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1979: मक्का की मस्जिद-ए-हरम पर कब्ज़ा करने वाले आतंकियों के ख़िलाफ़ पाकिस्तानी कमांडो ने सऊदी सेना की मदद की।
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1980 के दशक: 15,000 से ज़्यादा पाकिस्तानी सैनिक सऊदी अरब में तैनात रहे।
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1991 खाड़ी युद्ध: पाकिस्तानी सेना ने फिर सऊदी सीमा की रक्षा की।
दोनों देशों के बीच लगातार सैन्य अभ्यास, ट्रेनिंग प्रोग्राम और खुफ़िया सहयोग चलते रहे हैं।
एटमी सवाल और रणनीतिक असर
लंबे समय से यह अटकलें लगती रही हैं कि सऊदी अरब ने पाकिस्तान की परमाणु परियोजना को आर्थिक मदद दी थी, हालांकि दोनों देश इसे नकारते हैं। यही “रणनीतिक धुंध” उनके रिश्तों को और अहम बना देती है।
असर
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह समझौता खाड़ी और दक्षिण एशिया दोनों में शक्ति संतुलन को बदल सकता है।
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सऊदी अरब के लिए यह अमेरिका पर निर्भरता घटाने का संकेत है।
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पाकिस्तान के लिए यह इस्लामी दुनिया का “रक्षा स्तंभ” बनने का अवसर है।
अब नज़र इस पर होगी कि यह नारा—“किसी एक पर हमला, दोनों पर हमला”—सिर्फ़ प्रतीक बनकर रह जाता है या सच में संयुक्त तैनाती और रक्षा कार्रवाई तक पहुँचता है।

