सुप्रीम कोर्ट में वकील ने CJI पर जूता क्यों फेंका — जानिए पूरी कहानी

सुप्रीम कोर्ट में वकील ने CJI पर जूता क्यों फेंका — जानिए पूरी कहानी
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक चौंकाने वाली घटना हुई, जब 72 वर्षीय अधिवक्ता राकेश किशोर ने कोर्ट नंबर-1 में बैठे मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. आर. गवई की ओर जूता फेंकने की कोशिश की। हालांकि जूता न्यायाधीश तक नहीं पहुंचा और कोर्ट की सुरक्षा ने तुरंत उन्हें पकड़ लिया, लेकिन यह घटना पूरे न्यायिक जगत को हिला गई।

आस्था और आक्रोश की टकराहट

राकेश किशोर का कहना है कि यह घटना अचानक नहीं हुई। 16 सितंबर को जब उन्होंने खजुराहो में भगवान विष्णु की टूटी हुई मूर्ति की पुनःस्थापना की याचिका दायर की थी, तो CJI गवई ने उसे सुनने से इनकार कर दिया था।
सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा था — “आप तो भगवान विष्णु के भक्त हैं, उनसे ही प्रार्थना कर लीजिए।”

यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर विवाद का कारण बनी और कई लोगों ने इसे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला कहा।
हालांकि बाद में CJI ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा था कि उनका किसी धर्म का अपमान करने का कोई इरादा नहीं था।
किशोर का कहना है, “उस दिन के बाद से मुझे नींद नहीं आई। उन्होंने भगवान विष्णु का मजाक उड़ाया। मैं बहुत आहत था।”

WHO में काम कर चुके हैं वकील

राकेश किशोर 2009 से सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्य हैं। वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पीएचडी कर चुके हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साथ भी काम कर चुके हैं। उन्होंने कहा, “मैं धर्म का अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकता। मैं जानता था कि मुझे इसकी सज़ा मिलेगी, फिर भी मैंने कदम उठाया।”

बरेली और ‘बुलडोजर न्याय’ से नाराज़गी

किशोर का कहना है कि उन्हें CJI के हाल के बयान से भी नाराज़गी थी, जिसमें उन्होंने मॉरीशस में ‘बुलडोजर न्याय’ की आलोचना की थी। किशोर का कहना है, “मैं बरेली का रहने वाला हूं। वहां अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई हो रही है। अगर योगी सरकार कार्रवाई कर रही है, तो कोर्ट को उसमें दखल नहीं देना चाहिए।”

कोर्ट में मचा हड़कंप

दशहरा अवकाश के बाद जब कोर्ट की कार्यवाही शुरू हुई, तो किशोर अचानक उठे और जूता फेंक दिया। सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत उन्हें पकड़ लिया। CJI गवई शांत रहे और थोड़ी देर बाद कार्यवाही फिर शुरू हो गई।

पुलिस ने वकील को हिरासत में लिया, पूछताछ की और बाद में छोड़ दिया। किशोर बोले, “मैं जेल जाने के लिए भी तैयार था। उन्होंने मेरा फोन चेक किया और कॉल डिटेल्स नोट कीं। मुझे कोई पछतावा नहीं है।”

बार काउंसिल की सख्त कार्रवाई

घटना के बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने राकेश किशोर की वकालत पर रोक लगाते हुए अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और कई वरिष्ठ वकीलों ने इस हरकत को “निंदनीय” और “न्यायिक मर्यादा के खिलाफ” बताया।

प्रधानमंत्री मोदी और नेताओं की कड़ी निंदा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्य न्यायाधीश डी. आर. गवई से फोन पर बात की और इस घटना पर गहरी नाराज़गी जताई।
उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा,
“सुप्रीम कोर्ट में आज CJI पर हुए हमले ने हर भारतीय को क्रोधित किया है। ऐसे निंदनीय कृत्यों के लिए समाज में कोई जगह नहीं है। यह अत्यंत शर्मनाक है।”

प्रधानमंत्री ने CJI गवई के शांत और संयमित व्यवहार की सराहना की और कहा कि यह “न्याय और भारतीय संविधान की भावना के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।”
अन्य कई नेताओं ने भी इस हमले की निंदा करते हुए सुप्रीम कोर्ट में सुरक्षा व्यवस्था और मजबूत करने की मांग की।

गहरी बहस: आस्था बनाम कानून

यह घटना केवल कोर्ट का मामला नहीं, बल्कि आस्था और कानून के टकराव का प्रतीक बन गई है।
किशोर का कदम धार्मिक भावनाओं से प्रेरित हो सकता है, लेकिन न्याय व्यवस्था में इस तरह की हरकत को गंभीर अपराध माना जाता है।

यह वाकया याद दिलाता है कि न्यायालय आस्था और भावनाओं से नहीं, कानून से चलता है।
जो भी हो, यह घटना आने वाले समय में न्यायिक मर्यादा और धार्मिक संवेदनशीलता के बीच संतुलन पर गहरी बहस जरूर छेड़ेगी।

संक्षेप में:
एक वकील की आस्था ने उसे कानून की सीमा लांघने पर मजबूर कर दिया — लेकिन इस घटना ने पूरे देश को सोचने पर विवश कर दिया है कि जब भावनाएं विवेक पर हावी हो जाएं, तो नुकसान केवल व्यक्ति का नहीं, संस्थाओं का भी होता है।

Ashis Sinha

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