दीपोत्सव (Deepotsav) भारत का सबसे आलोकित पर्व है, परंतु इसका अर्थ केवल दीप जलाना नहीं, बल्कि उस अंधकार को मिटाना है जो हमारे अंतर्मन में स्वार्थ, ईर्ष्या और असहिष्णुता के रूप में घर कर गया है। जब मनुष्य का मन भीतर से धुँधला पड़ जाता है, तब बाहरी रोशनी भी फीकी लगने लगती है। इसलिए दीपोत्सव का सच्चा संदेश यही है—पहले मन के अंधकार को दूर करें, तभी संसार वास्तव में प्रकाशमय बन सकता है।
यह पर्व हमें स्मरण कराता है कि असली दीप बाहर नहीं, भीतर जलाना है—वह भी सत्य, करुणा और सेवा की ज्योति से। जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपने अंतःकरण में सच्चाई, सहानुभूति और भाईचारे का दीप प्रज्वलित करेगा, उसी दिन समाज अपने आप जगमगा उठेगा। वास्तव में दीपावली का आधार ही आत्म-प्रकाश से समाज-प्रकाश है।
यह पर्व भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में प्रकाश की विजय का प्रतीक है। यह हमें श्रीराम के अयोध्या लौटने की उस दिव्य रात्रि की याद दिलाता है, जब सत्य और धर्म का प्रकाश असत्य और अधर्म के अंधकार पर विजय प्राप्त करता है। तभी से दीपावली यह संदेश देती आई है कि प्रकाश का मार्ग ही मनुष्य का सच्चा मार्ग है।
आज जब भारतीय समाज जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के नाम पर विभाजित होकर अविश्वास और असंवेदनशीलता की छाया में उलझा हुआ है, तब दीपोत्सव का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह केवल घर सजाने या मिठाई बाँटने का अवसर नहीं, बल्कि दूसरों के जीवन में उजाला बाँटने का अवसर है। यदि हम किसी जरूरतमंद के घर में मुस्कान पहुँचा सकें, किसी गरीब या वंचित बच्चे को दीपोत्सव मनाने का अवसर दे सकें, किसी निराश व्यक्ति को सहारा दे सकें या किसी वृद्धाश्रम में खुशियाँ बाँट सकें—तभी यह पर्व सच्चे अर्थों में सार्थक होगा।
दीपावली का प्रकाश हमें यह भी सिखाता है कि प्रकाश की कोई सीमा नहीं होती—वह सबका होता है और सबको समान रूप से आलोकित करता है। सूर्य से हमने यही सीखा है कि वह कभी भेदभाव नहीं करता। इसी प्रकार दीपोत्सव हमें केवल अपने सुख में सीमित रहने की नहीं, बल्कि दूसरों के सुख-दुःख में सहभागी बनने की प्रेरणा देता है।
आज के युग में इस पर्व का एक और महत्वपूर्ण संदेश है—पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी। जब हम अपने देश की मिट्टी से बने दीए जलाते हैं, स्थानीय कलाकारों द्वारा निर्मित प्राकृतिक सजावटी वस्तुओं का उपयोग करते हैं और हरित आतिशबाजी के साथ उत्सव मनाते हैं, तब हम न केवल प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करते हैं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक विरासत का सम्मान भी करते हैं। वास्तव में संयमित, पर्यावरण-मित्र और स्वदेशी दीपावली ही हमारी सभ्यता की सच्ची पहचान है।
दीपावली का प्रकाश यह भी सिखाता है कि सच्चा उत्सव तभी है जब मनुष्य का मन भीतर और बाहर दोनों से प्रफुल्लित हो, और सत्य, सेवा व सद्भाव की लौ से अपना दीप जलाए। तभी समाज में स्थायी उजाला संभव है, जैसा कि उपनिषदों में कहा गया है—
“तमसो मा ज्योतिर्गमय”,
अर्थात् हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
अतः इस दीपावली पर केवल घर नहीं, मन भी रोशन करें, क्योंकि परिवर्तन की शुरुआत हमेशा भीतर से होती है—और वही आत्मिक प्रकाश अंततः सामाजिक प्रकाश में परिणत हो जाता है।
(लेखक: प्रो. (डा.) मनमोहन प्रकाश)