ट्रंप का दांव फेल! भारतीय मूल के मुस्लिम ज़ोहरान ममदानी बने न्यूयॉर्क सिटी के पहले मेयर

ट्रंप का दांव फेल! भारतीय मूल के मुस्लिम ज़ोहरान ममदानी बने न्यूयॉर्क सिटी के पहले मेयर
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न्यूयॉर्क : अमेरिकी राजनीति में इतिहास बन गया है — ज़ोहरान ममदानी, एक 34 वर्षीय भारतीय मूल के मुस्लिम नेता, अब न्यूयॉर्क सिटी के पहले भारतीय-अमेरिकी मुस्लिम मेयर बन गए हैं। उन्होंने पूर्व गवर्नर एंड्रयू क्यूमो (जिन्हें डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन मिला था) और रिपब्लिकन उम्मीदवार कर्टिस स्लिवा को मात दी।

ममदानी ने 50.2% वोट (7,82,403 वोट) हासिल किए, जबकि क्यूमो को 41.5% वोट (6,46,951 वोट) मिले। यह चुनाव पिछले 50 सालों में न्यूयॉर्क का सबसे ज़्यादा वोटिंग वाला मेयर चुनाव रहा।

अब ममदानी 1 जनवरी को पदभार संभालेंगे और मौजूदा मेयर एरिक एडम्स की जगह लेंगे — दिलचस्प बात यह है कि एडम्स ने खुद क्यूमो को वोट दिया था!

विजय के बाद ममदानी ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पहले ट्विटर) पर एक वीडियो शेयर किया जिसमें सिटी हॉल स्टेशन पर लिखा था — “Zohran For New York City” — यानी “ज़ोहरान न्यूयॉर्क के लिए”!

बर्नी सैंडर्स से प्रेरित डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट, ममदानी ने अपने चुनाव अभियान में वादा किया था —

  • फ्री बस सेवा,

  • किराया फ्रीज़,

  • सिटी-स्वामित्व वाले किराना स्टोर,

  • और 2030 तक न्यूनतम वेतन $30 प्रति घंटा

उनका फोकस आम न्यूयॉर्कवासियों की परेशानियों पर रहा — बढ़ती महंगाई, आवास संकट, और अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई।

विदेश नीति पर ममदानी ने गाज़ा में युद्धविराम, गैरकानूनी इस्राइली बस्तियों के विरोध और BDS मूवमेंट (बॉयकॉट, डाइवेस्टमेंट, सैंक्शन्स) का समर्थन किया है। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि वे यहूदी विरोधी नहीं हैं और इस्राइल के अस्तित्व के अधिकार को मानते हैं।

ममदानी प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक मीरा नायर और विद्वान महमूद ममदानी के बेटे हैं। पहले वे न्यूयॉर्क स्टेट असेंबली के सदस्य थे और अपने इलाके से बाहर ज़्यादा जाने-पहचाने नहीं थे, लेकिन उनका ग्रासरूट्स कैंपेन धीरे-धीरे पूरे शहर में लोकप्रिय हो गया।

चुनाव से पहले ट्रंप ने चेतावनी दी थी कि अगर ममदानी जीते, तो न्यूयॉर्क को “आर्थिक और सामाजिक तबाही” का सामना करना पड़ेगा और फेडरल फंडिंग रोक दी जाएगी — लेकिन नतीजा इसका उल्टा हुआ!

ज़ोहरान ममदानी की जीत न सिर्फ़ ट्रंप और क्यूमो के गठजोड़ को करारा झटका है, बल्कि ये अमेरिका की राजनीति में एक नया अध्याय भी खोलती है — जहां युवा, प्रवासी और कामगार तबकों की आवाज़ अब सत्ता तक पहुंच चुकी है।

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