बोकारो : झारखंड में ज़मीन घोटालों की फेहरिस्त में एक और बड़ा खुलासा सामने आया है। CID (क्राइम इंवेस्टिगेशन डिपार्टमेंट) ने शनिवार को इज़हार हुसैन और अख्तर हुसैन को गिरफ्तार किया है। दोनों पर तेतुलिया मौजा (बोकारो) में 100 एकड़ से अधिक वन भूमि को फर्जी दस्तावेज़ों के ज़रिए खरीदने और बेचने का आरोप है।
जानकारी के अनुसार, यह ज़मीन पहले बोकारो स्टील प्लांट (BSP) ने वन विभाग को वापस सौंपी थी, लेकिन बाद में भूमाफियाओं और कुछ सरकारी अफसरों की मिलीभगत से इसे निजी लोगों को बेच दिया गया। पूरे घोटाले में भूमि माफिया, सरकारी कर्मचारी और BSP के कुछ अधिकारियों के शामिल होने की आशंका है।
इस मामले की जांच CID के साथ-साथ प्रवर्तन निदेशालय (ED) भी कर रहा है। मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है, जिसने झारखंड सरकार को असली ज़मीन दस्तावेज़ कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया है।
CID और वन विभाग की संयुक्त जांच के दौरान चास अंचल कार्यालय में ज़मीन के पुराने रजिस्टरों की जांच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। वॉल्यूम 60 से 75 तक के पन्ने, जिनमें लगभग 400 एकड़ रिहायशी जमीन का रिकॉर्ड था, फटे हुए या गायब मिले। इससे साफ है कि ज़मीन के रिकॉर्ड के साथ जानबूझकर छेड़छाड़ की गई है।
यह मामला सबसे पहले वन रक्षक रूद्र प्रताप सिंह की ओर से सेक्टर-12 थाना में FIR संख्या 32/2024 के तहत दर्ज किया गया था, जिसे बाद में CID को सौंपा गया। DGP अनुराग गुप्ता ने दोनों आरोपियों की गिरफ्तारी की पुष्टि करते हुए कहा कि जांच तेजी से आगे बढ़ रही है।
पुरानी परतें खुल रही हैं
यह घोटाला कोई नया नहीं है। 2016 में गठित विशेष जांच टीम (SIT) ने यह पाया था कि बोकारो जिले में 68,000 एकड़ से ज़्यादा सरकारी (वन और गैर-वन) ज़मीन को फर्जी कागजातों के जरिए निजी नाम पर म्यूटेशन कराया गया था, जिसमें से 20,000 एकड़ सिर्फ चास क्षेत्र में पाई गई।
ED की रेड और कैश जब्ती
इस साल 22 अप्रैल 2025 को ED ने झारखंड और बिहार के 15 से 16 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की थी। इनमें वन विभाग, रजिस्ट्री कार्यालय, बोकारो स्टील प्लांट के दफ्तर और निजी घर शामिल थे। इस दौरान ₹1.30 करोड़ नकद जब्त किया गया, जो बांका (बिहार) के फाइनेंसर बीर अग्रवाल के पास से मिला। बीर पर आरोप है कि उसने राजबीर कंस्ट्रक्शन के ज़रिए ज़मीन की खरीदारी में पैसा लगाया।
गिरफ्तार आरोपियों ने दावा किया था कि उन्हें 1933 के एक नीलामी दस्तावेज़ (डीड नं. 191) और “समीर महतो” की वसीयत के माध्यम से यह ज़मीन विरासत में मिली थी। लेकिन जब रजिस्ट्री ऑफिस से इसकी जांच हुई तो पाया गया कि ऐसा कोई दस्तावेज़ कभी मौजूद ही नहीं था—साफ है कि पूरी कहानी फर्जीवाड़े पर आधारित थी।
घोटाले की आंच अफसरों तक
तेतुलिया मौजा की यह ज़मीन घोटाला अब बोकारो प्रशासनिक गलियारों में हलचल मचा रहा है। सूत्रों का मानना है कि मामले में कई ऊंचे पदों पर बैठे अधिकारियों की भूमिका की भी जांच हो रही है। CID और ED की संयुक्त जांच में आने वाले दिनों में अधिक गिरफ्तारियां और खुलासे संभव हैं।
यह घोटाला न केवल झारखंड, बल्कि देशभर में सरकारी ज़मीनों की लूट और तंत्र के भ्रष्ट गठजोड़ का एक खतरनाक उदाहरण बनकर उभर रहा है।