Chhath Mahaparv : बिहार से विश्व तक फैला लोक आस्था का महापर्व

Chhath Mahaparv : बिहार से विश्व तक फैला लोक आस्था का महापर्व
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निरंतर बढ़ती जा रही है छठ (Chhath) महापर्व के प्रति लोगों की गहरी आस्था

बोकारो: लोक आस्था का महापर्व छठ (Chhath) महाव्रत को पहले केवल बिहार, झारखंड और उत्तर भारत में ही मनाया जाता था। लेकिन, अब धीरे-धीरे पूरे देश में इसके महत्व को स्वीकार कर लिया गया है। विदेशों में रहने वाले भारतवंशी भी इस पर्व को धूमधाम से मनाते आ रहे हैं। छठ पर्व षष्ठी का अपभ्रंश है। इस कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया। छठ वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक माह में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को ‘कार्तिकी छठ’ भी कहा जाता है।

इस पूजा के लिए चार दिन महत्वपूर्ण हैं नहाय-खाय, खरना या लोहंडा, सांझा अर्घ्य और सूर्योदय अर्घ्य। छठ की पूजा में गन्ना, फल, डाला और सूप आदि का प्रयोग किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, छठी मइया को भगवान सूर्य की बहन बताया गया हैं। इस पर्व के दौरान छठी मइया के अलावा भगवान सूर्य की पूजा-आराधना होती है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इन दोनों की अर्चना करता है उनकी संतानों की छठी माता रक्षा करती हैं। छठ वास्तव में सूर्योपासना का पर्व है। इसलिए इसे सूर्य षष्ठी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इसमें सूर्य की उपासना उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए की जाती है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन सूर्यदेव की आराधना करने से व्रती को सुख, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन नदियों, तालाब या फिर किसी पोखर के किनारे पर पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

 

शास्त्रों के अनुसार छठ (Chhath) महाव्रत की परंपरा के बारे में कई पौराणिक कथाएं हैं। कुछ कथाओं के अनुसार:
माता सीता द्वारा शुरुआत
माता सीता ने भगवान राम के साथ वनवास के दौरान मुंगेर के गंगा तट पर सबसे पहले छठ पूजा की थी। इस पूजा के बाद से ही छठ महाव्रत की परंपरा शुरू हुई।

– महाभारत काल में द्रौपदी:
एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत काल में द्रौपदी ने अपने परिवार की सुख-शांति और रक्षा के लिए छठ व्रत का अनुष्ठान किया था। उनकी प्रार्थना के फलस्वरूप ही पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल पाया।

– राजा शांब की कथा:
एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण के पौत्र राजा शांब ने नालंदा जिले के बड़गांव में सबसे पहले छठ पूजा की थी। तब से इस स्थान पर 49 दिनों की परंपरा शुरू हुई।

– कर्ण और सूर्य पूजा: इसके अलावा, कर्ण ने भी सूर्य देव की पूजा शुरू की थी, जो छठ पर्व की एक महत्वपूर्ण परंपरा है।
इन कथाओं से यह स्पष्ट होता है कि छठ महाव्रत की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।

Chhath: धार्मिक मान्यताओं के साथ साथ सामाजिक महत्व 

छठ पूजा की धार्मिक मान्यताएं भी हैं और सामाजिक महत्व भी। लेकिन इस पर्व की सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें धार्मिक भेदभाव, ऊंच-नीच, जात-पात भूलकर सभी एक साथ इसे मनाते हैं। किसी भी लोक परंपरा में ऐसा नहीं है। सूर्य, जो रोशनी और जीवन के प्रमुख स्रोत हैं, जो रोज सुबह दिखाई देते हैं, ईश्वर के रूप में उनकी उपासना की जाती है। इस महापर्व में शुद्धता और स्वच्छता का विशेष ख्याल रखा जाता है और कहते हैं कि इस पूजा में कोई गलती हो तो तुरंत क्षमा याचना करनी चाहिए वरना तुरंत सजा भी मिल जाती है।

सबसे बड़ी बात है कि यह पर्व सबको एक सूत्र में पिरोने का काम करता है। इस पर्व में अमीर-गरीब, बड़े-छोटे का भेद मिट जाता है। सब एक समान एक ही विधि से भगवान की पूजा करते हैं। अमीर हो वो भी मिट्टी के चूल्हे पर ही प्रसाद बनाता है और गरीब भी। सब एक साथ गंगा तट पर एक जैसे दिखते हैं। बांस के बने सूप में ही अर्घ्य दिया जाता है। प्रसाद भी एक जैसा ही और गंगा और भगवान भास्कर सबके लिए एक जैसे हैं। यह त्योहार सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने, कल्याण, समृद्धि और संतान की सुरक्षा की कामना करने के लिए मनाया जाता है।

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