राष्ट्रहित में गौण होती राजनीतिक दूरियां

लेखक: डॉ. मनमोहन प्रकाश, स्वतंत्र पत्रकार

भारतीय लोकतंत्र इस समय अपने स्वर्णिम युग से गुजर रहा है। समय पर होने वाले स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव तथा उनके आधार पर गठित सरकारें इस बात का प्रमाण हैं कि भारत ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उल्लेखनीय परिपक्वता हासिल कर ली है। इसका सबसे सशक्त प्रमाण तब देखने को मिलता है जब देश की सुरक्षा, अस्मिता या अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा संकट में होती है। ऐसे समय में सभी राजनीतिक दल—चाहे उनकी विचारधारा कोई भी हो—अपने मतभेदों को पीछे छोड़कर राष्ट्रहित में एकजुट होकर खड़े दिखाई देते हैं। हाल ही में सम्पन्न ‘ऑपरेशन सिंदूर’ इसका एक जीवंत और प्रेरक उदाहरण है।

यह सैन्य कार्रवाई पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध भारत की एक सीमित, सुनियोजित और निर्णायक प्रतिक्रिया थी। यह केवल एक सैन्य ऑपरेशन नहीं, बल्कि भारत की आत्मरक्षा और राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा का स्पष्ट एवं मजबूत संदेश भी था। इस कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सही संदर्भों में प्रस्तुत करने हेतु भारत सरकार ने एक बहुदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल का गठन किया, जिसमें सत्तारूढ़ दल के साथ-साथ प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं को भी सम्मिलित किया गया। यह कदम मात्र कूटनीतिक रणनीति नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की जीवंतता और राजनीतिक परिपक्वता का प्रतीक था।

प्रतिनिधिमंडल में सम्मिलित विपक्षी नेताओं ने जिस स्पष्टता, संयम और राष्ट्रीय भावना के साथ भारत का पक्ष वैश्विक मंचों पर रखा, वह सराहना के योग्य है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय, राजनयिकों, थिंक टैंकों और मीडिया के समक्ष भारत की स्थिति को संयमित, नैतिक और वैध ढंग से प्रस्तुत किया। यह स्पष्ट किया गया कि भारत की यह प्रतिक्रिया कोई विस्तारवादी कदम नहीं, बल्कि आत्मरक्षा और नागरिकों की सुरक्षा की वैध आवश्यकता है।

उन्होंने यह भी उजागर किया कि भारत वर्षों से आतंकवाद, विशेषकर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद, का लगातार शिकार रहा है। ऐसे में आत्मरक्षा करना भारत का संवैधानिक और संप्रभु अधिकार है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भारत के इस संयमित दृष्टिकोण को न केवल सराहा, बल्कि भारत की शांतिप्रिय और जिम्मेदार छवि को और भी मज़बूती प्रदान की।

विशेष रूप से उल्लेखनीय यह रहा कि विपक्षी दलों की इस भागीदारी ने यह सिद्ध कर दिया कि भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक मतभेद नीतिगत हो सकते हैं, लेकिन जब प्रश्न राष्ट्र की सुरक्षा और प्रतिष्ठा का हो, तो पूरा देश एकजुट होकर बोलता है—“राष्ट्र सर्वोपरि”। यह एकता तात्कालिक रणनीति नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक चेतना और परिपक्वता का जीवंत उदाहरण है।

इस प्रयास की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि विपक्षी नेताओं ने संसद के बाहर भी सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने विदेशी मीडिया और वैश्विक नेताओं से प्रत्यक्ष संवाद कर भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को स्पष्ट किया और यह दिखाया कि भारत का रुख पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय कानूनों और शांति के मूल्यों के अनुरूप है।

देश के भीतर भी जब सर्वदलीय बैठकों में विपक्ष ने सरकार का समर्थन किया, तो यह भारतीय लोकतंत्र की उस आत्मा को प्रकट करता है, जहां सत्ता और विपक्ष, दोनों राष्ट्रहित में एक स्वर हो जाते हैं। यह केवल राजनीतिक परिपक्वता नहीं, बल्कि लोकतंत्र के स्वास्थ्य और उसकी सशक्तता का प्रतीक है।

भारत जैसे विशाल और विविधताओं वाले लोकतंत्र में राजनीतिक मतभेद स्वाभाविक हैं, और वे लोकतंत्र की गरिमा का हिस्सा भी हैं। लेकिन जब बात मातृभूमि की सुरक्षा, सम्मान और संप्रभुता की हो, तो सभी राजनीतिक भिन्नताएं गौण हो जाती हैं। ऑपरेशन सिंदूर इसका सशक्त प्रमाण है कि संकट की घड़ी में भारतीय लोकतंत्र पूरी मजबूती से एकजुट खड़ा होता है।

इस अभियान ने न केवल आतंकवाद के विरुद्ध भारत की सशक्त प्रतिक्रिया को मूर्त रूप दिया, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि भारतीय लोकतंत्र भीतरी विविधताओं के बावजूद सामूहिक चेतना से लैस और निर्णायक है। विपक्ष द्वारा विदेशों में निभाई गई भूमिका किसी एक सरकार के समर्थन से आगे जाकर पूरे राष्ट्र की चेतना और लोकतांत्रिक परिपक्वता की विजय बन गई।

भारत ने पूरी दुनिया को यह संदेश दिया है:

“राजनीतिक भिन्नताएं लोकतंत्र की गरिमा हैं, परंतु जब बात राष्ट्र की हो, तो पूरा देश एक आवाज़ बन जाता है।”

प्रतिनिधिमंडल ने वैश्विक मंच पर यह बात भी सफलता के साथ रखी कि आतंकवाद के विरुद्ध सभी देशों को एकजुट होना होगा। जो देश या संगठन आतंकवाद को शह देते हैं, उनका सामूहिक रूप से विरोध जरूरी है, क्योंकि कोई भी राष्ट्र यह दावा नहीं कर सकता कि वह इस वैश्विक खतरे से पूर्णतः सुरक्षित है।

आतंकवाद मानवता का शत्रु है, और इसका उन्मूलन केवल वैश्विक सहयोग से ही संभव है।

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