शांति पुरस्कार दो, नहीं तो कीमत चुकाओ!

                                                                                 

व्हाइट हाउस ने गुरुवार को एक चौंकाने वाला बयान देते हुए कहा कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार मिलना ही चाहिए।

व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैरोलाइन लेविट ने कहा:

“राष्ट्रपति ट्रंप ने थाईलैंड-कंबोडिया, इज़राइल-ईरान, रवांडा-कांगो, भारत-पाकिस्तान, सर्बिया-कोसोवो और मिस्र-इथियोपिया जैसे देशों के बीच संघर्ष खत्म कराए हैं।
वह हर महीने औसतन एक शांति समझौता करा रहे हैं। अब वक्त आ गया है कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाए।”

लेविट की इस टिप्पणी को कई देशों ने एक तरह का “धमकी भरा इशारा” माना है — यानी, अगर ट्रंप को नोबेल नहीं मिला, तो अमेरिका आर्थिक हथियार (जैसे भारी टैरिफ) का इस्तेमाल कर सकता है।

उल्लेखनीय है कि, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को एक बड़ा आर्थिक फैसला लेते हुए 70 देशों पर 10% से 41% तक के प्रतिशोधात्मक टैरिफ लगाने का आदेश जारी किया, जिसमें भारत भी शामिल है।

ट्रंप ने इस कदम को अमेरिका को फिर से “धनवान और महान” बनाने की रणनीति बताया।
उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Truth Social पर लिखा:

“टैरिफ अमेरिका को फिर से महान और अमीर बना रहे हैं।”

व्हाइट हाउस की ओर से जारी आधिकारिक बयान के अनुसार, भारत पर अब 25% टैरिफ लगाया गया है, जो इसे सबसे ज़्यादा प्रभावित देशों में शामिल करता है।

हैरानी की बात यह रही कि ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान के प्रति नरमी दिखाते हुए वहां के टैरिफ 29% से घटाकर 19% कर दिए हैं — जिससे भारत-अमेरिका संबंधों पर नई बहस छिड़ सकती है।

इसी तरह, बांग्लादेश पर भी टैरिफ 35% से घटाकर 20% कर दिया गया है, जो ट्रंप प्रशासन की व्यापार नीति में बदलते प्राथमिकताओं की ओर इशारा करता है।

जहां ट्रंप इसे अमेरिका की आर्थिक ताकत लौटाने का औजार बता रहे हैं, वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि यह आक्रामक व्यापार नीति वैश्विक व्यापार तंत्र में हलचल मचा सकती है और एशियाई साझेदारों के साथ अमेरिका के संबंधों को प्रभावित कर सकती है।

भारत ने ठुकराया ट्रंप का दावा

व्हाइट हाउस ने जहां भारत-पाकिस्तान के बीच शांति की बात कही, वहीं भारत ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में साफ कहा कि ऑपरेशन सिंदूर को लेकर किसी विदेशी नेता ने भारत से संपर्क नहीं किया और यह फैसला पूरी तरह स्वतंत्र और सैन्य सलाह पर लिया गया।

“9 मई की रात अमेरिकी उपराष्ट्रपति ने मुझसे संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन मैं सेना के साथ बैठक में था। बाद में मैंने कॉल बैक किया। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान बड़ी कार्रवाई की योजना बना रहा है।
मैंने जवाब में कहा, ‘अगर पाकिस्तान ऐसा करेगा, तो उसे इसका गंभीर अंजाम भुगतना पड़ेगा।’”

क्या था ऑपरेशन सिंदूर?

भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया। इसमें 25 मिनट में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में 9 आतंकी ठिकानों को नष्ट कर दिया गया।

इन ठिकानों का इस्तेमाल लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे पाक-समर्थित आतंकी संगठनों द्वारा किया जा रहा था।

पाकिस्तान ने बिना उकसावे के सीमा पार भारतीय नागरिकों को निशाना बनाया था, जिसके बाद भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई की।

क्या ये नोबेल या दबाव की राजनीति है?

व्हाइट हाउस के इस बयान ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या ट्रंप का नोबेल पुरस्कार हासिल करने का यह तरीका राजनयिक ब्लैकमेल है?
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका अब शांति की राजनीति को भी सौदेबाजी का जरिया बना रहा है — “नोबेल दो, वरना टैक्स लो।”

लेकिन भारत जैसे देशों ने साफ कर दिया है कि उनकी सुरक्षा नीति विदेशों के इशारों पर नहीं चलती।


ट्रंप को नोबेल मिलेगा या नहीं, ये तो भविष्य बताएगा। लेकिन ये साफ है कि भारत जैसे देश अपनी सैन्य कार्रवाई और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर किसी वैश्विक दबाव में नहीं आते।
ऑपरेशन सिंदूर इसका मजबूत सबूत है — और ट्रंप की “शांति कहानी” भारत में सुनने को कोई तैयार नहीं

Ashis Sinha

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