नई दिल्ली: एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण में भारत को लेकर चिंताजनक तथ्य सामने आया है। रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय नागरिक झूठी या भ्रामक खबरों को पहचानने में अन्य देशों की तुलना में सबसे पीछे हैं। यह अध्ययन चार देशों – भारत, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस – में किया गया, जिसमें भारतीय प्रतिभागी सबसे अधिक फर्जी खबरों को सत्य मान बैठे।
इस शोध को अंतरराष्ट्रीय रिसर्च फर्म Ipsos ने अंजाम दिया। अध्ययन के तहत करीब 8,800 लोगों को बिना किसी समाचार स्रोत के केवल हेडलाइन दिखाकर यह पूछा गया कि वे उसे असली मानते हैं या नकली। परिणामों ने दिखाया कि भारतीय प्रतिभागी भावनात्मक रूप से जुड़ी या सनसनीखेज खबरों को बिना तथ्यों की जांच किए ही सही मानने की प्रवृत्ति रखते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, जब कोई खबर अत्यधिक सकारात्मक या उत्तेजक हो, तो लोग उसे तुरंत साझा कर देते हैं — भले ही उसमें सच्चाई न हो। मसलन, यदि कोई हेडलाइन कहे कि “भारतीय वैज्ञानिकों ने सिर्फ दो दिनों में बनाया कैंसर का इलाज”, तो लोग भावनाओं में बहकर उसे सच मान लेते हैं और तेजी से शेयर भी कर देते हैं, जबकि ऐसी खबर की तथ्यात्मक पुष्टि नहीं होती।
Ipsos इंडिया के रिसर्च प्रमुख विवेक गुप्ता ने बताया, “लोगों की भावनाएं उनकी तर्कशीलता को प्रभावित करती हैं। जब सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट भावनात्मक प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है, तो अधिकांश लोग उसकी सच्चाई की पड़ताल नहीं करते।”
यह रिपोर्ट देश में मीडिया साक्षरता की गंभीर कमी की ओर इशारा करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि जनता को खबरों की जांच-पड़ताल करने, स्रोत की विश्वसनीयता परखने और किसी भी जानकारी को आंख मूंदकर स्वीकार न करने की आदत डालनी चाहिए।
फेक न्यूज़ अब केवल एक तकनीकी या सोशल मीडिया का मुद्दा नहीं रह गया है, यह एक सामाजिक चुनौती बन चुकी है – जिसका समाधान केवल सजगता और सूचना के प्रति जागरूकता से ही संभव है।