पेरिस 2024 से 2036 ओलंपिक तक: भारत की खेल क्रांति, क्या देश तैयार है?

नई दिल्ली : दशकों तक भारत की खेल पहचान हॉकी की शान, क्रिकेट की पकड़ और कभी-कभार मिलने वाले ओलंपिक मेडल तक सीमित रही। लेकिन 2025 में देश एक बड़ा सपना देख रहा है — वह देश बनना जो सिर्फ़ खेल में भाग ले, बल्कि दुनिया को अपनी मेज़बानी में भी जोड़ सके।

नरेंद्र मोदी सरकार की 2030 कॉमनवेल्थ गेम्स और 2036 ओलंपिक के लिए की गई जोड़ी बोली इस महत्वाकांक्षा में एक बड़ा बदलाव दर्शाती है। अहमदाबाद को दोनों आयोजनों का केंद्र बनाने की योजना है — यह एक नई पहल है, क्योंकि अब तक भारत का मेज़बान इतिहास केवल नई दिल्ली तक सीमित रहा है (1951 और 1982 एशियाई खेल, और 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स)।

यह सिर्फ खेल तक सीमित नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2023 में ओलंपिक की महत्वाकांक्षा का ऐलान करते हुए कहा था कि ऐसे मेगा इवेंट्स से स्टेडियम तैयार होंगे, परिवहन और कनेक्टिविटी सुधरेगी, पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और वैश्विक दृष्टिकोण बदलेगा — ऐसा असर जिसे एक पीढ़ी में सऊदी अरब ने खेलों में वैश्विक पहचान बनाने के लिए महसूस किया।

भारतीय खेलों के लिए नया ब्लूप्रिंट

इस महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक 2025 पास किया गया है। खेल मंत्री मनसुख मांडविया इसे “स्वतंत्रता के बाद का सबसे बड़ा खेल सुधार” बता रहे हैं। यह विधेयक नेशनल स्पोर्ट्स बोर्ड और नेशनल स्पोर्ट्स ट्रिब्यूनल की स्थापना के साथ-साथ खेल प्रशासन में पूरी तरह सुधार लाने का वादा करता है, ताकि भारत की खेल व्यवस्था वैश्विक मानकों के अनुरूप हो सके।

एक ऐसा देश जो अभी तक ओलंपिक में डबल-डिज़िट मेडल की सीमा नहीं पार कर पाया, उसके लिए यह सुधार उतना ही जरूरी है जितना बड़े आयोजनों की तैयारी। आलोचक चेतावनी देते हैं कि ओलंपिक की दौड़ में खिलाड़ी विकास की नींव कमजोर नहीं होनी चाहिए — किसी भी महल जैसी योजनाओं के लिए मजबूत आधार जरूरी है।

बदलते खेल का परिदृश्य

यह बदलाव पहले ही नजर आ रहा है। भारत की पुरुष हॉकी टीम ने लगातार दो ओलंपिक में मेडल जीतकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। क्रिकेट अभी भी वित्तीय शक्ति है और दुनिया भर में खेल को प्रभावित कर रहा है। कुश्ती, शूटिंग, बैडमिंटन और बॉक्सिंग में विश्व स्तरीय खिलाड़ी उभर रहे हैं, जबकि नीरज चोपड़ा ने एथलेटिक्स को घर-घर में चर्चित विषय बना दिया है।

महिला खिलाड़ी भी नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं — मैनु भाकर की पेरिस ओलंपिक सफलता से लेकर ब्लू टाइग्रेसेस की ऐतिहासिक एएफसी महिला एशियाई कप क्वालीफिकेशन तक। जिन खेलों में अभी चुनौती है, वहां भी कभी-कभार सफलता ने उम्मीद जगाई है।

पेरिस 2024 में भारत का छह मेडल का प्रदर्शन कुछ लोगों को निराश कर गया, लेकिन यह निराशा अपेक्षाओं की ऊँचाई से आई — यह दिखाता है कि देश अब कितनी दूर तक पहुंच चुका है।

अब जब दो वैश्विक आयोजनों के लिए बोली हाथ में है, सवाल यह नहीं है कि भारत बड़े मंच पर खेलना चाहता है या नहीं — सवाल यह है कि क्या भारत वास्तव में बड़े लीग का हिस्सा बनने के लिए तैयार है

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