भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन और अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला आज दोपहर 3:01 बजे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से सफलतापूर्वक पृथ्वी लौट आए। वह Axiom-4 (Ax-4) मिशन का हिस्सा थे और उन्होंने अपने मिशन के दौरान भारत के 7 महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम दिया।
ये प्रयोग भारत के प्रमुख संस्थानों द्वारा तैयार किए गए थे और अंतरिक्ष में खाद्य सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य, और जीवविज्ञान से जुड़ी चुनौतियों को समझने के लिए किए गए। इनसे भारत के गगनयान, स्पेस स्टेशन, और चंद्रमा मिशन की तैयारी को नई दिशा मिलेगी।
वो 7 वैज्ञानिक प्रयोग जो अंतरिक्ष में पूरे किए गए:
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माइक्रोएल्गी पर विकिरण और माइक्रोग्रैविटी का असर
ICGEB और NIPGR (DBT के अंतर्गत) द्वारा विकसित इस प्रयोग में यह समझा गया कि अंतरिक्ष में सूक्ष्म शैवाल (microalgae) पर विकिरण और गुरुत्वहीनता का क्या प्रभाव पड़ता है। -
अंतरिक्ष में सलाद बीज का अंकुरण
कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय और IIT धारवाड़ द्वारा बनाया गया यह प्रयोग बीजों के अंकुरण की क्षमता को माइक्रोग्रैविटी में परखता है। यह भविष्य की स्पेस फार्मिंग के लिए अहम है। -
टार्डिग्रेड (Water Bear) जीवों की अंतरिक्ष में क्षमता
IISc बेंगलुरु ने एक विशेष माइक्रोऑर्गेनिज्म Paramacrobiotus पर अध्ययन किया जो बेहद कठिन परिस्थितियों में जीवित रह सकता है। इसका परीक्षण जीवन विज्ञान और जैविक अनुकूलन को समझने में मदद करेगा। -
मांसपेशियों की रिकवरी पर मेटाबॉलिक सप्लीमेंट्स का असर
DBT के अंतर्गत inStem संस्थान ने माइक्रोग्रैविटी में मांसपेशियों के पुनर्निर्माण पर सप्लीमेंट्स का प्रभाव जाना—जो अंतरिक्ष यात्रियों की सेहत के लिए जरूरी है। -
माइक्रोग्रैविटी में इंसान और इलेक्ट्रॉनिक स्क्रीन के बीच इंटरैक्शन
IISc का यह प्रयोग अंतरिक्ष में इंसान और डिजिटल उपकरणों के बीच व्यवहार को समझने के लिए किया गया—जो भविष्य के स्पेसक्राफ्ट के डिज़ाइन के लिए उपयोगी है। -
साइनोबैक्टीरिया की वृद्धि पर नाइट्रोजन स्रोतों का असर
ICGEB ने इस प्रयोग में यह देखा कि अंतरिक्ष में साइनोबैक्टीरिया (जो ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं) यूरिया और नाइट्रेट जैसे पोषकों पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं। -
भारतीय फसलों की अंतरिक्ष में वृद्धि और उपज
IIST और केरल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने यह परीक्षण किया कि भारतीय फसलों के बीज माइक्रोग्रैविटी में कैसे बढ़ते हैं—जो भविष्य की स्पेस फार्मिंग का आधार बन सकते हैं।
IISc के प्रोफेसर अलोक कुमार, जो शुभांशु शुक्ला के M.Tech गाइड भी रह चुके हैं, ने कहा:
“यह मिशन राकेश शर्मा की 1984 की उड़ान के बाद भारत का अगला बड़ा कदम है। आज भारत सिर्फ सवारी नहीं कर रहा, बल्कि विज्ञान में अपना नेतृत्व दिखा रहा है।”
उन्होंने चेताया भी:
“अंतरिक्ष में गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती। हमें विनम्र होकर सीखते रहना होगा ताकि चंद्रमा, स्पेस स्टेशन जैसी बड़ी यात्राओं से पहले पूरी तैयारी हो।”
शुभांशु शुक्ला की वापसी के साथ भारत ने न सिर्फ एक सफल अंतरराष्ट्रीय मिशन पूरा किया, बल्कि भविष्य के लिए अमूल्य वैज्ञानिक अनुभव भी अर्जित किया है।