ईरान की धमकी: अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के सैन्य ठिकाने अब टारगेट पर

न्यूज़ डेस्क | ईरान ने साफ तौर पर अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस को चेतावनी दी है कि अगर उन्होंने ईरान के इज़राइल पर जवाबी हमलों में हस्तक्षेप किया, तो उनके मध्य-पूर्व स्थित सैन्य ठिकानों को “वैध निशाना” माना जाएगा। यह धमकी शनिवार को ईरान की सरकारी मीडिया के जरिए जारी की गई और इससे क्षेत्र में तनाव और बढ़ गया है।

ईरान और इज़राइल के बीच चल रहे टकराव, खासकर परमाणु मुद्दों को लेकर बढ़ती तनातनी के बीच यह चेतावनी आई है। ईरान के इस कदम से पश्चिमी देशों के लिए स्थिति और भी नाजुक हो गई है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले ही इज़राइल को पूरा समर्थन देने की बात कही है। अमेरिकी रक्षा विभाग ने भी स्वीकार किया है कि उन्होंने इज़राइल पर हुए हमलों को रोकने में मदद की है। वहीं फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा है कि अगर ईरान हमला बढ़ाता है तो फ्रांस इज़राइल की मदद करेगा।

ब्रिटेन ने थोड़ी संयमित भाषा अपनाई है। प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने कहा कि ब्रिटिश सेनाएं सीधे तौर पर किसी सैन्य कार्रवाई में शामिल नहीं हैं और सभी पक्षों को संयम बरतना चाहिए।

ईरान की चेतावनी से पश्चिमी रक्षा हलकों में चिंता बढ़ गई है। अमेरिका के मध्य पूर्व में करीब 40,000 से 50,000 सैनिक 19 सैन्य अड्डों पर तैनात हैं, जो क़तर, बहरीन, कुवैत, सऊदी अरब और यूएई में फैले हुए हैं। ब्रिटेन और फ्रांस के भी अहम सैन्य ठिकाने इस क्षेत्र में हैं।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में अमेरिकी राजनयिक मैकॉय पिट ने कहा, “कोई भी सरकार समर्थित समूह या स्वतंत्र संगठन अमेरिकी नागरिकों या हमारे ढांचे पर हमला नहीं कर सकता। अगर ऐसा हुआ, तो ईरान को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।”

ईरान की धमकी सिर्फ सीधे हमलों तक सीमित नहीं है। उसके समर्थक सशस्त्र गुट जैसे इराक में मौजूद मिलिशिया और हिज़्बुल्लाह जैसे संगठन भी किसी भी समय सक्रिय हो सकते हैं। ऐसे में अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने अपने कुछ सैन्य कर्मियों को संवेदनशील ठिकानों से हटा लिया है।

अगर ईरान के ड्रोन और मिसाइल हमले इज़राइल की मजबूत रक्षा प्रणाली से नाकाम हो जाते हैं, तो वह अपना ध्यान उन खाड़ी देशों की ओर मोड़ सकता है जहां पश्चिमी सैन्य अड्डे हैं — और जिनमें से कुछ ने गुपचुप तरीके से इज़राइल की मदद की है।

विश्लेषकों का मानना है कि ईरान लंबी रणनीति अपनाते हुए छिटपुट हमलों के जरिए इज़राइल और पश्चिमी देशों की रक्षा प्रणाली को थकाना चाहता है, बिना तुरंत युद्ध छेड़े।

इस पूरे घटनाक्रम का आर्थिक असर भी गहरा हो सकता है। हर हमला और जवाबी कार्रवाई तेल की कीमतें बढ़ा सकती है और वैश्विक व्यापार को नुकसान पहुंचा सकती है।

अब सवाल यह है कि क्या अमेरिका और उसके सहयोगी देश इज़राइल के साथ खड़े रहते हुए सीधे युद्ध में कूदेंगे, या ईरान को कूटनीतिक तरीकों से रोकने की कोशिश करेंगे?

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