News Desk: ईरान ने हाल ही में छह लोगों को इस्राइल के लिए जासूसी करने के आरोप में फांसी दे दी और सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया है। यह सब कुछ ईरान-इस्राइल संघर्ष के बाद शुरू हुआ, और अब सरकार इसे “राष्ट्रीय सुरक्षा की लड़ाई” बता रही है। लेकिन मानवाधिकार संगठनों और पत्रकारों का कहना है कि यह सिर्फ एक बहाना है — असली मकसद है जनता की आवाज़ दबाना और सरकार के खिलाफ बोलने वालों को खामोश करना।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ईरानी खुफिया एजेंसियों ने दावा किया है कि इस्राइली खुफिया एजेंसी मोसाद ने ईरानी सुरक्षा तंत्र में गहरी सेंध लगाई है। इसी के चलते ईरान के कई सैन्य अधिकारी और परमाणु वैज्ञानिक “ऑपरेशन राइजिंग लायन” के तहत मारे गए। इसके बाद ईरान ने जवाबी कार्रवाई में उन लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया, जिन पर विदेशी एजेंसियों से संबंध होने का शक है।
12 दिन चले संघर्ष के दौरान तीन लोगों को फांसी दी गई, और युद्धविराम के ठीक अगले दिन तीन और को फांसी पर चढ़ा दिया गया। इसके अलावा, पूरे देश में सैकड़ों गिरफ्तारियां हुई हैं, जिन पर जासूसी का आरोप है।
ईरानी सरकारी टीवी ने कई कथित आरोपियों की “कबूलनामे” भी दिखाए, जिनमें उन्होंने इस्राइली एजेंसी से संबंध स्वीकार किए। लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि ईरान में जबरन कबूलनामे लेना और बिना निष्पक्ष सुनवाई के सज़ा देना आम बात है। उन्हें डर है कि आने वाले दिनों में और भी फांसी दी जा सकती हैं।
इतना ही नहीं, सरकार अब उन विदेशी मीडिया चैनलों के पत्रकारों को भी निशाना बना रही है जो फारसी में रिपोर्टिंग करते हैं, जैसे कि बीबीसी पर्शियन, ईरान इंटरनेशनल और मनोटो टीवी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ईरान इंटरनेशनल की एक महिला एंकर के माता-पिता और भाई को तेहरान में हिरासत में ले लिया गया, ताकि उस पर इस्तीफा देने का दबाव डाला जा सके। उसे उसके पिता ने फोन पर कहा कि अगर उसने चैनल की रिपोर्टिंग बंद नहीं की, तो अंजाम भुगतने पड़ सकते हैं।
सरकारी दावे कह रहे हैं कि यह लड़ाई मोसाद, CIA और MI6 जैसी विदेशी खुफिया एजेंसियों के खिलाफ है। लेकिन असली सवाल यह है — क्या ईरान सच में जासूस पकड़ रहा है, या फिर जनता की आवाज़ कुचलने की नई साज़िश रच रहा है?
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