रांची: झारखंड में बड़े शराब घोटाले की जांच में एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) ने बड़ी कार्रवाई करते हुए सीनियर IAS अधिकारी विनय कुमार चौबे और उत्पाद विभाग के संयुक्त आयुक्त गजेन्द्र सिंह को गिरफ्तार किया है। दोनों को पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया गया और कोर्ट में पेश कर 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।
ACB के मुताबिक, चौबे जब झारखंड के उत्पाद सचिव थे, तब उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग किया और नकली शराब सप्लाई नेटवर्क से जुड़े रहे, जिससे राज्य को करीब 38 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
इस पूरे मामले की शुरुआत 2021 के अंत में हुई, जब शराब कारोबारियों के बीच चर्चा शुरू हुई कि 2022-23 के लिए नई शराब नीति लाई जा रही है, जिसमें छत्तीसगढ़ की शराब लॉबी की भूमिका प्रमुख होगी। इसके बाद झारखंड उत्पाद विभाग ने छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग लिमिटेड (CSML) को सलाहकार बना दिया ताकि शराब से राजस्व बढ़ाया जा सके।
नीति बनाने के लिए सलाहकार अरुणापति त्रिपाठी को ₹1.25 करोड़ का भुगतान किया गया। जब नीति मसौदा तैयार हुआ तो इसे राजस्व बोर्ड के सदस्य अमरेंद्र प्रसाद सिंह के पास भेजा गया। उन्होंने इसमें कई खामियां बताईं और कहा कि जिस कंपनी को राजस्व बढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई है, वह अपने राज्य में भी ऐसा नहीं कर सकी।
राज्य सरकार ने सुझावों को आंशिक रूप से मानते हुए नई शराब नीति लागू कर दी। इसके बाद छत्तीसगढ़ की शराब लॉबी ने झारखंड के शराब कारोबार पर पकड़ बना ली। ठेके की शर्तों के चलते केवल दो कंपनियों—इशिता और ओमसाई—को थोक व्यापार का अधिकार मिला। वहीं बोतलों पर होलोग्राम लगाने का काम छत्तीसगढ़ की कंपनी ‘प्रिज़्म’ को मिला। सरकारी शराब दुकानों के लिए स्टाफ भी वहीं की कंपनियों से लिया गया।
इस नई नीति से झारखंड के लोकल शराब निर्माताओं को भारी नुकसान हुआ। पहले जहां प्लास्टिक की बोतलों में देशी शराब बेचना मंजूर था, अब इसे केवल कांच की बोतलों में बेचने का नियम लागू कर दिया गया, जिससे कई लोकल बॉटलिंग प्लांट बंद हो गए।
इसके बाद छत्तीसगढ़ से लाई गई देशी शराब झारखंड में बेची जाने लगी। जब छत्तीसगढ़ की कंपनियों ने झारखंड की लोकल कंपनियों से पार्टनरशिप करनी चाही, तो अधिकतर ने मना कर दिया। इसके बाद उन्हें उत्पाद विभाग के अधिकारियों द्वारा परेशान किया जाने लगा।
इसी बीच छत्तीसगढ़ प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने जब त्रिपाठी समेत कई लोगों को शराब घोटाले में आरोपी बनाया, तब कई सिंडिकेट सदस्य झारखंड से भाग गए। राज्य सरकार ने भी इन कंपनियों के साथ हुए कुछ करार रद्द कर दिए।
ACB इस मामले की गहराई से जांच कर रही है और आने वाले दिनों में और खुलासे हो सकते हैं।