जान हथेली पर रखकर जाते हैं स्कूल
गुवा, झारखंड: झारखंड के नक्सल प्रभावित सारंडा क्षेत्र के लेंबरा गांव की एक शर्मनाक और दिल दहला देने वाली तस्वीर सामने आई है। 21वीं सदी में भी यहां के बच्चे स्कूल जाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं, वो भी तेज़ बहाव वाली कोयना नदी को पैदल पार करके।
न नाव है, न पुल, न कोई सुरक्षा इंतज़ाम। लगातार हो रही बारिश से कोयना नदी उफान पर है और यह बच्चों की शिक्षा में सबसे बड़ी रुकावट बन गई है। हर सुबह लेंबरा गांव के मासूम बच्चे स्कूल जाने के लिए नदी पार करते हैं — और हर कदम मौत को छूकर निकलता है।
“स्कूल भेजना यहां बच्चों को मौत के मुंह में भेजने जैसा है” — शंभु पासवान
पूर्व जिला पार्षद शंभु पासवान ने कहा कि यह सिर्फ सरकारी लापरवाही नहीं बल्कि सामाजिक अन्याय है। गांव वाले बताते हैं कि हर साल पुल की मांग होती है, नेता आते हैं, सर्वे होते हैं — लेकिन पुल नहीं बनता, सिर्फ वादे मिलते हैं।
पूर्व सांसद गीता कोड़ा ने खुद गर्मी में नदी पार कर गांव का हाल देखा था, सर्वे भी हुआ, लेकिन फाइलें आज भी सरकारी अलमारियों में धूल खा रही हैं।
गर्भवती महिलाओं से लेकर स्कूली बच्चों तक, सब फंसे हैं
बरसात में लेंबरा गांव चारों ओर से पानी में घिर जाता है, जैसे कोई टापू हो। न अस्पताल तक पहुंच है, न राशन की गाड़ी आती है। गर्भवती महिलाओं की मौत इलाज के अभाव में हो जाती है, बीमार लोग तड़पते रह जाते हैं।
“बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ” और “हर बच्चा स्कूल जाए” जैसे नारे यहां मज़ाक बनकर रह गए हैं।
जनता की मांग क्या है?
-
कोयना नदी पर स्थायी पुल तुरंत बनाया जाए।
-
जब तक पुल नहीं बनता, बच्चों के लिए सुरक्षित नाव या वैकल्पिक साधन की व्यवस्था हो।
-
गांव में अस्थायी मेडिकल कैंप, राशन वितरण केंद्र, और राहत शिविर स्थापित किए जाएं।
-
डीसी चंदन कुमार खुद मौके का मुआयना करें और कार्रवाई करें।
सरकार कब जागेगी?
हर साल लाखों-करोड़ों की योजनाएं बनती हैं, लेकिन झारखंड के लेंबरा जैसे गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। जब तक किसी बच्चे की मौत नहीं होती, शायद फाइलें नहीं चलतीं। लेकिन सवाल है — क्या सरकार इंतज़ार करेगी किसी हादसे का, या अब कुछ करेगी?