इस्तांबुल/काबुल/इस्लामाबाद: पाकिस्तान और अफगानिस्तान (Pak–Afghan) के बीच इस्तांबुल में चल रही शांति वार्ता उस समय पूरी तरह टूट गई जब पाकिस्तान के प्रतिनिधिमंडल ने अमेरिका के साथ ड्रोन संचालन समझौते की पुष्टि कर दी। यह खुलासा वार्ता के दौरान इतना विस्फोटक साबित हुआ कि माहौल अचानक गरमा गया और तीन दिन तक चली बातचीत का अंत तीखे आरोपों और आपसी अविश्वास के साथ हुआ।
ड्रोन समझौते ने बढ़ाई कूटनीतिक गर्मी
रॉयटर्स, एपी न्यूज और एनडीटीवी के मुताबिक, वार्ता तब बिगड़ी जब पाकिस्तानी प्रतिनिधियों ने यह माना कि उनके देश की जमीन से अमेरिकी ड्रोन अभियान चलाने का एक औपचारिक करार मौजूद है।
इस पर अफगान प्रतिनिधिमंडल ने कड़ा विरोध जताया और मांग की कि पाकिस्तान लिखित रूप से यह गारंटी दे कि अमेरिकी ड्रोन अफगान हवाई क्षेत्र में नहीं घुसेंगे।
शुरुआत में पाकिस्तान इस पर सहमत दिखा, लेकिन अचानक इस्लामाबाद से आए एक “अज्ञात फोन कॉल” के बाद उनका रुख बदल गया। पाकिस्तानी टीम ने कहा कि उन्हें अमेरिकी ड्रोन या इस्लामिक स्टेट की गतिविधियों पर कोई नियंत्रण नहीं है। यही पल वार्ता की टूटने की शुरुआत का कारण बना।
वार्ता कक्ष में तनाव और आरोप
कूटनीतिक सूत्रों के अनुसार, वार्ता का माहौल इतना तनावपूर्ण हो गया कि तुर्की और क़तरी मध्यस्थों को हस्तक्षेप करना पड़ा। पाकिस्तानी प्रतिनिधि मेजर जनरल शाहब असलम, जो आईएसआई की स्पेशल ऑपरेशंस डिवीजन के प्रमुख हैं, ने अफगान पक्ष से मांग की कि वे तेहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और अन्य विरोधी गुटों पर लगाम लगाएँ।
अफगान वार्ताकारों ने पलटकर कहा कि TTP पाकिस्तानी नागरिकों से बना संगठन है और इस पर कार्रवाई पाकिस्तान की जिम्मेदारी है। तीखी बहस और आरोप-प्रत्यारोप के बीच बैठक बिना किसी सहमति के खत्म हो गई। एक मध्यस्थ ने इसे “राजनयिक इतिहास का सबसे असहज क्षण” बताया।
‘खुली जंग’ की चेतावनी ने बढ़ाई चिंता
वार्ता विफल होने से कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने चेतावनी दी थी कि अगर कोई समझौता नहीं हुआ, तो “खुली जंग” की स्थिति पैदा हो सकती है। अब इस चेतावनी ने क्षेत्र में तनाव को और भड़का दिया है।
विश्लेषकों का कहना है कि इस विफलता ने पाकिस्तान की नागरिक और सैन्य नेतृत्व के बीच बढ़ती खाई को उजागर कर दिया है। वहीं अफगान अधिकारियों ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि उसने वार्ता को दोष टालने और दबाव बनाने का मंच बना दिया।
सीमा पर फिर मंडराया संघर्ष का खतरा
इस्तांबुल वार्ता के असफल होने से दोनों देशों के बीच हालिया संघर्षविराम खतरे में पड़ गया है। करीब 2,600 किलोमीटर लंबी सीमा पर फिर हिंसा भड़कने की आशंका जताई जा रही है।
एक क्षेत्रीय विश्लेषक ने रॉयटर्स से कहा, “यह केवल वार्ता की विफलता नहीं है, बल्कि इस बात का संकेत है कि अब अविश्वास ने कूटनीति की जगह ले ली है।”
फिलहाल दोनों पक्ष अपने-अपने देशों लौट चुके हैं, जबकि तुर्की और क़तर के मध्यस्थ शांति प्रक्रिया को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं — लेकिन उम्मीदें बेहद धुंधली हैं।

