– लेखक: डा मनमोहन प्रकाश
त्यौहारों का असली उद्देश्य केवल भौतिक चीजों में खुशी ढूँढना नहीं, बल्कि अपने शहर, प्रदेश,परिवार, दोस्तों और समाज के साथ मिलकर खुशियाँ बाँटना है। “अपना त्यौहार, अपनों से व्यापार” का विचार इस बात की ओर इशारा करता है कि हम अपने संस्कार और संस्कृति को संरक्षित करें, अपने समुदाय का समर्थन करें और अपने प्रदेश और देश की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने में योगदान दें। यह पहल न केवल स्थानीय छोटे- बड़े व्यापारियों, दुकानदारों को प्रोत्साहित करती है, बल्कि हमारे त्योहारों के सही अर्थ को भी उजागर करती है— ‘साझेदारी, सहयोग, और आपसी विकास’।
वास्तव में ‘अपना त्यौहार, अपनों से व्यापार’ एक सांस्कृतिक और सामाजिक संदेश है जो हमारे पारंपरिक मूल्यों और आर्थिक दृष्टिकोण को जोड़ता है तथा स्थानीय बाजारों और घरेलू उत्पादकों का समर्थन करने की महत्ता पर जोर देता है। भारत एक विविधताओं से भरा देश है, जहां हर क्षेत्र और समुदाय के अपने खास तीज-त्यौहार, परंपराएं हैं;हर क्षेत्र के विशिष्ट उत्पाद हैं,हर क्षेत्र का विशिष्ट व्यंजन,रहन-सहन, खान- पान और पहनावा है। ऐसे में त्यौहार न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व रखते हैं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों को भी बढ़ावा देते हैं।
त्यौहारों का समय न केवल उत्सव मनाने का होता है, बल्कि यह एक ऐसा अवसर भी होता है जब लोग खरीदारी करते हैं, नए सामान लेते हैं, और अपने परिवार और मित्रों के साथ समय बिताते हैं। इन अवसरों पर यदि हम अपने आस-पास के छोटे व्यापारियों, दुकानदारों, कारीगरों, और स्थानीय उत्पादकों से सामान खरीदते हैं, तो यह न केवल उन्हें आर्थिक सहायता देता है, बल्कि हमारे समाज में आपसी सहयोग और भाईचारे की भावना को भी मजबूत करता है।यह विचार न सिर्फ स्थानीय उत्पादों और शिल्पकला का संरक्षण करता है,सांस्कृतिक धरोहर, परंपराओं को प्रोत्साहित करता है अपितु स्थानीय लोगों की रोज़ी-रोटी, रोजगार की भी व्यवस्था करता है।यह मन में एक आनंद की अनुभूति भी कराता है कि पैसा हमारे अपने स्थानीय समुदायों के भीतर ही स्थानांतरित हुआ है जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के उत्थान में सहायक होगा। साथ ही मेरा ऐसा मानना है कि स्थानीय उत्पादों का उपयोग करना अधिक टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल होता है, क्योंकि इसमें बड़े पैमाने पर उत्पादन या लंबी दूरी परिवहन की आवश्यकता नहीं होती।
“अपना त्यौहार, अपनों से व्यापार” आत्मनिर्भर भारत की दिशा तथा, ‘लोकल फार वोकल’ की दिशा में एक शसक्त कदम भी है। जब हम स्थानीय स्तर पर उत्पादित सामान खरीदते हैं,तब हम न सिर्फ अपने देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करते हैं, बल्कि स्थानीय लोगों की आर्थिक प्रगति में भी सहयोग करते हैं। अतः यह नारा ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में रोजगार के अवसर उत्पन्न करने में भी सहायक है, जिससे गरीबी कम होती है और समाज के सभी वर्गों का सशक्तिकरण होता है।
यह विचार हमारी सांस्कृतिक धरोहर, परंपराओं को सुरक्षित रखने में भी मदद करता है। छोटे कारीगर और व्यवसायी पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं को जीवित रखने का काम करता है, और हम उनसे क्रय करके एक प्रकार से उनके इस योगदान को महत्व देकर उनके कार्य की सराहना करते हैं, उन्हें ऐसा करते रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
‘अपना त्यौहार, अपनों से व्यापार’ का विचार मूल रूप से किसने दिया मुझे नहीं मालूम किन्तु मेरे पास तक यह विचार जबलपुर महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय के कुल गुरु प्रो प्रमोद वर्मा के धनतेरस पर भेजे गए शुभकामना संदेश से पहुंचा। तब मुझे लगा यह विचार बहुत महत्वपूर्ण है, अपनाने योग्य।इस विचार में स्थानीय लोगों की कई समस्याओं का निदान छिपा है अतः इस विषय को विस्तार देकर साझा करना चाहिए।