फेसबुक रोमांस से राष्ट्रीय सुरक्षा में सेंध: ब्रह्मोस जासूसी कांड का काला सच

| अशिष सिन्हा  

देश के सबसे सुरक्षित और संवेदनशील मिसाइल प्रोजेक्ट ‘ब्रह्मोस’ से जुड़े एक युवा वैज्ञानिक की जिंदगी अचानक तब बिखर गई जब उसने एक “काजल शर्मा” नाम की महिला से ऑनलाइन दोस्ती की। वो दोस्ती बाद में प्यार जैसा लगने लगा, और फिर वही प्यार बना देशद्रोह का रास्ता।

DRDO के पुरस्कार विजेता और ब्रह्मोस प्रोजेक्ट के टॉप इंजीनियर निशांत अग्रवाल को जब 3 जून 2024 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई, तो देश भर में सनसनी फैल गई। वजह थी – एक हनीट्रैप, जो पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने इंटरनेट के जरिए बड़ी चालाकी से रचा था।

शुरुआत हुई एक फेसबुक फ्रेंड रिक्वेस्ट से, पहुंची व्हाट्सऐप और टेलीग्राम तक

2016 के अंत या 2017 की शुरुआत में निशांत को फेसबुक पर “काजल शर्मा” नाम की महिला की फ्रेंड रिक्वेस्ट मिली। प्रोफाइल तस्वीर में वो एक आत्मविश्वासी भारतीय महिला लग रही थी, जिसने खुद को ब्रिटेन की एक रक्षा रिसर्च कंपनी में काम करने वाली बताया।

निशांत, जो अविवाहित था और ज्यादातर काम में डूबा रहता था, को यह दोस्ती आकर्षक लगी। बात फेसबुक से शुरू होकर लिंक्डइन, व्हाट्सऐप और टेलीग्राम तक पहुंच गई। जल्द ही दो और नाम सामने आए – “नेहा शर्मा” और “पूजा रंजन”। ये सब असली नहीं थे, बल्कि ISI के प्रशिक्षित एजेंट थे, जो ऑनलाइन भावनात्मक जाल बिछाकर रक्षा वैज्ञानिकों से जानकारी निकालने में माहिर थे।

भावनात्मक जाल और  “आप तो देश की शान हैं…” — तारीफों से बना विश्वास

काजल ने कभी सीधे कोई जानकारी नहीं मांगी। वो निशांत की तारीफ करती रही:

“आप जैसे देशभक्त और होशियार लोग बहुत कम मिलते हैं…”

“आपको तो विदेश में होना चाहिए, इतनी काबिलियत है आपमें…”

धीरे-धीरे निशांत काजल पर भरोसा करने लगा। उसे लगा कि काजल ही उसे सबसे ज़्यादा समझती है।

मालवेयर भेजा ‘जॉब ऑफर’ बनाकर

एक दिन काजल ने निशांत को एक जॉब अप्लिकेशन लिंक भेजा, जो किसी यूरोपीय रक्षा कंपनी का बताया गया। जैसे ही निशांत ने वो लिंक अपने पर्सनल लैपटॉप पर खोला, एक खतरनाक मालवेयर उसके सिस्टम में इंस्टॉल हो गया।

इस मालवेयर ने:

  • कीबोर्ड की हर टाइपिंग रिकॉर्ड की

  • स्क्रीनशॉट लिए

  • ब्राउज़र एक्टिविटी रिकॉर्ड की

  • गोपनीय फाइल्स कॉपी करके पाकिस्तान भेज दी

यह सिर्फ एक लिंक क्लिक करने की गलती थी, लेकिन इसके जरिए भारत की मिसाइल तकनीक दुश्मन के हाथ लग गई।

शक की सूई कैसे पहुंची निशांत तक?

2018 की शुरुआत में मिलिट्री इंटेलिजेंस को पाकिस्तान से जुड़े कुछ संदिग्ध डेटा ट्रांसफर पकड़े गए। जांच में पता चला कि यह लीक निशांत अग्रवाल के सिस्टम से हो रहा था।

उसी दौरान सहकर्मी भी नोटिस करने लगे कि निशांत अजीब व्यवहार करने लगा है—चुपचाप, तनाव में और देर तक लैपटॉप पर काम करता।

9 अक्टूबर 2018: गिरफ्तारी का दिन

एक सुबह उत्तर प्रदेश ATS, महाराष्ट्र ATS और मिलिट्री इंटेलिजेंस की टीम ने नागपुर स्थित निशांत के घर पर छापा मारा। वहां से मिले:

  • गोपनीय दस्तावेज

  • “काजल”, “नेहा”, और “पूजा” के साथ की चैट

  • पाकिस्तान से जुड़े मालवेयर के सुराग

पूछताछ में निशांत टूट गया। उसने कहा कि वह “भावनात्मक रूप से बहकाया गया था” और उसे लगा कि वो केवल जॉब के लिए जानकारी भेज रहा है।

 कोर्ट का फैसला: देश से गद्दारी की बड़ी सजा

लगभग 6 साल चली जांच और कोर्ट केस के बाद निशांत अग्रवाल को 3 जून 2024 को दोषी ठहराया गया। जिन धाराओं में सजा हुई, वो थीं:

  • IT Act की धारा 66(f) – साइबर आतंकवाद

  • ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट की धारा 3 और 5

  • IPC की धाराएं 419, 420, 467, 468, 120B और 121A (राज्य के खिलाफ युद्ध)

सजा:

  • उम्रकैद

  • 14 साल की कठोर कैद

  • 3 साल की अन्य सजा (साथ में चलेगी)

  • ₹3000 जुर्माना (ना देने पर 6 महीने अतिरिक्त जेल)

मिसाइल ब्रेन से देशद्रोही तक: एक करियर की बर्बादी

DRDO के युवा वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित निशांत को एक समय “मिसाइल ब्रेन” कहा जाता था। लेकिन ISI के डिजिटल प्रेमजाल में फंसकर वह देशद्रोही बन गया।

हनीट्रैप का नया रूप: डिजिटल जासूसी

ISI के इस मिशन ने दिखा दिया कि आज की जासूसी बंदूक या पैसे से नहीं—बल्कि सोशल मीडिया, भावनात्मक बातचीत और मैलवेयर से होती है।

कई और भारतीय वैज्ञानिकों से भी इस तरह संपर्क किया गया था, हालांकि समय रहते कुछ को बचा लिया गया।

क्या ब्रह्मोस प्रोजेक्ट खतरे में आया?

ब्रह्मोस भारत-रूस का साझा प्रोजेक्ट है और दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल में गिनी जाती है। भले ही लॉन्च कोड लीक नहीं हुए, लेकिन तकनीकी डिज़ाइन और वॉरहेड डेटा का लीक होना भी देश की सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक है।

सबक : सोशल मीडिया पर सावधानी ज़रूरी है

इस घटना के बाद भारत ने कई कदम उठाए:

  • रक्षा संस्थानों में सोशल मीडिया पर सख्ती

  • पर्सनल डिवाइस यूज़ पर नए नियम

  • साइकोलॉजिकल स्क्रीनिंग

  • AI आधारित हनीट्रैप डिटेक्शन सिस्टम

निष्कर्ष: युद्ध अब डेटा और दिलों पर होता है ; दिल और डेटा, दोनों की सुरक्षा ज़रूरी है

निशांत अग्रवाल की कहानी सिर्फ एक वैज्ञानिक की गिरावट नहीं है, बल्कि यह चेतावनी है कि आज युद्ध बंदूक से नहीं, डेटा से लड़ा जा रहा है। दुश्मन अब ऑनलाइन आता है—तारीफ करता है, दोस्ती करता है, और फिर भरोसे को हथियार बना लेता है।

स्रोत:

  • हिंदुस्तान टाइम्स – “ब्रह्मोस जासूसी केस: युवा वैज्ञानिक ऑनलाइन फंसा”

  • ज़ी न्यूज़ – “कैसे ISI की ‘काजल’ ने फंसाया ब्रह्मोस साइंटिस्ट को”

  • टाइम्स ऑफ इंडिया – “गोपनीय जानकारी लीक करने पर वैज्ञानिक को 14 साल की सजा”

  • NDTV – “ISI के लिए जासूसी: निशांत को उम्रकैद”

  • इंडियन एक्सप्रेस – “DRDO इंजीनियर को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया”

  • वन इंडिया – “जॉब ऑफर के जाल में कैसे फंसे अग्रवाल”

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