शाहीन-3 की विफलता: बार-बार मिसाइल परीक्षणों की नाकामी से पाकिस्तान की परमाणु विश्वसनीयता पर सवाल

News Desk: पाकिस्तान का लंबी दूरी तक मार करने वाला परमाणु-सक्षम ‘शाहीन-3’ मिसाइल एक बार फिर टेस्ट के दौरान फेल हो गया, और इसका मलबा बलूचिस्तान के डेरा बुग़ती ज़िले में गिरा। यह घटना 4–5 दिन पहले, यानी 22 या 23 जुलाई के बीच हुई, लेकिन अब विशेषज्ञ इसकी असफलता के पीछे की तकनीकी कमजोरियों पर खुलकर चर्चा कर रहे हैं।

क्या कारण हो सकते हैं इस विफलता के?

विशेषज्ञों के अनुसार, शाहीन-3 के बार-बार फेल होने के पीछे निम्नलिखित संभावनाएं हो सकती हैं:

  • गाइडेंस सिस्टम की विफलता: मिसाइल अपने निर्धारित मार्ग से भटक गई, जिससे यह माना जा रहा है कि उसके दिशा-निर्देशन प्रणाली में गड़बड़ी हुई होगी।

  • प्रोपल्शन सिस्टम की खराबी: उड़ान के दौरान किसी चरण में इंजन ने ठीक से काम नहीं किया या ‘स्टेज सेपरेशन’ सही नहीं हुआ।

  • संरचनात्मक कमज़ोरी: उड़ान के दौरान हवा के दबाव या कंपन से मिसाइल की बनावट जवाब दे गई हो सकती है।

  • अपर्याप्त टेस्टिंग: ज़मीनी या सिमुलेशन स्तर पर पर्याप्त परीक्षण न किया जाना भी बड़ी वजह हो सकती है।

मिसाइल को पंजाब के डेरा गाज़ी खान ज़िले में स्थित रखशानी रेंज से लॉन्च किया गया था। लेकिन कुछ ही देर में यह दिशा से भटककर बलूचिस्तान के डेरा बुग़ती के ‘मैट’ इलाके में जा गिरी — जो एक लेवीज़ पोस्ट से महज़ 500 मीटर की दूरी पर है।

स्थानीय लोगों ने बताया कि उन्होंने तेज़ धमाके और ज़मीन हिलने का अनुभव किया। कुछ लोग डर के मारे घर छोड़कर भागने लगे। घटना के बाद सुरक्षा बलों ने पूरे इलाके को घेर लिया और मलबा तुरंत हटाया गया।

बता दें कि यह इलाका पाकिस्तान की परमाणु गतिविधियों से जुड़ी एक संवेदनशील साइट — डेरा गाज़ी खान न्यूक्लियर फैसिलिटी — से भी ज्यादा दूर नहीं है। अगर मिसाइल थोड़ा और भटकती, तो बड़ा हादसा हो सकता था।

पहले भी फेल हो चुका है शाहीन-3

शाहीन-3 मिसाइल का यह पहला विफल परीक्षण नहीं है। इससे पहले 2021 और 2023 में भी इसी मिसाइल के ट्रायल असफल रहे थे

पाकिस्तान इस मिसाइल को भारत के सुदूर दक्षिण हिस्सों तक मार करने के लिए तैयार कर रहा है, लेकिन लगातार हो रही असफलताओं से इसकी रणनीतिक विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं

स्थानीय विरोध और असंतोष

बलूचिस्तान में इस तरह के सैन्य परीक्षणों को लेकर स्थानीय लोगों में गहरी नाराज़गी है। एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा:

“हमारी ज़मीन को बार-बार बमों और मिसाइलों का मैदान क्यों बनाया जाता है? क्या हमारी जान की कोई कीमत नहीं?”

कुछ संगठनों ने इस मुद्दे को मानवाधिकार उल्लंघन के रूप में भी उठाया है और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से हस्तक्षेप की मांग की है।

सरकार और मीडिया चुप

पाकिस्तानी सेना या सरकार की ओर से अब तक इस घटना पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। स्थानीय मीडिया को भी निर्देश दिए गए कि वे इस विषय पर रिपोर्ट न करें।

हालांकि, सोशल मीडिया और ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) की मदद से इस घटना की पुष्टि हुई है। सैटेलाइट इमेज और जमीन से मिली तस्वीरों में जले हुए इलाके, मलबे और सैन्य हलचल देखी गई है।

शाहीन-3 की यह असफलता सिर्फ एक तकनीकी चूक नहीं, बल्कि पाकिस्तान की रणनीतिक प्रतिष्ठा और जनता की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

अब समय आ गया है कि पाकिस्तान अपने हथियारों की तकनीकी गुणवत्ता की जांच करे और यह तय करे कि वह अपने ही नागरिकों की ज़िंदगी को जोखिम में डालकर रक्षा शक्ति का प्रदर्शन करना कब तक जारी रखेगा।

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