Sir Creek विवाद: भारत-पाकिस्तान रिश्तों का रणनीतिक बारूदी सुरंग क्षेत्र
कच्छ के रण की नमकीन धरती और दलदली इलाकों के बीच फैला है सर क्रीक — लगभग 96 किलोमीटर लंबी ज्वारीय खाड़ी। बाहर से देखने में यह बस पानी की पतली धारा लगती है, लेकिन इसके अंदर छिपा है एक बड़ा सामरिक और आर्थिक महत्व, जिसने भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से खिंचाव बनाए रखा है।
इतिहास से शुरुआत
सर क्रीक विवाद की जड़ें ब्रिटिश काल तक जाती हैं। साल 1914 में सिंध सरकार (जो तब ब्रिटिश भारत का हिस्सा थी) और कच्छ के राव के बीच एक समझौता हुआ था, जिसमें सीमा रेखा सर क्रीक के पूर्वी किनारे पर तय की गई थी।
आज पाकिस्तान इसी समझौते का हवाला देकर पूर्वी तट तक अपने अधिकार का दावा करता है। वहीं भारत का कहना है कि सीमा रेखा क्रीक के बीचोंबीच (मिड-चैनल) से गुजरती है — यानी थालवेग सिद्धांत के अनुसार, जहां पानी सबसे गहरा बहता है, वहीं असली सीमा होती है।
1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद यह विवाद फिर सुर्खियों में आया। एक अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल ने कच्छ क्षेत्र की बाकी सीमाओं पर फैसला किया, लेकिन सर क्रीक का मुद्दा अनसुलझा रह गया। आज भी दोनों देशों के मानचित्र अलग हैं और रुख कड़ा।
रणनीतिक और आर्थिक महत्व
सर क्रीक की अहमियत केवल नक्शे की रेखाओं तक सीमित नहीं है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षेत्र में तेल और गैस के भंडार हो सकते हैं। इसके अलावा, क्रीक से गुजरने वाली सीमा तय करती है कि किस देश को कितना समुद्री क्षेत्र यानी एक्सक्लूसिव इकनॉमिक ज़ोन (EEZ) मिलेगा — और वही तय करता है कि समुद्र के नीचे के संसाधनों पर किसका अधिकार होगा।भौगोलिक रूप से भी यह इलाका बहुत अहम है। यह अरब सागर के किनारे रणनीतिक पहुंच रखता है। भारत के लिए यह समुद्री संप्रभुता का सवाल है, जबकि पाकिस्तान के लिए यह कराची बंदरगाह की सुरक्षा कवच।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की कड़ी चेतावनी
2 अक्टूबर 2025 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सर क्रीक को लेकर पाकिस्तान को साफ संदेश दिया। गुजरात के भुज सैन्य स्टेशन में विजयादशमी समारोह के दौरान उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की किसी भी हरकत का जवाब “इतिहास और भूगोल बदल देने वाला” होगा।
उन्होंने याद दिलाया —
“कराची जाने का रास्ता सर क्रीक से होकर गुजरता है।”
यह बयान केवल चेतावनी नहीं, बल्कि भारत की दृढ़ नीति का संकेत था कि सीमा और समुद्री क्षेत्र पर कोई समझौता नहीं होगा।
रक्षा सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान ने हाल के महीनों में सर क्रीक के आसपास हरामी धोरो और बांधा धोरा क्षेत्रों में नई पोस्ट, बंकर और निगरानी चौकियां बनाई हैं। इसी गतिविधि के जवाब में सिंह का बयान एक स्ट्रैटेजिक डिटरेंस के रूप में देखा जा रहा है — यानी पाकिस्तान को सख्त संदेश कि किसी भी गलत कदम का नतीजा भारी पड़ेगा।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया और गतिविधियां
रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान ने सर क्रीक के पास अपनी तटीय रक्षा प्रणाली को मजबूत किया है, गश्त बढ़ाई है और निगरानी ढांचा तैयार किया है।
राजनाथ सिंह के बयान पर पाकिस्तान की सेना ने प्रतिक्रिया दी कि “भारत के उत्तेजक बयान क्षेत्रीय स्थिरता के लिए हानिकारक हैं।” फिर भी, इस्लामाबाद अब भी यही दावा दोहरा रहा है कि सर क्रीक का पूर्वी किनारा ही असली सीमा है।
भारत इसे नकारते हुए कहता है कि अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार सीमा मिड-चैनल यानी थालवेग लाइन से गुजरती है।
जहां पाकिस्तान चाहता है कि मामला अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में जाए, वहीं भारत साफ कह चुका है कि यह मुद्दा सिमला समझौते के तहत द्विपक्षीय रूप से ही सुलझेगा।
क्यों अहम है सर क्रीक
भले ही सर क्रीक सिर्फ 96 किलोमीटर लंबी दलदली पट्टी है, लेकिन इसका सामरिक वजन बहुत बड़ा है।
इस पर नियंत्रण का मतलब है — अरब सागर तक पहुंच, समुद्री संसाधनों पर अधिकार और सीमा सुरक्षा पर पकड़।
एक रक्षा विश्लेषक के शब्दों में,
“सर क्रीक कोई साधारण पानी की धारा नहीं है — यह दोनों देशों की इच्छाशक्ति की परीक्षा है। जिसे इसका नियंत्रण मिला, उसे समुद्र का द्वार मिल गया।”
आगे
अभी तक दोनों देशों के बीच कोई अंतिम समझौता नहीं हुआ है। क्रीक का भूगोल लगातार बदलता रहता है — ज्वार और गाद के कारण चैनल की दिशा भी खिसकती है, जिससे विवाद और उलझ जाता है।
हालांकि किसी पक्ष की मंशा सीधी टकराव की नहीं है, लेकिन बढ़ती गतिविधियां और बयानबाजी इस इलाके को फिर संवेदनशील बना रही हैं।
इसका हल तभी संभव है जब भारत और पाकिस्तान दोनों संवाद, कानूनी सिद्धांतों और आपसी विश्वास के साथ आगे बढ़ें। तब तक सर क्रीक का यह शांत पानी दक्षिण एशिया की राजनीति में उबाल बनाए रखेगा।