अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को एक चौंकाने वाला दावा किया। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की से व्हाइट हाउस में मुलाक़ात से कुछ घंटे पहले ही ट्रंप ने कहा कि उन्होंने अपनी दूसरी पारी के महज़ छह महीनों में छह जंग खत्म कर दी हैं।
ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा –
“मैंने सिर्फ़ 6 महीने में 6 जंग रोक दीं — जिनमें से एक तो परमाणु तबाही में बदल सकती थी। लेकिन इसके बावजूद मुझे वॉल स्ट्रीट जर्नल और ऐसे कई लोगों की बकवास सुननी पड़ती है, जिन्हें असलियत की ज़रा भी समझ नहीं। वे मुझे रूस-यूक्रेन वाली गड़बड़ी पर ज्ञान देते हैं, जबकि ये नींदी जो बाइडेन की जंग है, मेरी नहीं। मैं तो बस इसे ख़त्म करने आया हूँ, और अगर मैं राष्ट्रपति होता तो ये जंग कभी शुरू ही नहीं होती। मुझे अच्छी तरह पता है कि मैं क्या कर रहा हूँ, और मुझे उन लोगों की सलाह की ज़रूरत नहीं जो बरसों से इन संघर्षों पर काम कर रहे हैं लेकिन एक भी मसला हल नहीं कर पाए। ये सब “मूर्ख” लोग हैं — जिनके पास न समझ है, न दिमाग, न कॉमन सेंस। ये लोग सिर्फ़ रूस-यूक्रेन संकट को और बिगाड़ रहे हैं। फिर भी, अपने हल्के और जलनखोर आलोचकों के बावजूद, मैं ये काम पूरा करूँगा — जैसे हमेशा करता आया हूँ!!!”
ट्रंप खुद को अब “पीसमेकर-इन-चीफ” यानी शांति दिलाने वाले राष्ट्रपति के तौर पर पेश कर रहे हैं और इशारा तक कर चुके हैं कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिलना चाहिए।
ट्रंप के मुताबिक़ 6 जंगें जो उन्होंने खत्म कीं:
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इज़रायल–ईरान (जून 2025) – 12 दिन चली जंग, अमेरिकी बमबारी के बाद युद्ध विराम।
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कांगो–रवांडा (जून 2025) – व्हाइट हाउस में शांति समझौता, लेकिन फिर झड़पें शुरू।
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कंबोडिया–थाईलैंड (जुलाई 2025) – पांच दिन की सीमा जंग, ट्रंप की कॉल के बाद मलेशिया में ट्रूस।
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भारत–पाकिस्तान (मई 2025) – पहलगाम हमले के बाद तनाव, ट्रंप ने “सीज़फायर” का एलान किया, हालांकि भारत ने अमेरिकी दखल से इनकार किया।
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आर्मेनिया–अज़रबैजान (अगस्त 2025) – व्हाइट हाउस समझौता, रूस-ईरान ने विरोध किया, हालात अभी भी नाज़ुक।
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सर्बिया–कोसोवो (पहला कार्यकाल, 2020) – आर्थिक सहयोग पर वॉशिंगटन एग्रीमेंट, लेकिन असली विवाद अब भी जस का तस।
ट्रंप अपनी “कामयाबियों” में पहले कार्यकाल का मिस्र–इथियोपिया (नाइल डैम विवाद) भी गिनते हैं, जबकि समझौता आज तक अधर में है।
आलोचना और सच्चाई
विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से कई “समझौते” अस्थायी हैं, कई जगह गोलाबारी जारी है और कुछ मामलों में असल जंग की बजाय सिर्फ़ तनाव था। भारत तो साफ़ कह चुका है कि कश्मीर पर किसी तरह का अमेरिकी मध्यस्थता स्वीकार्य नहीं।
फिर भी, ट्रंप अपने अंदाज़ में इसे अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बता रहे हैं और अब यूक्रेन युद्ध को “सातवीं जीत” बनाने की कोशिश में जुटे हैं।