SSC आंदोलन: बर्बाद होती शिक्षा व्यवस्था और भर्ती परीक्षाएं

वर्ष 2025 में कर्मचारी चयन आयोग (SSC) द्वारा आयोजित विभिन्न भर्ती परीक्षाओं में भारी तकनीकी गड़बड़ियों, असंगत प्रबंधन और परीक्षा एजेंसी में विवादास्पद बदलावों के चलते पूरे देश में छात्रों, अभ्यर्थियों और शिक्षकों के बीच जबरदस्त आक्रोश फैल गया है। हजारों परीक्षार्थी सड़कों पर हैं, सोशल मीडिया पर #SSCMisManagement, #JusticeForAspirants, और #ExamReformNow जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं, और दिल्ली के CGO कॉम्प्लेक्स से लेकर लखनऊ, पटना, रांची, और कोलकाता तक विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं।

बिना सूचना परीक्षा रद्द, सेंटर पर हंगामा

हजारों छात्र परीक्षा केंद्रों तक लंबी दूरी तय कर पहुंचे, लेकिन कई जगहों पर अचानक नोटिस बोर्ड पर लिखा मिला—“परीक्षा रद्द।” न कोई सूचना, न हेल्पलाइन काम कर रही थी। तकनीकी गड़बड़ियां, सर्वर क्रैश, गलत सेंटर आवंटन और स्टाफ द्वारा अभद्र व्यवहार जैसे आरोप SSC पर लगे हैं।

विशेषज्ञों और छात्रों का आरोप है कि SSC ने बिना पर्याप्त तैयारी के Tata Consultancy Services (TCS) की सेवाएं समाप्त कर Eduquity नामक एक विवादास्पद एजेंसी को परीक्षा आयोजन का जिम्मा सौंपा, जो पहले से ही चार राज्यों में ब्लैकलिस्टेड है और परीक्षा लीक जैसे मामलों में शामिल रही है।

सरकारी चुप्पी और जवाबदेही का संकट

सरकार इस गंभीर विफलता पर महज़ “तकनीकी खेद” और “जांच समिति” का औपचारिक बयान देकर पल्ला झाड़ रही है। न कोई इस्तीफ़ा हुआ, न ही किसी मंत्री या SSC चेयरमैन ने सार्वजनिक तौर पर जवाबदेही ली। एजेंसी का चयन किसने किया? क्या उसका ट्रैक रिकॉर्ड नहीं देखा गया? यह सवाल अब तेज़ी से उठ रहे हैं।

विश्लेषकों का मानना है कि परीक्षा की यह विफलता सिर्फ प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक जवाबदेही के पतन का स्पष्ट संकेत है।

डिजिटल प्रयोग, लेकिन ज़मीनी तैयारी नाकाम

SSC ने जून 2025 में एक नई तकनीक अपनाई—AI आधारित प्रश्नपत्र निर्माण, डिजिटल साइन, एन्क्रिप्शन इत्यादि। लेकिन जब आधारभूत संरचना ही अस्थिर हो, तो तकनीक भी भरोसा नहीं जगा सकी। परीक्षाएं दो बार स्थगित हो चुकी हैं, और कई बार परीक्षा के दिन ही सेंटर पर रद्द होने की सूचना मिली।

शिक्षा का ढांचा भी संकट में

उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में 5,000 से अधिक सरकारी स्कूल बंद कर दिए गए हैं। सरकारी नौकरियों की आशा लगाए छात्र तबाह हो रहे हैं—डिग्री है, लेकिन अवसर नहीं। निजीकरण और बजट कटौती के चलते शिक्षक नहीं भरते, पढ़ाई अधूरी रह जाती है। कोचिंग और तैयारी में वर्षों लगाने के बाद भी एक पेपर लीक या परीक्षा रद्द होने से छात्र मानसिक तनाव और हताशा में चले जाते हैं।

दिल्ली में लाठीचार्ज, सड़कों पर संघर्ष

हाल ही में छात्र और शिक्षक संगठनों ने दिल्ली में विशाल मार्च निकाला, लेकिन दिल्ली पुलिस ने उन्हें बलपूर्वक रोका और लाठीचार्ज किया। यह शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार पर सीधा हमला माना जा रहा है। छात्रों का कहना है कि यह लड़ाई अब केवल रोजगार की नहीं, बल्कि संविधान द्वारा दिए गए “समान अवसर के अधिकार” की है।

क्या यह आंदोलन क्रांति की नींव बनेगा?

सरकार यदि समय रहते कठोर और पारदर्शी कदम नहीं उठाती—जैसे एजेंसी चयन में सार्वजनिक निगरानी, भर्ती बोर्डों की जवाबदेही तय करना, केंद्र प्रबंधन में पारदर्शिता और शिक्षा को वास्तविक प्राथमिकता देना—तो यह आंदोलन केवल प्रदर्शन तक सीमित नहीं रहेगा। यह युवाओं के भीतर व्यवस्था के प्रति अविश्वास की वह चिंगारी बन सकता है, जो किसी क्रांति का रूप ले सकती है।

“यह आंदोलन केवल परीक्षा में गड़बड़ी नहीं, बल्कि युवाओं की आत्मा और लोकतंत्र के भविष्य की लड़ाई है।”

मुख्य माँगें और सुझाव:

  • परीक्षा संचालन में पूर्ण पारदर्शिता और स्वायत्तता

  • भर्ती एजेंसियों के चयन में सार्वजनिक भागीदारी

  • तकनीकी गड़बड़ियों के लिए त्वरित मुआवज़ा और पुनर्परीक्षा

  • शिक्षा और रोजगार को चुनावी जुमले नहीं, नीति की प्राथमिकता बनाना

  • बंद सरकारी स्कूलों को पुनः खोलना और शिक्षक भर्ती बहाल करना

(लेखक : आदित्य वर्मा, शोधार्थी, अंतरराष्ट्रीय संबंध, लखनऊ विश्वविद्यालय )

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