U-Turn: सीज़फायर पर ट्रंप बोले –“मैंने नहीं, मोदी-मुनीर ने रोका युद्ध”

वॉशिंगटन, डी.सी.: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने का श्रेय इस बार खुद नहीं लिया, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर की सूझबूझ की सराहना की। ट्रंप ने कहा कि दोनों नेताओं ने खुद ही युद्ध से पीछे हटने का फैसला किया और एक संभावित परमाणु युद्ध को टाल दिया।

व्हाइट हाउस में जनरल मुनीर के साथ एक खास लंच के कुछ घंटों बाद ओवल ऑफिस से मीडिया से बात करते हुए ट्रंप ने कहा,
“मैं मुनीर साहब का शुक्रिया अदा करता हूं कि उन्होंने युद्ध का रास्ता नहीं चुना। मैं प्रधानमंत्री मोदी का भी धन्यवाद करता हूं। हम भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ व्यापारिक समझौते पर काम कर रहे हैं।”

उन्होंने आगे कहा,
“ये दो बेहद समझदार नेता हैं, और इनके पीछे भी समझदार टीमें हैं। इन लोगों ने पीछे हटने का फैसला लिया। यह एक परमाणु युद्ध बन सकता था, क्योंकि दोनों देश परमाणु ताकत हैं।”

ट्रंप का यह बयान उनके पहले के बयानों से अलग है। पहले वे कई बार यह दावा कर चुके थे कि भारत-पाक के बीच 10 मई को हुए सीज़फायर में उनका अहम योगदान रहा है। लेकिन अब उन्होंने साफ कहा कि ये फैसला दोनों देशों ने खुद ही लिया।

ट्रंप ने यह भी बताया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान को यह प्रस्ताव दिया था कि अगर वे तनाव कम करेंगे, तो अमेरिका व्यापारिक मामलों में उन्हें फायदा देगा। यानी अमेरिका ने आर्थिक कूटनीति के ज़रिए भी शांति का माहौल बनाने की कोशिश की।

यह बयान ऐसे समय पर आया है जब कनाडा के कानानास्किस में होने वाली G7 समिट में ट्रंप और मोदी की मुलाकात आखिरी समय पर रद्द हो गई। हालांकि, वापसी से पहले दोनों नेताओं के बीच फोन पर करीब 35 मिनट की बातचीत हुई – सीज़फायर के बाद उनकी पहली सीधी बातचीत।

वहीं, कानानास्किस से जारी एक वीडियो बयान में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान या उसके बाद अमेरिका की मध्यस्थता पर कोई बातचीत नहीं हुई। उन्होंने बताया कि यह सीज़फायर भारत और पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों के सीधे संपर्क से संभव हुआ था, जिसकी पहल इस्लामाबाद ने की थी।

मिस्री ने यह भी दोहराया कि भारत का रुख तीसरे पक्ष की किसी भी मध्यस्थता के खिलाफ है, और इस पर भारत के पूरे राजनीतिक नेतृत्व में सहमति है।

ट्रंप के इस बदले हुए अंदाज़ को कूटनीतिक रूप से एक रणनीतिक बदलाव माना जा रहा है – जहां उन्होंने क्रेडिट लेने के बजाय भारत और पाकिस्तान के नेताओं को सम्मान दिया, लेकिन साथ ही अमेरिका के दक्षिण एशिया में आर्थिक हितों का भी संकेत दिया।

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