News Desk: अमेरिका ने एक तरफ लश्कर-ए-तैयबा की छाया संगठन TRF (द रेजिस्टेंस फ्रंट) को वैश्विक आतंकी संगठन घोषित किया और दूसरी तरफ पाकिस्तान की आतंकवाद के खिलाफ भूमिका की खुलेआम तारीफ कर दी। इस दोहरी रणनीति ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई बहस छेड़ दी है।
अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार से मुलाकात के बाद X (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा:
“मैंने आज पाकिस्तानी डिप्टी पीएम और विदेश मंत्री @MIshaqDar50 से मुलाकात की। हमने द्विपक्षीय व्यापार और क्रिटिकल मिनरल्स में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की। साथ ही, मैंने क्षेत्रीय स्थिरता और आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान की साझेदारी के लिए उनका धन्यवाद किया।”
Met with Pakistani Deputy Prime Minister and Foreign Minister @MIshaqDar50 today to discuss expanding bilateral trade and enhancing collaboration in the critical minerals sector. I also thanked him for Pakistan’s partnership in countering terrorism and preserving regional… pic.twitter.com/QZB9RZwIA8
— Secretary Marco Rubio (@SecRubio) July 25, 2025
यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका ने कुछ ही दिन पहले TRF को आतंकी संगठन घोषित किया है — वही TRF, जो पहलगाम हमले (जिसमें 26 निर्दोष लोगों की जान गई थी) की जिम्मेदारी लेने के बाद मुकर गया था। माना जाता है कि TRF, लश्कर-ए-तैयबा का ही दूसरा नाम है जिसे सिर्फ अंतरराष्ट्रीय नजरों से बचाने के लिए अलग ब्रांडिंग दी गई थी।
भारत ने TRF को लेकर लंबे समय से चेताया था और अमेरिका के इस कदम का स्वागत किया। लेकिन इसके तुरंत बाद पाकिस्तान को “आतंकवाद के खिलाफ सहयोगी” बताना अमेरिका की दोगली नीति को उजागर करता है।
पाकिस्तान ने पहले TRF को आतंकी संगठन मानने से इनकार किया, लेकिन जब अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा तो चुपचाप समर्थन दे दिया — ये दर्शाता है कि पाकिस्तान अब वैश्विक मंच पर घिरता जा रहा है।
इस पूरी घटनाक्रम में अमेरिका की कूटनीति की चालाकी साफ झलकती है। एक ओर वो भारत के साथ आतंकवाद के खिलाफ खड़ा दिखना चाहता है, तो दूसरी ओर पाकिस्तान से व्यापार और रणनीतिक संबंध बनाए रखना भी चाहता है।
अब सवाल ये उठता है — क्या आतंकवाद के खिलाफ असली लड़ाई, आतंकी संगठनों को पालने वाले देशों को “साझेदार” बताकर लड़ी जा सकती है?