अमेरिका का डबल गेम?

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… इज़राइल को समर्थन, पाकिस्तान के मुनीर को गले, और भारत से ‘संयम’ की अपील!

 

– आशीष सिन्हा 

अमेरिका ने एक तरफ जहाँ इज़राइल के आतंकवाद विरोधी अभियान का खुलकर समर्थन किया, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर का व्हाइट हाउस में गर्मजोशी से स्वागत किया। 18 जून को ट्रंप और मुनीर की मुलाक़ात खास थी — बिना किसी नागरिक प्रतिनिधि के, एकदम बंद कमरे में। ये खबर दिल्ली तक ज़ोर से गूंजी।

“इसने न्यूक्लियर जंग रोक दी!” – ट्रंप का दावा

पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि असीम मुनीर ने भारत-पाकिस्तान के बीच न्यूक्लियर युद्ध रोकने में बड़ी भूमिका निभाई। पाकिस्तान इस दावे पर झूम रहा है, लेकिन भारत ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। भारत का साफ कहना है कि मई में जो सीज़फायर हुआ, वो पूरी तरह दो-तरफा और स्वतंत्र फैसला था — किसी तीसरे की दखलअंदाज़ी नहीं थी।

ऑपरेशन सिंदूर: भारत का जवाब, फिर अमेरिका की नसीहत

22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारत ने 7 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया — पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चल रहे आतंकी शिविरों पर मिसाइल और एयरस्ट्राइक से हमला किया गया। सिर्फ 23 मिनट के ऑपरेशन में 100 से ज़्यादा आतंकियों को मार गिराने की खबरें आईं।

लेकिन जैसे ही भारत ने अपनी सैन्य ताकत दिखाई, वॉशिंगटन से संदेश आया — “संयम रखिए!” अमेरिका की यह बात भारतीय रणनीतिक हलकों में खटक गई, क्योंकि यही अमेरिका इज़राइल के सख़्त जवाब को खुला समर्थन दे रहा है।

मोदी का साफ संदेश

सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप को सीधे फोन कर यह साफ कर दिया कि भारत को किसी मध्यस्थ की ज़रूरत नहीं है। भारत के विदेश मंत्रालय ने भी ट्रंप के “शांति दूत” बनने के दावे को “पूरी तरह गलत” बताया।

इज़राइल ने भारत का खुलकर साथ दिया

जहां अमेरिका का रुख ढुलमुल दिखा, वहीं इज़राइल ने भारत की कार्रवाई का खुला समर्थन किया। ऑपरेशन सिंदूर को “संतुलित और ज़रूरी” बताया — जो भारत के लिए एक अहम कूटनीतिक समर्थन माना जा रहा है।

कहानी में टकराव: किसने कराई शांति?

जहाँ ट्रंप और पाकिस्तान इस बात का जश्न मना रहे हैं कि अमेरिका ने जंग रोकी, वहीं भारत बार-बार कह रहा है: “हमने खुद फैसला लिया, किसी की ज़रूरत नहीं थी।” पाकिस्तान तो एक क़दम और आगे बढ़ गया — उसने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित कर दिया है। इससे भारत और अमेरिका के रिश्तों में और खटास आ सकती है।

बड़ा सवाल: अमेरिका किसके साथ?

इस पूरे घटनाक्रम ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं:

  • अमेरिका इज़राइल को खुला समर्थन दे रहा है।

  • पाकिस्तान को व्हाइट हाउस बुला कर ‘शांति का प्रतीक’ बना रहा है।

  • और भारत को संयम की नसीहत दे रहा है — वो भी तब जब भारत आतंक का सीधा शिकार है।

अंतिम बात

क्या अमेरिका भारत के खिलाफ चाल चल रहा है? एक ओर इज़राइल को खुला समर्थन, दूसरी ओर पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर को व्हाइट हाउस में विशेष सम्मान, और फिर भारत को ‘संयम बरतने’ की नसीहत! सवाल अब यही उठ रहा है – क्या भारत के खिलाफ बन रही है नई अंतरराष्ट्रीय साजिश?

या फिर…

क्या भारत को अब अपनी विदेश नीति में बदलाव करना चाहिए?
क्या अमेरिका अब भरोसे के लायक नहीं रहा?
क्या भारत को रूस-फ्रांस-इज़राइल के साथ नया मोर्चा बनाना चाहिए?

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