…वजहें हैं सस्ती फीस, एनएमसी की मान्यता और NEET से राहत
नई दिल्ली : भारत में मेडिकल सीटों की भारी कमी और प्राइवेट कॉलेजों की महंगी फीस के चलते बड़ी संख्या में छात्र अब MBBS की पढ़ाई के लिए ईरान और यूक्रेन जैसे देशों का रुख कर रहे हैं। खासकर मिडिल क्लास परिवारों के छात्र वहां की कम फीस, अंतरराष्ट्रीय मान्यता और एंट्रेंस टेस्ट की बाध्यता न होने की वजह से इन देशों को चुन रहे हैं।
ईरान: कम खर्च, अच्छी पढ़ाई और भारत में मान्यता
विदेश मंत्रालय (MEA) के अनुसार, 2022 में करीब 2,050 भारतीय छात्र ईरान के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहे थे, जिनमें से ज्यादातर ने मेडिकल कोर्स चुना। तेहरान यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज, शहीद बेहश्ती यूनिवर्सिटी और इस्लामिक आज़ाद यूनिवर्सिटी जैसे संस्थान सबसे ज़्यादा पसंद किए जा रहे हैं।
भारत में हर साल करीब 23 लाख छात्र NEET-UG परीक्षा देते हैं, लेकिन देशभर में सिर्फ 1.1 लाख MBBS सीटें ही उपलब्ध हैं। इसमें से भी सिर्फ 55,000 सीटें सरकारी कॉलेजों में हैं, जहां फीस आम परिवारों के बजट में होती है। बाकी प्राइवेट कॉलेजों में फीस 50 लाख रुपये या उससे ज़्यादा होती है, जो ज्यादातर लोगों के लिए संभव नहीं।
इसके मुकाबले, ईरान में MBBS की कुल लागत 14 से 15 लाख रुपये के बीच होती है, जिसमें ट्यूशन फीस और रहन-सहन का खर्च दोनों शामिल होते हैं। स्कॉलरशिप मिलने से यह खर्च और भी कम हो जाता है। एजुकेशन ज़ोन के मैनेजिंग डायरेक्टर आदिल शेख के अनुसार, पहले जो छात्र बांग्लादेश को प्राथमिकता देते थे, अब वे भी ईरान को चुन रहे हैं।
ईरान के मेडिकल कॉलेजों को भारत की नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) मान्यता देती है, जिससे वहां पढ़ाई कर चुके भारतीय छात्र FMGE (NEXT) परीक्षा पास कर भारत में प्रैक्टिस कर सकते हैं। साथ ही, कई विश्वविद्यालय वर्ल्ड डायरेक्टरी ऑफ मेडिकल स्कूल्स (WDOMS) में भी लिस्टेड हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलती है।
यहां का इंफ्रास्ट्रक्चर आधुनिक है, छात्रों को शुरू से ही क्लिनिकल एक्सपोजर मिलता है और कोर्स भी इंटरग्रेटेड होता है। इसके अलावा ईरान में रहना भी सस्ता है, जिससे यह विकल्प और भी बेहतर बन जाता है।
यूक्रेन: भारतीय छात्रों का दशकों पुराना पसंदीदा देश
यूक्रेन लंबे समय से भारतीय छात्रों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य रहा है। 2022 में करीब 20,000 भारतीय छात्र वहां पढ़ाई कर रहे थे। MBBS कोर्स की छह साल की फीस लगभग $35,000 (करीब ₹28-30 लाख) होती है, जो भारत के मुकाबले काफी सस्ती है।
यहां एंट्रेंस एग्ज़ाम की ज़रूरत नहीं होती, और डिग्रियों को WHO, यूरोपियन काउंसिल जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं मान्यता देती हैं। इसके अलावा, छात्र आगे यूरोप में बसने या पढ़ाई जारी रखने का भी सपना देखते हैं।
इस बीच, ईरान-इज़राइल तनाव के चलते भारतीय छात्रों की सुरक्षा पर चिंता
ईरान में चल रही स्थिति के बीच, भारतीय छात्रों की सुरक्षा को लेकर सरकार सतर्क हो गई है।
ईरान-इज़राइल तनाव के बीच भारतीय दूतावास ने तेहरान से छात्रों को निकाला
ईरान और इज़राइल के बीच बढ़ते तनाव के चलते तेहरान में रह रहे भारतीय छात्रों को वहां से हटाया गया है। भारतीय दूतावास ने छात्रों को सुरक्षित जगहों पर भेजने की व्यवस्था की है। विदेश मंत्रालय (MEA) ने बताया कि जिन लोगों के पास खुद का ट्रांसपोर्ट है, उन्हें भी तेहरान छोड़ने की सलाह दी गई है।
कुछ भारतीय नागरिकों को अर्मेनिया बॉर्डर के रास्ते ईरान से बाहर निकलने में मदद की गई है। दूतावास भारतीय समुदाय के संपर्क में लगातार बना हुआ है और हर संभव सहायता दी जा रही है। मंत्रालय ने कहा है कि स्थिति को देखते हुए आगे भी एडवाइजरी जारी की जा सकती है।
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