चीन पर अंकुश लगाने के लिए उसकी आर्थिक कमर को तोडना बेहद जरूरी है: इंद्रेश कुमार

रांची। राष्‍ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच (फैन्स) की ओर से हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामक नीति का समाधान (इंडो पेसिफिक रीजन: चाइना कंटेनमेंट पॉलिसी) को लेकर एक देशव्‍यापी वेबिनार आयोजित किया गया। इस वेबिनार को संबोधित करते हुए फैन्स के राष्ट्रीय संरक्षक व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल सदस्य इंद्रेश कुमार ने कहा कि विभाजन के बाद भारत अब ऐसे मोड पर आ गया है, जहां वर्षों से लंबित कई अहम मसलों का समाधान संभव होता नजर आ रहा है। राम जन्मभूमि विवाद का समाधान शांतिपूर्वक होना इस बात का बडा संकेत है।
उन्होंने चीन की आक्रामकता और उसकी विस्तारवादी नीतियों पर प्रहार करते हुए कहा कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की कुटिल चाल को लेकर हमें सजग रहने एवं इसके खिलाफ एक वैश्विक अभियान चलाने की जरूरत है। चीन ने अब तक अनेक देशों की जमीन कब्जाई है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को झांसे में लेकर तिब्बत सहित अनेक देश हड़प लिए। कैलाश मानसरोवर को भी जबरन कब्जा लिया। पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान में विकास के नाम पर वहां कब्जे के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है। साथ ही साथ नेपाल को भी झांसा देकर उसे अपने पाले करने में जुटा है। उन्होंने कहा कि नेपाल की मौजूदा वामपंथी सरकार चीन की एक तरह से गुलाम हो गई है। भारत के खिलाफ नेपाल का अनर्गल प्रलाप भी चीन की साजिश का ही एक हिस्सा है। अपनी विस्तारवादी अभियान में यह चीन का एक और क्रूर चेहरा है। उन्होंने कहा कि चीन हमेशा से एक विस्तारवादी देश रहा है, इसके लिए वह किसी देश के लोकतंत्र को भी कुचलने से बाज नहीं आता है। उसने अब तक कई देशों के मौलिक अधिकारों का हनन किया है।
इंद्रेश कुमार ने कहा कि चीन जिसे दक्षिण चीन सागर कहता है वास्तव में वह हिंद प्रशांत क्षेत्र में मुक्त समुद्री व्यापार का सबसे बड़ा केंद्र है। ज्ञात रहे कि पहले यह यह पूर्वी सागर व मलय सागर कहलाता था। यह सागर जलवायु समेत कई मामलों से उन्नत है। अब चीन इस सागर में अपना वर्चस्व साबित करने में जुटा है। मलय सागर में अब हमें चीन की साजिशों के खिलाफ एक स्पष्ट संदेश देने की जरूरत है। पूर्व की तुलना में अब भारत के रुख में अधिक स्पष्टता है। इससे निपटने के लिए मीडिया के माध्यम से दुनिया भर में चीन की साजिश के खिलाफ प्रचार अभियान की जरूरत है। ताइवान, तिब्बत और हांगकांग को यूनाइटेड नेशन के अंदर एक स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दी जानी चाहिए। इसके लिए भी जन आंदोलन की जरूरत है। चूंकि इन देशों में चीन की दमनकारी नीतियां अब किसी से छिपी नहीं है। चीन के उत्पात, क्रूरता एवं उसके फैलाव को सीमित करने के खिलाफ दुनिया के देशों को अब एक साथ आना होगा। उन्होंने कोरोना वायरस को चीन को लैब में तैयार किया गया बायो हथियार करार दिया। यही कारण है कि दुनिया के अधिकांश ताकतवार देश अभी तक कोई वैक्सीन बनाने में विफल रहे हैं। चीन का असली रूप दुनिया के सामने आ चुका है। अभी तक चीन की विस्तारवादी नीति का भारत ने डटकर सामना किया है। चीन की मौजूदा नीति मानव जाति के लिए संकट एवं घोर चुनौती है। यदि चीन, भारत को पराजित करेगा तो यह दुनिया के लिए संकट बन जाएगा। दुनिया के देश आज भारत के साथ इसलिए हैं, चूंकि उन्हें पता है कि भारत ही इस चुनौती की काट है।
उन्होंने कहा कि चीन पर अंकुश लगाने के लिए उसकी आर्थिक कमर को तोडना बेहद जरूरी है। इसी को ध्यान में रखकर भारत को अब अपने आत्मनिर्भर होने की दिशा मे काफी गंभीरता से पहल करनी होगी, जिसकी शुरुआत इस महामारी के साथ आई चुनौतियां के दरम्यान शुरू हो चुकी है। चीन की विस्तारवाद व दमनकारी नीति, दादागिरी किस तरह अमानवीय है, इसका दंश आज कई देश झेल रहे हैं। यह मानवता के खिलाफ है। हमें इसे विश्व की मीडिया में लेकर जाने की जरूरत है। चीन की साजिश एवं कुटिलता एक दिन दुनिया को जरूर समझ में आएगा। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में भारत की भूमिका काफी निर्णायक रहेगी। वैश्विक शांति को लेकर दुनिया की निगाह अभी से भारत की ओर है। उन्होंने आत्मनिर्भरता पर जोर देते हुए कहा कि हमें अपने संसाधनों को बढाना होगा। हर मायने में आत्मनिर्भर बनना होगा। भारत के गांवों में भरपूर रचनात्मकता एवं कौशल है, उन्हें संजोकर एक दिशा देनी होगी और उनके कौशल का सम्मान करते हुए उन्हें अपनी जरूरतों के अनुसार निखारना होगा। तभी नए भारत का जन्म होगा। भारत ही विश्व को मानवता का पाठ पढा सकता है। भारत में विश्व को नेतत्व करने की क्षमता है।
राष्‍ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच के राष्‍ट्रीय संगठन महामंत्री गोलक बिहारी राय जी ने वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में आज चीन की वजह से नई परिस्थिति पैदा हो गई है। चीन काफी आक्रामकता के साथ अपनी विस्तारवादी नीति को आगे बढा रहा है। उसकी फितरत हमेशा आक्रमण से विस्तारवाद की रही है। मौजूदा चीन पूर्वोत्तर का कभी इतना बडा चीन नहीं रहा है। पूर्व में यह महज पांच राज्यों का समूह था। साल 2007 में एक चतुष्कोणीय क्वाड बनाया गया। इसका मकसद आपदा परिस्थितियों के लिए समुद्री क्षमताओं के बेहतर समन्वय के लिए किया गया। आज क्वाड की गतिविधियां- कनेक्टिवटी, सस्टेनेबल डवलपमेंट, काउंटर टेररिज्म, मेरीटाइम व साइबर सिक्युरिटी तथा मानवतावादी आपदा प्रक्रिया तंत्र का निर्माण करना है। बाद में चीन की आक्रामकता चिंता का विषय बन गई। हालांकि क्वाड अब एक व्यापक आर्थिक, सामरिक गठबंधन का हिस्सा बन चुका है। साल 2017 के बाद की स्थिति में भारत की अब इसमें एक अहम भूमिका है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत के बीच चार देशों का गठजोड़ चीन की विस्तारवादी नीति को जवाब देने के लिए तैयारी कर रहा है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की एक बड़ी भूमिका मानते हुए बीजिंग दक्षिण चीन सागर में अपने आपको मजबूत करने में जुटा है। 2017 में सभी चार सदस्यों (अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत) ने दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक रवैये से निपटने के लिए गठबंधन को दोबारा सक्रिय किया। तब से इन चारों देशों का गठजोड़ कई बार स्वतंत्र और खुले हिंद- प्रशांत क्षेत्र को बढ़ावा देने के मकसद से सामने आए हैं।
इसके उपरांत डा जगन्नाथ पांडा (रिसर्च फेलो, जेएनयू) ने अपने संबोधन में कहा कि चीन आज एक आक्रामक ताकत बनकर उभरा है। भारत से तुलना में चीन की आर्थिक, सैन्य ताकत काफी ज्यादा है। भारत, जापान व अमेरिका के प्रति चीन की नीति काफी आक्रामक है। मोदी सरकार के आने के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा अब काफी जोर दिया जा रहा है। वहीं, चीन पाक की ओर से उत्पन्न खतरे को देख भारत अब सीमा पर काफी सख्त स्टैंड ले रहा है। उन्होंने कहा कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की जो मौजूदा विदेश नीति है, वह हमें भविष्य की चुनौतियों को लेकर आगाह कर रहा है। बीते कुछ समय में चीन के साथ कई सीमा विवाद सामने आए हैं। डोकलाम, गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ झडप की जो घटनाएं हुईं, वह चीन का भारत के प्रति एक सोची समझी आक्रामक नीति का हिस्सा है। भारत केा इसके लिए तैयार रहना चाहिए। भारत को लेकर चीन की नीति में पीएलए का काफी प्रभाव रहा है। हालांकि अब चीन भारत को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है। नेपाल, पाकिस्तान को अपने चंगुल में लेकर चीन अब नई रणनीति बना रहा है। सीमा क्षेत्र में स्थितियों को काफी जटिल बना रहा है। इससे स्पष्ट है कि चीन का सीमा को लेकर जो नजरिया है, वह काफी आक्रामक होने वाला है। उन्होंने कहा कि दक्षिण चीन सागर ही चीन के लिए एक कमजोर कडी है। इसको ध्यान में रखकर भारत को नेवल पाॅवर को बढाना होगा। हिंद प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने होंगे।
श्रीकांत कोंडापल्ली, प्रोफेसर, एसआईएस जेएनयू ने वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि साल 2017 से दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता काफी बढती गई। चीन इस पूरे क्षे़त्र को अपने कब्जे में करने की कोशिश में है। इसलिए चीन ने इस क्षेत्र में मिसाइल, बाॅम्बर आदि तैनात किए हैं। इस क्षेत्र में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए सैन्य संसाधन व नेवल संसाधनों को भी विकसित किया। इसे काउंटर करने के लिए अब कदम उठाए जा रहे हैं। भारत, जापान व अमेरिका ने मिलकर एक मेरीटाइम एग्रीमेंट किया है ताकि इसकी चुनौतियों से निपटा जा सके। हिंद प्रशांत क्षेत्र से भारत के हित काफी गहरे जुडे हैं और चार जगहों पर समुद्री इंफ्रास्ट्रक्चर को डेवलप कर रहा है। भारत अब इस क्षेत्र में मजबूती से अपने कदम बढा रहा है।
के मल्लिकार्जुन गुप्ता (रिसर्च स्कालर) ने अपने संबोधन में कहा कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन काफी आक्रामक रुख अपनाए हुए है। ऐसे में भारत को डिजिटल टेक्नोलाॅजी को उन्नत कर चीन का काउंटर करने पर पहल करनी चाहिए। इस क्षेत्र में चीन की चुनौतियों से निपटने के लिए हमें अमेरिका के नवीनतम सैन्य संशाधानों की जरूरत है। इस क्षेत्र के लिए अमेरिकी की विदेश नीति काफी हद तक उसके खुद के व्यापारिक गतिविधियों पर निर्भर करेगी, हमें इस पर निगाह रखनी होगी।
इस वेबिनार को शिक्षाविदों समेत कई प्रमुख राष्ट्रीय वक्ताओं ने भी संबोधित किया। इस वेबिनार में देश की कई नामचीन हस्तियों ने शिरकत की। राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच झारखण्ड इकाई के अध्यक्ष पवन बजाज, संरक्षक एवं कुलसचिव रांची विश्वविद्यालय डॉ अमर चौधरी, उपाध्यक्ष एवं एसोसिएट प्रोफेसर, सरला बिरला विश्वविद्यालय डॉ संदीप कुमार, कोषाध्यक्ष रथिन भद्रा,राजा बागची, डॉ शिवेंद्र प्रसाद, डॉ राघवेंद्र श्रीवास्तव, अनुप लाल, केशरी कुमार, डॉ संजीव सिन्हा, राकेश कुमार सिन्हा एवं काफी संख्या शिक्षाविद, देश प्रेमी शामिल हुए l

 

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