बच्चों का बचपन बचाए रखने में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण : अनुराधा

 

*मूलभूत चरण की राष्ट्रीय पाठ्यचर्या पर डीपीएस बोकारो में सीबीएसई की प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित*

बोकारो। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप शिक्षकों को प्रशिक्षण के माध्यम से उन्हें पूर्णतया तैयार किए जाने की कवायदें लगातार जारी हैं। इसी कड़ी में शनिवार को डीपीएस बोकारो में मूलभूत चरण की राष्ट्रीय पाठ्यचर्या (नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क फॉर फाउंडेशनल स्टेज) विषय पर सीबीएसई पटना उत्कृष्टता केन्द्र (सीओई) की ओर से शिक्षकों की कार्यशाला आयोजित की गई। एकदिवसीय इस क्षमता निर्माण कार्यक्रम (कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोग्राम) में विद्यालय के दर्जनों शिक्षक-शिक्षिकाएं शामिल हुए। रिसोर्स पर्सन के रूप में डीएवी सेक्टर-6 की प्राचार्या अनुराधा सिंह और होलीक्रॉस स्कूल, बोकारो की वरिष्ठ शिक्षिका पूजा सिंह मौजूद रहीं। मुख्य प्रशिक्षिका अनुराधा सिंह ने विद्यार्थियों की मूलभूत अवस्था में उनकी देखरेख और उनकी दबावरहित शिक्षा आदि के बारे में विस्तार से बताया।

उन्होंने कहा कि शिक्षा किसी भी राष्ट्र के विकास की बुनियाद है। आज अत्याधुनिकता और दिखावे की अंंधी होड़ में माता-पिता अपने बच्चों पर उनकी उम्र और जरूरत से कहीं अधिक बोझ थोप दे रहे हैं, जो उनके बचपन को छीन रहा है। ऐसे में शुरुआती कक्षाओं के शिक्षकों की भूमिका उनके खोते हुए बचपन को बचाने से लेकर भविष्य का नेतृत्वकर्ता तक तैयार करने में काफी महत्वपूर्ण है। उन्हें बाहर की दुनिया, मैदानों के खेलकूद आदि से वंचित कर मोबाइल-लैपटॉप तक सीमित कर उनका विकास हम कुंठित कर रहे हैं। हमने खुद अपने बच्चों को वर्चुअल वर्ल्ड में धकेला है, जिससे उन्हें निकालना आज एक बड़ी समस्या बन चुकी है। ऐसे बच्चे बस बड़े हो जाएंगे, लेकिन बचपन नहीं होगा। जीवन में एक खालीपन रह जाएगा। उनका चारित्रिक और मानसिक सशक्तीकरण भी जरूरी है, नहीं तो सब व्यर्थ है।

उन्होंने यह भी कहा कि विद्यालय में छोटे बच्चों की मातृत्व-भाव से देखरेख होनी चाहिए। शिक्षक और अभिभावक बच्चों की भावनाओं को कभी आहत न करें। भाषा के प्रति अवधारणा में बदलाव पर बल देते हुए श्रीमती सिंह ने कहा कि भाषा कभी भी विकास में रोड़ा नहीं हो सकती। अपने सुरुचिपूर्ण और विनोदपूर्ण संबोधन से श्रीमती सिंह ने व्यावहारिक उदाहरणों के साथ प्रशिक्षण सत्र को काफी आनंददायक बना दिया। उन्होंने शिक्षकों का अभिभावकों के साथ बेहतर समन्वयन, सीखने वालों के प्रकार, उम्र के हिसाब से विद्यार्थियों के कौशल-विकास, विद्यालय में सुरक्षा व स्वच्छता, बच्चों को स्वस्थ भोजन, उन्हें अच्छी नींद, उनके दिमागी विकास के विभिन्न पहलुओं आदि के साथ-साथ शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के राष्ट्रीय मिशन निपुण भारत, बच्चों के पंचकोशीय विकास आदि पर भी बिन्दुवार जानकारी दी। कार्यशाला की दूसरी रिसोर्स पर्सन पूजा सिंह ने भी बच्चों को सिखाने, पढ़ाने और उनके खेलकूद के पैटर्न में बदलाव की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि फाउंडेशनल स्टेज के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (एनसीएफ एफएस) का उद्देश्य भारत में प्रारंभिक बचपन की शिक्षा को आकार देना है। यह बच्चों को उनके आधारभूत वर्षों में, 8 वर्ष की आयु तक, उच्च-गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने के लिए दृष्टि, सिद्धांत और रणनीति निर्धारित करता है।

इसके पूर्व, दोनों रिसोर्स पर्सन का स्वागत पौधा भेंटकर किया गया। विद्यालय के प्राचार्य डॉ. ए. एस. गंगवार एवं कार्यशाला की प्रशिक्षिकाओं ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। प्राचार्य डॉ. गंगवार ने अपने संबोधन में कार्यशाला के विषय को भारतीय शिक्षण-व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव, 21वीं सदी के अनुरूप कौशल-विकास तथा विद्यार्थियों के समग्र विकास की दिशा में काफी महत्वपूर्ण बताया। साथ ही, शिक्षकों से इसे अपनी कक्षाओं में अमल में लाने का संदेश भी दिया। कार्यशाला के दौरान संबंधित विषय पर शिक्षकों ने विभिन्न गतिविधियों में भी भाग लिया और अंत में मूल्यांकन सत्र से इसका समापन हुआ।

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