तुलसीदास की दार्शनिक दृष्टि में:नारी शक्ति, प्रकृति, अग्नि और समय

गोस्वामी तुलसीदास का ग्रंथ ‘रामचरितमानस’ केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति, लोकजीवन, नीति, व्यवहार और दर्शन का गहरा दार्शनिक ग्रंथ है। इसमें मानव और प्रकृति के संबंध, जीवन की सीमाएं और समय का मूल्य सरल अवधी भाषा में अत्यंत गहराई से व्यक्त किए गए हैं। यही कारण है कि यह काव्य लोक और शास्त्र दोनों का संगम बन गया है।

प्रकृति, अग्नि, स्त्री शक्ति और काल – चार महाशक्तियों की चेतावनी

अयोध्या कांड में तुलसीदास एक दोहा लिखते हैं:

“काह न पावक जरइ सक, का न समुझ समाइ।
का न करइ अबल प्रबल, केहि जग काल न खाइ॥”

इस दोहे में तुलसीदास चार महत्वपूर्ण तत्वों की चर्चा करते हैं — अग्नि, समुद्र, स्त्री शक्ति और काल। ये कोई सामान्य उपमाएं नहीं हैं, बल्कि जीवन की शक्तिशाली और निर्णायक शक्तियाँ हैं। ये सभी चेतावनी स्वरूप हैं, जो यह बताते हैं कि यदि इनकी मर्यादा भंग की जाए, तो विनाश अवश्यंभावी है।

अग्नि और समुद्र: सृजन और विनाश की शक्तियाँ

“कौन है जिसे अग्नि जला नहीं सकती? क्या है जो समुद्र में समा नहीं सकता?” — ये प्रश्न नहीं, चेतावनी हैं। अग्नि शुद्ध करती है, परन्तु वह भस्म भी कर सकती है। समुद्र जीवन देता है, परंतु मर्यादा भंग होने पर प्रलयंकारी हो जाता है।

आज के संदर्भ में यह पर्यावरण संकट, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक असंतुलन की ओर संकेत करता है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करना मानव के लिए आत्मघाती हो सकता है। तुलसीदास सैकड़ों वर्ष पहले यह कह गए कि प्रकृति कोई जड़ नहीं, चेतन शक्ति है।

स्त्री शक्ति: अबला नहीं, अपार शक्ति की प्रतीक

“का न करइ अबल प्रबल?” — इस पंक्ति में तुलसीदास स्त्री को अबला कहकर नहीं, बल्कि उसकी असीम शक्ति को रेखांकित कर रहे हैं। वे कहते हैं कि जब स्त्री संकल्प लेती है, तो असाधारण कार्य कर सकती है। यह पंक्ति स्त्री के प्रति सम्मान और उसकी क्षमता की स्वीकारोक्ति है।

गर्गी, मैत्रेयी से लेकर कल्पना चावला, डॉ. रितु करिधल, डॉ. टेसी थॉमस जैसी आधुनिक महिलाएं इस चेतना की साक्षात प्रतीक हैं। तुलसी का दर्शन नारी को देवी के रूप में देखता है, न कि केवल त्याग की मूर्ति के रूप में।

काल: सबसे बड़ा नियंता

“केहि जग काल न खाइ” — इस पंक्ति में काल की अपरिहार्यता व्यक्त की गई है। चाहे कोई राजा हो या रंक, समय सबको निगल जाता है। यह केवल मृत्यु की नहीं, बल्कि समय के मूल्य की चेतावनी भी है। जो समय की कद्र करता है, वही आगे बढ़ता है।

तुलसीदास का यह संदेश आज के भागदौड़ भरे युग में और भी प्रासंगिक हो जाता है, जहाँ समय प्रबंधन और अनुशासन सफलता की कुंजी है।

क्या तुलसीदास स्त्रीविरोधी थे? – एक भ्रम

कुछ आलोचक “ढोल, गँवार, शूद्र, पशु, नारी…” जैसे अर्द्धचिन्हों के आधार पर तुलसीदास को स्त्रीविरोधी ठहराते हैं। लेकिन किसी काव्य या रचनाकार को उसके संदर्भ, युग और भावनात्मक परिप्रेक्ष्य से अलग करके आंकना उचित नहीं।

रामचरितमानस में तुलसीदास ने शबरी, सीता, कौशल्या, सुमित्रा, अंजनी आदि स्त्रियों को सम्मान, श्रद्धा और दिव्यता के साथ चित्रित किया है। स्त्रियों की श्रद्धा, निष्ठा और वीरता को अनेक स्थलों पर उन्होंने सराहा है।

आज के समय के लिए प्रासंगिक चेतावनी

तुलसीदास का यह दोहा मात्र कविता नहीं, एक दार्शनिक संदेश है —
प्रकृति, स्त्री, अग्नि और समय — ये चारों शक्तियाँ मानव के जीवन को दिशा देती हैं। इनकी उपेक्षा विनाश को निमंत्रण है।

आज जब पर्यावरण संकट, स्त्री सुरक्षा और समय का अपव्यय तीनों वैश्विक चिंता बन चुके हैं, तब तुलसीदास का यह दोहा एक अमर चेतावनी और मार्गदर्शक बनकर सामने आता है।

( लेखक: डॉ. मनमोहन प्रकाश, स्वतंत्र पत्रकार, इंदौर (म. प्र.))

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *