लेखक: डा मनमोहन प्रकाश, स्वतंत्र पत्रकार
हरित दीपोत्सव यानी पर्यावरण-अनुकूल प्रदूषण मुक्त दीपावली का त्यौहार। यह एक ऐसी पहल हो सकती है जिसमें भारतीयों को न तो पटाखे चलाने से रोका जाएगा,न रोशनी करने से मना किया जाएगा ,न ही इस उत्सव को धूमधाम , हर्ष उल्लास से मनाने से मना किया जाएगा,न ही पर्यावरण प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा, और न ही संसाधनों की बर्बादी के लिए उत्तरदाई ठहराया जाएगा।
हरित दीपोत्सव एक ऐसा कांसेप्ट है जिसमें हर व्यक्ति को ध्यान रखना है कि उसके द्वारा दीपोत्सव के दौरान वायु, ध्वनि और लैंड प्रदूषण की बढ़ोतरी में कम से कम या न के बराबर योगदान हो। इसके लिए समाज,परिवार और व्यक्तिगत स्तर पर सहयोग अपेक्षित है।
हरित दीपोत्सव के विचार को विस्तार देने के लिए हमें इन बिंदुओं पर विशेष ध्यान देना होगा –
(1) परंपरागत पटाखों के स्थान ग्रीन पटाखों का उपयोग करना है। ज्ञात हो कि ग्रीन पटाखों से प्रदूषण(वायु और ध्वनि) बहुत कम होता है क्योंकि इसमें एल्यूमीनियम, पोटेशियम नाइट्रेट और कार्बन जैसे हानिकारक रसायनों का उपयोग बहुत कम या नहीं के बराबर होता है।
(2) रोशनी के लिए ज्यादा बिजली की खपत करने वाली इलेक्ट्रिक लाइट्स की जगह मोमबत्ती,पारंपरिक मिट्टी के दीयों या सोलर लाइट का उपयोग कर ऊर्जा की बचत करना है, साथ ही रात्रि 12 बजे के बाद यदि घर, प्रतिष्ठानों तथा कार्यालयों (शासकीय/प्रायवेट)की लाइट बंद की जा सके तो बहुत अच्छा है।
(3)प्लास्टिक और अन्य गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्री के पैकिंग आदि में उपयोग के स्थान पर बायोडिग्रेडेबल अथार्त रीसाइक्लिंग मटेरियल का उपयोग करना चाहिए।इस विषय पर सभी छोटे-बड़े व्यापारियों को और ऑन लाइन विक्रेताओं को विशेष सहयोग और ध्यान देना होगा।
(4) कचरा प्रबंधन पर नगरी निकायों, पंचायतो तथा व्यक्तिगत स्तर पर इन अवसरों पर विशेष सहयोग और जिम्मेदार व्यवहार आवश्यक है अर्थात कचरा ऐसे स्थान पर न डाला जाए जहां से एकत्रित नहीं किया जा सके।
(5)प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करना होगा, विशेष रूप से जल, और मिट्टी के संरक्षण पर ध्यान देना।
(6) प्राकृतिक और पुर्नचक्रीय सामाग्री से बने दीयों, सजावटी सामान को महत्व देना होगा।
(7) रासायनिक रंगों के स्थान पर प्राकृतिक चीजों से बनी रंगोली (फूल आदि) का उपयोग करना है।
इस प्रकार समाज में हरित दीपोत्सव के लिए नवाचार एवं जागरूकता अभियान को गति देनी चाहिए।
प्रश्न यह है कि वर्षों से भारतीय बिना हरित दीपोत्सव के दीपावली का त्यौहार मनाते आए हैं, अब इसमें बदलाव क्यों?मेरा ऐसा मानना है कि समय के साथ बदलाव आज की आवश्यकता है और समझदारी भी। भारत की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है और प्राकृतिक संसाधन निरंतर कम होते जा रहे हैं , जबकि प्रदूषण की समस्या बढ़ती ही जा रही है, देश की राजधानी दिल्ली सहित कुछ बड़े शहरों में तो इस समस्या ने अपना विकराल रूप भी दिखाना शुरू कर दिया है, न्यायालय को संज्ञान लेना पड़ रहा है। ये तीनों समस्याएं सचेत कर रही है कि भारतीयों को दीपावली जैसे त्यौहारों को मनाने के तौर-तरीकों में समय की मांग के अनुसार बदलाव करना चाहिए। अपने और पर्यावरण के स्वास्थ्य का ध्यान रखने वाले आचारण को महत्त्व देना चाहिए।इस पुण्य कार्य के लिए कुछ प्रयास किए जा सकते हैं।
हरित दीपोत्सव को भारत में साकार करने के लिए हम कुछ उपाय कर सकते हैं – जैसे सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा स्कूलों, कॉलेजों, और सोशल मीडिया पर हरित दीपोत्सव के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाना चाहिए। साथ ही हरित पटाखों को छोड़ कर अन्य तरह के पटाखों के निर्माण एवं उपयोग पर प्रतिबंध लगना चाहिए। सरकार और स्थानीय संगठनों द्वारा मिट्टी के दीये, हस्तनिर्मित सजावट, और अन्य पारंपरिक उत्पादों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
इको-फ्रेंडली उत्पादों की ब्रांडिंग की जाना चाहिए तथा प्रदूषण फैलाने वाले उत्पादों की बिक्री के प्रतिबंध पर विचार होना चाहिए। हमारे द्वारा प्रकृति की खुशहाली के लिए तथा पर्यावरण प्रदूषण से सुरक्षा के लिए एक पौधा लगाने का संकल्प लिया जाए तो सोने पे सुहागा होगा। सामाजिक नेतृत्व जैसे फिल्मी सितारे, राज नेता, समाज सेवी, उद्योगपति, धर्मगुरु और अन्य प्रभावशाली लोग अगर हरित दिवाली के विचार को प्रोत्साहित करें तो भारतीयों के लिए शीघ्र आचरण में उतारना संभव हो सकेगा।