नई दिल्ली: केंद्र सरकार हीमोफीलिया-A के इलाज के लिए एक नई और अधिक प्रभावी दवा एमिसिजुमैब (Emicizumab) की कम-डोज़ थैरेपी को मौजूदा इलाज की जगह सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध कराने पर विचार कर रही है। यह कदम भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) की सिफारिश के बाद उठाया गया है।
फिलहाल सरकार की ओर से नेशनल हेल्थ मिशन के तहत राज्यों को लो-डोज़ फैक्टर VIII (FVIII) प्रोफाइलेक्सिस थैरेपी मुफ्त मुहैया कराई जाती है। परंतु इस इलाज की प्रभावशीलता सीमित है और मरीजों को दीर्घकालिक लाभ नहीं मिल पाते।
एमिसिजुमैब, जिसे स्विस कंपनी रॉश द्वारा ब्रांड नाम हेमलिब्रा (Hemlibra) से बनाया गया है, एक आधुनिक दवा है जो खून के बहाव को रोकने में FVIII की भूमिका निभाती है और मरीजों में ब्लीडिंग एपिसोड्स को काफी कम कर देती है।
हालांकि इसकी कीमत लगभग ₹13 लाख प्रति वर्ष होने के कारण इसे सरकारी योजनाओं में शामिल करना मुश्किल रहा है। अब ICMR के अध्ययन में यह सामने आया है कि इसकी आधी डोज़ भी समान रूप से प्रभावी है और लागत को ₹5.1 लाख प्रति वर्ष तक घटा देती है — जो मौजूदा FVIII थैरेपी की लागत ₹5.37 लाख से भी कम है।
“हमारे अध्ययन में पाया गया कि आधी डोज़ की एमिसिजुमैब थैरेपी न केवल सुरक्षित और प्रभावशाली है बल्कि मौजूदा इलाज से ज्यादा किफायती भी है,” ICMR-राष्ट्रीय इम्यूनोहेमेटोलॉजी संस्थान की निदेशक डॉ. मनीषा मडकाईकर ने कहा।
इस अध्ययन को Journal of Thrombosis and Haemostasis में प्रकाशित किया गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय की Health Technology Assessment (HTA) इकाई अब इस आधार पर दवा के प्रभाव और लागत की समीक्षा कर रही है।
भारत में करीब 1.4 लाख हीमोफीलिया मरीज हैं, लेकिन इनमें से केवल 27,000 ही पंजीकृत हैं। इनमें अधिकांश को हीमोफीलिया-A है, जो फैक्टर VIII की कमी के कारण होता है।
“कम डोज़ एमिसिजुमैब को सभी जरूरतमंद मरीजों तक पहुंचाना न केवल व्यावहारिक होगा, बल्कि इससे उनका जीवनस्तर भी बेहतर होगा,” डॉ. वरुण कौल, बाबा फरीद यूनिवर्सिटी, पंजाब ने कहा।
अगर सरकार इस योजना को मंजूरी देती है, तो यह भारत में हीमोफीलिया इलाज में एक क्रांतिकारी बदलाव होगा — जिससे मरीजों को बेहतर इलाज के साथ सरकार को भी लंबी अवधि में लागत में बड़ी बचत हो सकती है।
मुख्य बिंदु:
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ICMR की सिफारिश पर केंद्र सरकार कम-डोज़ एमिसिजुमैब को सार्वजनिक स्वास्थ्य योजना में शामिल करने पर विचार कर रही है।
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यह थैरेपी मौजूदा लो-डोज़ FVIII से अधिक प्रभावी और किफायती सिद्ध हुई है।
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लागत: ₹13 लाख से घटकर ₹5.1 लाख प्रति वर्ष — FVIII से भी कम।
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इलाज की पहुंच और मरीजों की गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद।
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बड़ा नैदानिक परीक्षण जारी है, जिसके बाद अंतिम फैसला होगा।