News Desk: भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि के तहत, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को पहली बार किसी रॉकेट को पूरी तरह बनाने की तकनीक सौंपी गई है। इसरो (ISRO) ने अपने स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) की पूरी तकनीक HAL को ट्रांसफर कर दी है।
भारतीय अंतरिक्ष प्रमोशन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) ने शुक्रवार को बताया कि ₹511 करोड़ की लागत वाले इस प्रोजेक्ट के लिए HAL को तकनीक ट्रांसफर की गई है। HAL अब इस रॉकेट को खुद बना सकेगा, इसका संचालन कर सकेगा और इसे कमर्शियल लॉन्च के लिए भी इस्तेमाल कर सकेगा।
IN-SPACe के चेयरमैन पवन गोयनका ने इसे भारत के स्पेस सेक्टर में बड़ा बदलाव बताया। “यह पहली बार है जब कोई अंतरिक्ष एजेंसी एक संपूर्ण लॉन्च व्हीकल की तकनीक किसी कंपनी को दे रही है,” उन्होंने कहा।
2023 में ISRO ने SSLV के निर्माण के लिए प्राइवेट कंपनियों से प्रस्ताव मांगे थे। शुरुआत में लगभग 20 कंपनियों ने रुचि दिखाई, लेकिन अंत में मुकाबला HAL, भारत डायनेमिक्स (Skyroot, BHEL के साथ) और अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज (Agnikul और वालचंद के साथ) के बीच रहा। इनमें से HAL को स्वतंत्र रूप से चुना गया।
IN-SPACe के तकनीकी निदेशक राजीव ज्योति ने कहा कि HAL को इसरो के साथ मिलकर विशेष ट्रेनिंग और गाइडेंस दी जाएगी ताकि अगले दो साल में दो SSLV लॉन्च किए जा सकें।
क्या है SSLV रॉकेट?
SSLV एक तीन-चरणीय रॉकेट है, जिसमें तीन ठोस ईंधन वाले स्टेज और एक लिक्विड प्रोपल्शन आधारित अंतिम चरण (Velocity Trimming Module) होता है। यह रॉकेट 500 किलो तक का उपग्रह 500 किमी की दूरी तक ले जा सकता है। यह ‘लॉन्च ऑन डिमांड’ फीचर से लैस है यानी जब भी जरूरत हो, इसे तेजी से लॉन्च किया जा सकता है।
SSLV का वजन करीब 120 टन और लंबाई 34 मीटर है। इसमें नैनो, माइक्रो और मिनी सैटेलाइट्स के लिए भी कई लॉन्च विकल्प हैं।
ISRO के पहले के लॉन्च व्हीकल्स जैसे SLV, PSLV, GSLV आदि राष्ट्रीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बनाए गए थे, लेकिन SSLV को खासतौर पर कमर्शियल लॉन्च के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसकी लॉन्च तैयारी का समय कम होता है, लॉन्च पैड की जरूरत न्यूनतम है और यह कम लागत में ज़्यादा प्रोडक्शन की सुविधा देता है।
इस ऐतिहासिक तकनीकी सौंप के बाद भारत का निजी क्षेत्र अब अंतरिक्ष रॉकेट लॉन्च में अहम भूमिका निभा सकेगा।