नई दिल्ली : भारत अब अंतरिक्ष में अपनी सैन्य ताकत को नए मुकाम पर ले जाने जा रहा है। देश 2029 तक 52 निगरानी उपग्रह (सैटेलाइट) लॉन्च करेगा, ताकि चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर कड़ी नजर रखी जा सके और हिंद महासागर क्षेत्र में हर गतिविधि की निगरानी की जा सके। यह परियोजना स्पेस-बेस्ड सर्विलांस (SBS) प्रोग्राम के तीसरे चरण का हिस्सा है, जो मई 2025 में हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद रक्षा रणनीति में हुए बड़े बदलावों पर आधारित है।
इस महत्वाकांक्षी योजना को ₹26,968 करोड़ के बजट के साथ कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने मंजूरी दी है। इसकी अगुवाई डिफेंस स्पेस एजेंसी (DSA) कर रही है, और इसे इसरो (ISRO) के साथ मिलकर पूरा किया जाएगा।
इन 52 सैटेलाइट्स में से 21 ISRO लॉन्च करेगा, जबकि 31 निजी भारतीय कंपनियों को सौंपे गए हैं, जिससे इनके तैनाती में तेजी लाई जा सकेगी। ये सैटेलाइट्स लो-अर्थ और जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में रहकर दुश्मनों की गतिविधियों पर रीयल-टाइम हाई-रिजॉल्यूशन इमेजरी देंगे।
इस परियोजना का मकसद भारतीय सेना की OODA लूप (Observe, Orient, Decide, Act) को तेज करना है, ताकि दुश्मन की चालों पर तेजी से नजर रखी जा सके और तुरंत प्रतिक्रिया दी जा सके।
इसी के साथ, भारतीय वायु सेना भी हाई-एल्टीट्यूड प्सूडो सैटेलाइट्स (HAPS) खरीदने की योजना बना रही है, जो बिना पायलट के विमान होंगे और सप्ताहों तक ऊंचाई पर मंडरा सकते हैं, जिससे बेहद उन्नत निगरानी संभव होगी।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने Cartosat जैसे स्वदेशी सैटेलाइट्स और विदेशी इमेजरी का उपयोग कर दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखी थी। इससे यह स्पष्ट हुआ कि भारत को अपनी खुद की निगरानी प्रणाली विकसित करनी ही होगी।
अब भारत न केवल एक सैटेलाइट शील्ड बनाने की दिशा में काम कर रहा है, बल्कि एक मिलिट्री स्पेस डॉक्ट्रिन भी तैयार हो रही है, ताकि चीन के बढ़ते अंतरिक्ष खतरों का जवाब दिया जा सके। चीन के पास अब 1,000 से ज्यादा मिलिट्री ग्रेड सैटेलाइट्स, ASAT हथियार और उन्नत निगरानी प्रणालियाँ हैं।
एयर मार्शल अशुतोष दीक्षित, चीफ ऑफ इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ ने कहा,
“स्पेस ही अब अगला युद्धक्षेत्र है। यही असली हाई ग्राउंड है।”
भारत इस बड़ी सैटेलाइट योजना के साथ सिर्फ अपने आसमान की हिफाजत नहीं, बल्कि अंतरिक्ष में दबदबा कायम करना चाहता है—जहां भविष्य के युद्ध पहले से ही प्लान हो रहे हैं।