-डा.मनमोहन प्रकाश, स्वतंत्र पत्रकार
नवरात्रि सनातनियों का महत्वपूर्ण पर्व है जिसमें देवी के नौ विभिन्न रूपों का स्मरण किया जाता है, ध्यान किया जाता है।इन नौ दिनों में तप,वृत, साधना,यज्ञ,पूजा के माध्यम से मनुष्य द्वारा आंतरिक और बाहरी शक्ति को जागृत करने की कोशिश होती है, उसे मातृ शक्ति का सम्मान करने की सीख मिलती है, अन्याय और बुराई के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा मिलती है, और जीवन को सार्थक करने का मार्ग सुगम होता है।हम सभी इन तथ्यों से भली-भांति परिचित हैं कि आज के युग में भारत में नारी के बाल से लेकर प्रोण रुप तक को विभिन्न अत्याचारों(अपमान,घरेलू और बिहारी हिंसा, लूट-पाट, अपहरण,हत्या, बलात्कार आदि) का सामना करना पड़ रहा और इन सब अपराधों के लिए जिम्मेदार है मनुष्य की विकृत और दूषित मानसिकता।इन परिस्थितियों में देवी दुर्गा के नौ रूपों के महत्व को जानना और उसमें निहित संदेश को समझना, अपने आचरण में उतारना प्रत्येक मानव के लिए बहुत अधिक प्रासंगिक हो जाता है।
1. शैलपुत्री: यह पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में पूजी जाने वाली देवी का पहला रुप हैं। यह रूप प्रकृति से जुड़ाव और स्थिरता का प्रतीक है। आज की परिस्थितियों में यह देवी प्रत्येक भारतीय नर-नारी को आत्म-निर्भर, दृढ़ संकल्पित और आत्मविश्वासी बनने की सीख देती है तथा प्रकृति सम्मत जीवन जीने की सलाह देती है।
2. ब्रह्मचारिणी: यह देवी तप और संयम की प्रतीक है। आधुनिक जीवन में जहां अत्यधिक भौतिकता और व्यस्तता है, देवी का यह रूप संयम और धैर्य की महत्ता को रेखांकित करता है तथा प्रत्येक नर-नारी को आत्म-नियंत्रण में रहने और आत्म-साक्षात्कार करने की प्रेरणा देता है।
3. चंद्रघंटा: देवी के इस रूप को साहस और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। आज के समय में, जहाँ नारी (सभी अवस्थाएं) और समाज विविध चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, यह रूप साहस, आत्मरक्षा और न्याय के महत्त्व को प्रतिपादित करता है।
4. कूष्माण्डा: देवी का यह रूप सृजन और ऊर्जा का प्रतीक है। आधुनिक समय में देवी का यह रूप व्यक्तिगत और सामाजिक विकास और सकारात्मक सृजन के लिए रचनात्मकता, नवाचार, और सकारात्मक ऊर्जा को प्रोत्साहित करने की सलाह देता है।
5. स्कंदमाता: देवी का यह रूप मातृत्व और करुणा का प्रतीक है। आज के समाज में, जहां वैमनस्य,संघर्ष और विभाजन बढ़ रहे हैं, देवी का यह रूप इन बुराइयों से दूर रहते हुए सेवा, करुणा और दूसरों की देखभाल की प्रासंगिकता पर बल देता है।
6. कात्यायनी: यह देवी दुर्गा का योद्धा रूप है, जो बुराई के विनाश का प्रतीक है। वर्तमान में यह रूप अन्याय के खिलाफ खड़े होने, साहस से चुनौतियों का सामना करने, दुश्मनों से सतर्क रहने और आक्रामणकारियों से निपटने के लिए सदैव तैयार रहने तथा साहास और दृढ़ता से सामना करने का संदेश देता है।
7. कालरात्रि: देवी का यह रूप अज्ञान और भय के नाश का प्रतीक है। आज के समय में, जब लोग मानसिक तनाव, अवसाद और डर से जूझ रहे हैं, यह रूप इन सब से मुक्ति के लिए आंतरिक शक्ति को पहचानने तथा किसी भी परिस्थितियों में हिम्मत न हारने की सलाह देता है।
8. महागौरी: यह देवी रूप शुद्धता और सद्गुणों का प्रतीक हैं। आधुनिक संदर्भ में, यह रूप नैतिकता, शांति और सच्चाई के महत्व की याद दिलाता है, जो जीवन की जटिलताओं के बीच भी बनाए रखना आवश्यक हैं।
9. सिद्धिदात्री: देवी का यह रूप सभी सिद्धियों और ज्ञान की प्रदाता माना जाता है। आज के युग में, यह रूप व्यक्ति को जीवन में संतुलन और पूर्णता की ओर प्रेरित करता है तथा शिक्षा के महत्व को दर्शाता है और सत्कर्म करने की सलाह देता है।
अतः हम कह सकते सनातन धर्म में देवी के नौ रूपों की पूजा धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं है, बल्कि यह प्रत्येक मानव के लिए आंतरिक विकास, मानसिक स्थिरता, आत्मविश्वास और समाज में व्याप्त बुराइयों से दूर रहते हुए न्याय, सौहार्द, करुणा और प्रेम को बढ़ावा देने की प्रक्रिया है। नवरात्रि में देवी अराधना का उद्देश्य भी यही है कि मनुष्य देवी के नौ रूपों के माध्यम से, अपने अंदर निहित आंतरिक शक्तियों को पहचाने और उन्हें विकसित करने का प्रयास करें। मेरा ऐसा मानना है कि इस समयावधि में अर्जित की गई शक्तियां निश्चित रूप से मनुष्य को गलत राह पर जाने से रोकेंगी तथा व्यक्तिगत और सामाजिक चुनौतियों से निपटने में सहायक होंगी।