वक़्फ़ संशोधन अधिनियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज से सुनवाई, 73 याचिकाओं पर होगी बहस

नई दिल्ली:  सुप्रीम कोर्ट आज से वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2024 की वैधता को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगा। इस अहम मामले की सुनवाई दोपहर 2 बजे से शुरू होगी, जिसे भारत के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता में जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ देखेगी।

यह अधिनियम 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंज़ूरी के बाद कानून बना, लेकिन इसके प्रावधानों को लेकर देशभर में विरोध और कानूनी चुनौती सामने आई है। केंद्र सरकार का दावा है कि यह कानून वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए जरूरी है, जबकि याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि यह संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित करता है।

केंद्र ने डाली सुप्रीम कोर्ट में कैविएट

अंतरिम राहत दिए जाने से पहले पक्ष रखने का मौका देने की मांग करते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट दायर की है।

सात राज्यों ने केंद्र के पक्ष में दाखिल की याचिका

केंद्र को समर्थन देने के लिए मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा और उत्तराखंड की सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। इन राज्यों का तर्क है कि नया अधिनियम संविधान के अनुरूप है, भेदभाव रहित है और वक़्फ़ प्रशासन को आधुनिक और व्यवस्थित बनाने के लिए जरूरी है।

याचिकाकर्ताओं में राजनीतिक नेता, धार्मिक संगठन और आम नागरिक

विरोध करने वालों की सूची लंबी है, जिसमें राजनीतिक दलों, धार्मिक संगठनों और नागरिकों की भागीदारी शामिल है:

  • राजनीतिक नेता: एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी, आप विधायक अमानतुल्ला खान, तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा, राजद सांसद मनोज कुमार झा और फैयाज़ अहमद, कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद प्रमुख याचिकाकर्ता हैं।

  • धार्मिक संगठन: समस्त केरल जमीयत उल उलेमा, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी इस कानून के खिलाफ कोर्ट पहुंचे हैं।

  • विपक्षी दल: कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, भाकपा, वाईएसआर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, टीवीके (अभिनेता विजय की पार्टी), राजद, जदयू, एआईएमआईएम, आप और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने कानून का विरोध किया है।

  • अन्य याचिकाकर्ता: दो हिंदू याचिकाकर्ता— अधिवक्ता हरी शंकर जैन और नोएडा निवासी पारुल खेरा— ने भी याचिकाएं दायर की हैं। उनका आरोप है कि कानून की कुछ धाराएं मुस्लिम समुदाय को सरकारी और हिंदू धार्मिक संपत्तियों पर “अवैध कब्ज़ा” करने की छूट देती हैं।

याचिकाकर्ताओं की प्रमुख आपत्तियाँ

याचिकाओं में कई बिंदुओं पर सवाल उठाए गए हैं:

  • वक़्फ़ बोर्डों के लिए चुनाव समाप्त करना, जिससे प्रतिनिधित्व और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नुकसान होता है।

  • बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति की अनुमति देना, जिसे धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप माना जा रहा है।

  • दस्तावेज़ रहित या मौखिक दान के आधार पर स्थापित वक़्फ़ संपत्तियों की सुरक्षा में कमी आना।

  • “यूज़र वक़्फ़” जैसी भारतीय न्यायपालिका द्वारा विकसित अवधारणाओं को हटाना।

  • अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को वक़्फ़ बनाने से रोकना, जिसे अधिकारों से वंचित करने की कोशिश कहा जा रहा है।

  • सरकारी हस्तक्षेप की गुंजाइश बढ़ना, जिससे वक़्फ़ बोर्डों की स्वायत्तता पर खतरा पैदा हो सकता है।

  • पुरानी और ऐतिहासिक वक़्फ़ संपत्तियों की स्थिति पर अनिश्चितता और संरक्षण की चिंता।

  • कुल 35 संशोधन, जिन्हें वक़्फ़ बोर्डों की शक्तियों को कमजोर करने और धार्मिक भूमि को सरकारी संपत्ति में बदलने की दिशा में कदम बताया जा रहा है।

इस कानून को लेकर देशभर में गहरी चिंता है और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से इस पर स्पष्टता आने की उम्मीद की जा रही है। आज की सुनवाई भारतीय लोकतंत्र, अल्पसंख्यक अधिकारों और धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था के लिहाज से अहम मानी जा रही है।

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