सनातन संस्कृति में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस रात्रि में चंद्रमा अपनी 16 कलाओं- अमृत,मनदा (विचार), पुष्प (सौंदर्य), पुष्टि (स्वास्थ्यता), तुष्टि (इच्छापूर्ति), ध्रुति (विद्या), शाशनी (तेज), चंद्रिका(शांति), कांति (कीर्ति), ज्योत्स्ना (प्रकाश), श्री (धन), प्रीति (प्रेम), अंगदा (स्थायित्व), पूर्ण (पूर्णिता अर्थार्त कर्मशीलता) और पूर्णामृत (सुख) से परिपूर्ण होता है। मानव को अपने जीवन में इन कलाओं के महत्व और दर्शन को समझते हुए स्थान देने की आवश्यकता है । शरद पूर्णिमा का संबंध कहीं न कहीं भगवान श्री कृष्ण से भी रहा है जो जीवन में भक्ति,संगीत और नृत्य के महत्व को प्रतिपादित करते हैं। शरद पूर्णिमा का संबंध शरद ऋतु के आरंभ से भी है। यह ऋतु कृषि और फसलों के लिए महत्वपूर्ण है, और अच्छी फसलें किसानों की समृद्धि से जुड़ी हुई है। अतः भारतीय सनातन संस्कृति किसान और कृषि को महत्व देन पर भी बल देती है।
आध्यात्मिक दृष्टि से शरद पूर्णिमा मानसिक शांति और स्वस्थ शरीर के महत्व को दर्शाती है। आधुनिक विज्ञान में भी इन दोनों ही का दीर्घायु प्राप्त करने में विशेष योगदान स्थापित है।
सनातन विज्ञान में ऐसी मान्यता रही है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणें विशेष गुण से युक्त होती हैं इसलिए जब खीर (चावल और दूध युक्त)को खुले आसमान के नीचे चांद की रोशनी में रखा जाता है, तो इन किरणों के प्रभाव से खीर के पोष्टिक गुणों में वृद्धि होती है और इसका सेवन अच्छे स्वास्थ्य के साथ पित्त से जुड़ी समस्याओं से निदान दिलाने में सहायक हो सकता है। अतः आधुनिक भारतीय वैज्ञानिकों को शरद पूर्णिमा में चांद की रोशनी में रखी गई खीर पर शोध करना चाहिए।
भारत के कई सनातनी ग्रंथ भी शरद पूर्णिमा के महत्व को विभिन्न संदर्भों में स्थापित करते हैं, जैसे -(1) भागवत पुराण:इस पुराण में शरद पूर्णिमा का वर्णन भगवान श्रीकृष्ण के महारास के संदर्भ में मिलता है। इसके अनुसार इस रात्रि को चंद्रमा अपनी संपूर्णता में होता है, और इसे प्रेम, भक्ति और आत्मीयता का प्रतीक माना जाता है।यह तीनों गुण मानव जीवन में आनंद और उर्जा प्राप्ति का सहज मार्ग है।
(2) स्कंद पुराण: इसके अनुसार इस दिन चंद्रमा विशेष रूप से प्रभावशाली होता है और उसकी किरणें अमृतमयी होती हैं। यह दिन ध्यान,आरोग्य और दीर्घायु की प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ है।
(3) रामचरितमानस:इस ग्रंथ में शरद पूर्णिमा का अप्रत्यक्ष रूप से उल्लेख मिलता है। इसमें शरद ऋतु का वर्णन सौंदर्य, शीतलता, और शांति के प्रतीक के रूप में किया गया है, जो शरद पूर्णिमा की विशेषता है।इस ग्रंथ में ऋतुओं के बदलाव और प्राकृतिक सौंदर्य के संबंध में दिया गया वर्णन इस समय के महत्व को दर्शाता है।
(4) महाभारत:इस ग्रंथ में ऋतुओं और चंद्रमा के महत्व का उल्लेख मिलता है। हालांकि शरद पूर्णिमा का सीधा संदर्भ कम है, लेकिन इस समय के वातावरण, चंद्रमा की शक्ति और उसकी किरणों का स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव महाभारत के कुछ हिस्सों में वर्णित है।
(5) अध्यात्म रामायण : इसमें चंद्रमा और शरद ऋतु का सुंदर वर्णन मिलता है।यह समय आध्यात्मिक जागरूकता और ध्यान साधना के लिए उत्तम माना गया है।
(6)वेद और उपनिषद: इनमें शरद ऋतु के साथ चंद्रमा की महिमा का वर्णन मिलता है। चंद्रमा को मानसिक शांति, सौंदर्य और अमृत का प्रतीक माना गया है, जो शरद पूर्णिमा के धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़ा है। यजुर्वेद में चंद्रमा के स्वास्थ्यवर्धक गुणों का उल्लेख मिलता है, जो शरद पूर्णिमा पर खीर में चंद्रमा की किरणों को ग्रहण करने की परंपरा से जुड़ा है।
(7) सुश्रुत संहिता: इसमें छह ऋतुओं का वर्णन दिया गया है, जिसमें शरद ऋतु को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है। शरद ऋतु के दौरान शरीर में पित्त दोष बढ़ जाता है, इसलिए इस समय ठंडे और शीतल पदार्थों का सेवन करना फायदेमंद है। चंद्रमा की ठंडी किरणें शरीर को शीतलता प्रदान करती हैं और पित्त दोष को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। चंद्रमा की किरणें मन को भी शांत करती हैं और शरीर को आराम प्रदान करती हैं, जो शरद पूर्णिमा के समय चंद्रमा की पूजा और उसके प्रकाश में खीर रखने की परंपरा के पीछे वैज्ञानिक आधार हो सकती है।
(8) चरक संहिता :यह ग्रंथ शरद ऋतु के दौरान स्वास्थ्य की देखभाल पर विशेष ध्यान देने पर जोर देता है। इस समय पित्त का प्रभाव अधिक होता है, इसलिए इस ग्रंथ में शरीर को ठंडा और संतुलित रखने वाले आहार लेने की सलाह दी गई है।
अतः इस ग्रंथ के अनुसार इस समय चंद्रमा की शीतल किरणें शरीर के ताप को कम करने और मन को शांति प्रदान करने में सहायक होती हैं। चरक संहिता में दूध और चावल का सेवन स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी बताया गया है, विशेष रूप से पित्त को नियंत्रित करने के लिए। शरद पूर्णिमा के दौरान खीर (जो दूध और चावल से बनती है) को चंद्रमा की रोशनी में रखने का वैज्ञानिक आधार इस आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से भी जुड़ा हो सकता है।
अतःमेरी दृष्टि में भारतीय सनातन संस्कार, संस्कृति और साहित्य मे शरद पूर्णिमा मानव जीवन में शांति, शीतलता,स्वास्थ्य, साधना, संगीत के महत्व को प्रतिपादित करती है तथा ऋतु परिवर्तन के वैज्ञानिक प्रभाव से सचेत रहने की सलाह देती है।