चुनाव आयोग को 21 जुलाई तक जवाब देने का निर्देश, अगली सुनवाई 28 जुलाई को
नई दिल्ली: बिहार में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) यानी विशेष वोटर लिस्ट जांच पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई है। अदालत ने कहा कि इस तरह के बड़े पैमाने पर अभियान का वक्त बेहद गलत है, क्योंकि इससे असली वोटरों के नाम भी हट सकते हैं, और उनके पास अपील करने का समय नहीं बचेगा।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्य बागची की बेंच ने कहा,
“आपका अभियान गलत नहीं है… लेकिन इसकी टाइमिंग पर हमें गंभीर शक है। आठ करोड़ लोगों के नामों की जांच चुनाव से पहले कैसे संभव होगी?”
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से तीन सवालों के जवाब मांगे हैं:
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क्या आयोग को ऐसा अभियान चलाने का अधिकार है?
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ये प्रक्रिया कितनी वैध और पारदर्शी है?
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इसे अब, चुनाव से ठीक पहले क्यों किया जा रहा है?
चुनाव आयोग ने बचाव में कहा कि ये जांच जरूरी है ताकि वोटर लिस्ट से फर्ज़ी नाम हटाए जाएं और नए योग्य नागरिकों को जोड़ा जाए। इसके लिए बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर वोटरों से जरूरी दस्तावेज दिखवाएंगे।
हालांकि, आयोग ने माना कि आधार कार्ड को भारतीय नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसे कुछ विदेशी नागरिकों को भी जारी किया गया है। इसी को लेकर भी सवाल उठे हैं।
इस मामले में याचिकाकर्ताओं में RJD सांसद मनोज झा, TMC सांसद महुआ मोइत्रा और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव शामिल हैं। इनका कहना है कि आयोग 2003 के बाद रजिस्टर्ड वोटरों से ही ID मांग रहा है, और उनके पास खुद का वोटर ID या आधार कार्ड होने के बावजूद उसे मान्यता नहीं दे रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल कोई रोक नहीं लगाई है, लेकिन चुनाव आयोग को 21 जुलाई तक अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।
विपक्ष ने आयोग पर आरोप लगाया है कि ये पूरा अभियान राजनीतिक मकसद से किया जा रहा है, जिससे असली वोटरों को हटाया जा सके।
बिहार में चुनाव इस साल के आखिरी महीनों में होने की संभावना है।